Friday 15 September 2023

 

इंडिया की जगह भारत बोलें  

                  अशोक सिन्हा

      भारत देश  को स्वतन्त्र हुए 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देश अमृत महोत्सव मना  रहा है | इस अवसर पर देशवासियों ने स्वावलंबन, “स्व” की पहचान को बढ़ावा देने वाले प्रतीकों को प्राथमिकता देना और आत्मनिर्भरता की शपथ ली है|गुलामी के चिन्हों को हटा कर आत्मगौरव जगाया जा रहा है | ऐसे समय पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत जी ने देशवासियों का आह्वान किया है कि हमें दैनिक व्यवहार में india  के स्थान पर अपने देश के प्राचीन नाम भारत का ही अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए| यह आह्वान सर्वथा समीचीन और सार्थक है | स्वतंत्रता के बाद भारतीय संस्कृति.सभ्यता, और सनातन धर्म की अत्यधिक उपेक्षा हुई है | संविधान निर्माण के समय इस देश का एक ही नाम रखा जाय इस पर बहुत बहस हुई थी| अधिकाँश की राय थी की भगवान् ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर (स्कन्द पुराण,अद्ध्याय 37) इस देश का नाम भारत पड़ा अतः संविधान में देश का नाम  भारत ही रक्खा जाय | इस बात का समर्थन करने वाले सेठ गोविन्द दास,कमलापति त्रिपाठी ,कल्लूर  सुब्बा राव,,राम सहाय और हरगोविंद पन्त प्रमुख सदस्य थे | बाबा भीमराव आम्बेडकर जी ने भी बहुत अच्छी बहस की | इस अवसर पर सभा को अवगत कराया गया कि india नाम कोई बहुत पुराना नाम नहीं है |वेदों में तथा  पुराणों में कहीं  इसका जिक्र नहीं है | इसका प्रयोग यूनानियों, और अंग्रेजों ने देश की पहचान धूमिल करने हेतु  प्रारम्भ किया था | इसमें  भारत की आत्मा नहीं झलकती है|परन्तु अनेक तर्कों के बाद भी संविधान के अनुक्षेद एक में India that is Bharat लिखा गया | यह नामकरण निहित दृष्टिकोण से किया गया | अब भारत के स्वतन्त्र हुए 75 वर्षों का कालखंड बीत गया है  और आज भी कुछ लोग भारत जैसे प्राचीन नाम के स्थान पर  India नाम को अधिक प्रयोग करते हुए अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रहें हैं | ऐसे लोग भूल जातें है की यह युग भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण  का काल है |हम गुलामी के हर चिन्ह को मिटाना चाहतें है

 

 व्याकरण के अनुसार विशिष्ठ नाम ( प्रॉपर नाउन ) का अनुवाद नहीं होता है |जैसे किसी व्यक्ति का नाम हजारा सिंह हो तो उसे इंग्लिश में  थाउजेंडा सिंह नहीं कहेंगे ,क्यों की यह उसका विशिष्ठ नाम है |उसे अंग्रेजी भाषा में भी  Hajara Singh ही लिखा जायेगा | इसी प्रकार धर्म को भी अंग्रेजी भाषा में Dharma ही लिखा जाता है | देश के नाम में यही सूत्र काम  करता है | अमेरिका को English में भी America ही कहते हैं| जापान को English में भी Japan ही कहते हैं| भूटान को English में भी Bhutan ही कहते हैं| श्रीलंका को English में भी Sri Lanka ही कहतेहैं, बांग्लादेश को English में भी Bangladesh ही कहतें और बोलते है | नेपाल को English में भी Nepal ही कहते हैं, पाकिस्तान को English में भी Pakistan ही कहते हैं| फिर भारत को English में India क्यों कहते हैं? Oxford Dictionary के पृष्ठ नं० 789 पर लिखा है Indian जिसका मतलब ये बताया है old-fashioned & criminal peoples अर्थात् पिछडे और घिसे-पिटे विचारों वाले अपराधी लोग। अत: इण्डिया (India) का अर्थ हुआ असभ्य और अपराधी लोगों का देश। भारत माता तथा भारतीयों का अपमान करने के लिए विदेशियों ने भारत को India  नाम रखा था। इससे देश में भ्रम उत्पन्न हुआ और हम स्व से दूर होते गए | फलतः  भारत के तीन नाम प्रचालन में आ गए 1- भारत 2- हिंदुस्तान  3- India.

भारत नाम  की प्राचीनता के कई प्रमाण प्राचीन ग्रंथो में उपलब्ध है | विष्णु पुराण में वर्णन आया है :-

 उत्तरम् यत् समुद्रस्य, हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।

 वर्षं तद् भारतम् नाम, भारती यत्र संतति:।।

                                   - विष्णु पुराण 2.3.1

अर्थात्: समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश स्थित है उसका नाम "भारत" है और उसकी संतानें यानी उसके निवासी "भारती" कहे जाते हैं|

 

विष्णु पुराण के दूसरे खंड के तीसरे अध्याय के 24वें श्लोक के अनुसार-

 

गायन्ति देवाकिल गीतकानिधन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयपुरूषा सुरत्वात्

अर्थ है- देवता हमेशा से यही गान करते हैं कि, जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के बीच में बसे भारत में जन्म लिया, वो मानव हम देवताओं से भी अधिक धन्य हैं.

महाभारत के आदिपर्व में दूसरे अध्याय के श्लोक 96 के अनुसार -

शकुन्तलायां दुष्यन्ताद् भरतश्चापि जज्ञिवान
यस्य लोकेषु नाम्नेदं प्रथितं भारतं कुलम्

अर्थ है- राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से यह भरतवंश संसार में प्रसिद्ध हुआ.  दुष्यंत और शकुंलता की प्राचीन प्रेम कहानी बहुत प्रचलित है. राजा दुष्यंत और शकुंतला के बेटे के नाम भरत पर ही देश का नाम भारत पड़ा

 

भागवत पुराण के अध्याय में एक श्लोक के अनुसार-

येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठश्रेष्ठगुण
आसीद् येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति

अर्थ है कि- भगवान ऋषभ को अपनी कर्मभूमि अजनाभवर्ष में 100 पुत्र प्राप्त हुए थे, जिनमें उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत को अपना राज्य दिया.कहा जाता है कि इन्हीं के नाम से देश का नाम भारतवर्ष पड़ा.

इसके साथ ही अन्य पुराण जैसे स्कंद पुराण, ब्रह्मांड पुराण, अग्नि पुराण और मार्कंडेय पुराण आदि में भी भारत नाम का उल्लेख  मिलता है. यही कारण है कि, आज भी जब हिंदू धर्म में कोई भी पूजा या अनुष्ठान होते हैं तो इसकी शुरुआत में जब संकल्प लिया जाता है तो इसमें भारत के कई प्राचीन नामों का उच्चारण किया जाता है. जैसे जम्बू द्वीपे भारत खंडे आर्यावर्ते आदि , लेकिन इन नामों में इंडिया का जिक्र नहीं आता है | हम भारत माता की जय का उद्घोष बड़े गर्व से करते है | यह नारा स्वतंत्रता संग्राम का नारा है | गाँधी जी ने भारत छोड़ो का नारा दिया था | हौसला बढ़ने वाले शब्द मन को मजबूत करतें है |

संविधान का पहला अनुच्छेद इन शब्दों के साथ शुरू होता है : इंडिया, दैट इज़ भारत...।इसे भारत दैट इज इंडिया भी लिखा जा सकता है | राष्ट्रगान में भारत भाग्य विधाता  शब्द प्रमुखता से आता है। भारत संचार निगम लिमिटेड, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम जैसे दर्जनों उदाहरण हैं। ऐसा नहीं है कि भारत शब्द अचानक ही देश की चेतना में लाया  जा रहा हो। भुबनेश्वर, ओडिशा की हाथीगुम्फा के अभिलेखों में इसके पहले प्रमाण मिलते हैं। कलिंग के राजा खारवेल (50 ई.पू.) के साम्राज्य का वर्णन करते हुए यह अभिलेख कहता है कि अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में उन्होंने भारतवर्ष की विजय का अभियान छेड़ा। भारत या भारतवर्ष शब्द से भारतीयों का गहरा भावनात्मक लगाव है और कोई भी इसे ठेस नहीं पहुंचाना चाहेगा। खुद पं. नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि भारत माता का मतलब है उसके लोग और उसकी जीत का मतलब है उसके लोगों की जीत। अमिताभ बच्चन और वीरेंद्र सहवाग ने  भारत नाम के  पक्ष में  टिप्पणियां कीं। अक्षय कुमार ने अपनी आगामी फिल्म की टैगलाइन बदल ली। लॉजिस्टिक कंपनी ब्लू डार्ट ने बड़ा एलान किया है। कंपनी ने अब अपनी प्रीमियम सेवा डार्ट प्लस का नाम बदलकर भारत प्लस कर दिया है। ब्लू डार्ट कंपनी  ने अपने फैसले की वजह बताते हुए कहा, "यह कदम हमारे उपभोक्ताओं की लगातार विकसित होती जरूरतों के साथ कदमताल करने की प्रक्रिया के लिए लक्षित है।" कंपनी ने कहा कि वह सभी हितधारकों को इस बदलाव वाली यात्रा से जुड़ने का न्योता देती है, जिससे हम भारत को पूरी दुनिया और दुनिया को भारत से जोड़ना जारी रख रहे हैं। प्रधानमंत्री इंडोनेशिया यात्रा पर गए तो अधिकृत घोषणा की गई कि भारत के प्राइम-मिनिस्टर आसियान समिट में शामिल होने जा रहे हैं! 

                                 भारत की प्राचीनता को ध्यान में रखते हुए भारत के सर्वोच्य न्यायालय में इस देश का नाम केवल भारत रखने के लिए एक वाद भी दायर किया गया था जिसको एस. ऐ . बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की खंड पीठ ने वाद को निरस्त कर दिया था | तर्क यह दिया गया था कि संविधान के अनुसार दोनों ही नाम प्रयोग किया जा सकता है | राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू ने जी 20 सम्मलेन के अवसर पर सितम्बर २०२३ में  जब रात्रिभोज  के अवसर पर भेजे गए निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत लिखा तब  विपक्ष के दलों ने हंगामा खड़ा किया की देश का नाम बदलने का प्रयास हो रहा है | मोदी I.N.D.I.A. नामक विपक्षी गठबंधन को घृणा करते हैं और उसे तोड़ना चाहतें है | नरेंद्र मोदी ने इसकी बिना परवाह करते हुए समेलन में भारत के प्रधानमंत्री का खूब प्रयोग किया और नाम पट्टिका भी लगाई | पूरे  विश्व में सन्देश गया कि भारत अपने पुराने नाम भारत से ही विश्व में पुकारा जाना पसंद करता है | देश के निवासियों में इस कारण गर्व की अनुभूति हुई और एक नवचेतना का संचार हुआ | आज आवश्यकता इस बात की है कि जनभावना और भारत के “स्व” का पुनर्जागरण करने हेतु हम भारत के लोग इंडिया के स्थान पर आज से केवल भारत नाम का ही प्रयोग करें तथा राजनीतिज्ञों को विवश करें की समय और सामर्थ्य आने पर जनभावना के अनुसार संविधान में संशोधन कर के देश का एक ही नाम भारत करें |

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* लेखक उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी हैं |सम्प्रति विश्व संवाद केंद्र लखनऊ के सचिव |संपर्क :९४५३१४००३८

 

          

 

 

 

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Tuesday 22 August 2023

 

                                                        एक जिला  एक उत्पाद से अन्त्योदय 

                                                                                                                   - अशोक सिन्हा 

समाज के आर्थिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक रूप से पिछड़े, गरीब, कमजोर वर्ग का उत्थान हो सके, इस निमित्त सबसे आखिरी व्यक्ति के उत्थान का प्रयास ही अन्त्योदय है। स्व. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के मूल में अन्त्योदय है। सामाजिक एवं आर्थिक विकास के द्वारा कौशल सामाजिक एवं आर्थिक विकास के द्वारा कौशल विकास और अन्य उपायों के माध्यम से आजीविका के अवसरों में वृद्धि करते हुए व्यक्ति का सामाजिक स्तर से ऊपर उठाना इस उद्देश्य की पूर्ति करता है। सबसे गरीब व्यक्ति को सहायता कैसे पहुंचे इसके लिये अनेक सामाजिक एवं राजनैतिक संगठन सक्रिय प्रयास करते रहते हैं। सरकार एवं शासन व्यवस्था भी अपनी ओर से अनेकों योजनाएं चलाते रहते हैं। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस दिशा में गम्भीरता से प्रयास हुए हैं। यह कहना नितान्त उचित होगा। भारत की समृद्धि में लघु एवं कुटीर उद्योगों का सर्वाधिक योगदान रहा है। जब प्रत्येक गांव आत्मनिर्भर था और प्रत्येक गांववासी हुनरमंद होता था तब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत का वैभव विश्व में विख्यात था। सम्पूर्ण विश्व से भारत में व्यापारी आकर व्यापार करते थे। ढाका मलमल, केरल के मसाले, कन्नौज का इत्र और एक से बढ़कर कृषि उत्पाद भारत की पहचान होते थे। पूरा विश्व इन वस्तुओं से सम्मोहित था। उस समय अन्त्योदय की आवश्यकता नहीं थी। कालान्तर में जब भारत में आक्रान्ता आये, देश गुलाम हुआ तब लूट और बेकारी बढ़ी। औद्योगिकीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप ही बदल दिया। गांव में हस्तशिल्प का ह्रास हुआ और  परम्परागत उद्योग-धन्धे चौपट हो गये। यह स्थिति गरीबी बढ़ाने वाली हुई। कालांतर में समाज में विभाजन हुआ | श्रम का महत्त्व कम होने लगा और बाबूगिरी, अफसरशाही सम्मानसूचक माने जाने लगे  |कामगार, कृषक, मजदूर वर्ग द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाने लगा। बेरोजगारी बढ़ी और देश में गरीबी बढ़ी। गरीब देश विश्वगुरु नहीं बन सकता। भारत घर छोड़कर अन्यत्र भटकना नहीं पड़ता है को यदि विश्व का सिरमौर बनना है तो उसे समाज के अन्तिम पायदान पर बैठे हर नौजवान को काम देने का अवसर प्रदान करना होगा तथा हर हुनर को हाट प्रदान करना होगा। इस प्रयास से केवल और केवल सरकारी नौकरी या नौकरी करने की तीव्र दबावयुक्त भावना पर रोक लगेगी और अनावश्यक बेरोजगारी पर अंकुश लगेगा। हाथ को जब काम मिलेगा तब हुनर विकसित होगा और देश की वास्तविक प्रगति होगी। उत्पादन और बाजार के मध्य समन्वय भी बनेगा तथा निर्यात  भी बढ़ेगा । 

उत्तर प्रदेश सरकार ने इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु एक जिला एक उत्पाद योजना को जनवरी २०१८ से लागू किया है, जिसकी भारत ही नहीं विश्व में चर्चा हो चुकी है। राज्य में इससे लाखों युवकों को काम मिला है। तथा राज्य सरकार की ओर से 5 वर्षों में हुनरमंद व्यक्तियों को 26000 रुपये की सहायता भी दी जा रही है । हुनर हाट लगाकर बाजार के अवसर भी प्रदान किए जा रहे हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के प्रत्येक जनपद के हस्तकला, हस्तशिल्प एवं विशिष्ठ हुनर को सुरक्षित एवं विकसित करना है। इससे सम्बंधित जनपद में रोजगार सृजन और आर्थिक संमृद्धि का लक्ष्य पूरा हो रहा है | जनपद में  विशिष्ठ उत्पाद के लिए कच्चामाल, डिजाइन, प्रशिक्षण, तकनीकी और बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे अत्यन्त छोटे स्तर पर अच्छा लाभ मिलने के साथ परिवार व घर छोड़कर अन्यत्र  भटकना नही पड़ता है | छोटे -छोटे गाँव  भी भारत में अपनी पहचान बना रहे है  | नई तकनिकी से श्रेष्ठ उत्पादन होने लगे हैं और सहज अनुदान, विपणन की सुविधा तथा प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश की सफलता को देखरकर देश के 17 राज्यों में 54 इनक्यूकेशन केन्द्र खोले गये हैं। 35 राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के 707 जिलों को केन्द्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा एक जिला एक उत्पाद के लिए अनुमोदित कर दिया गया है। 17 राज्यों में कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, केरल, सिक्किम, आन्ध प्रदेश, उड़ीसा एवं उत्तराखण्ड शामिल है। इन सभी राज्यों में 470 जिला स्तरीय प्रशिक्षण केन्द्र बने हैं।



उपरोक्त उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान की गई है। यह उत्पाद एक ब्राण्ड बने हैं और यह ब्राण्ड यू.पी की पहचान होगी। इस योजना के अन्तर्गत लघु, मध्यम और नियमित उद्योगों को मदद प्रदान की जा रही है। अनुदान व्यवस्था सामान्य सुविधा केन्द्र, विपणन सुविधा, आधुनिक तकनीकी प्रशिक्षण की सुविधा राज्य सरकार उपलब्ध करा रही है। लक्ष्य 25 करोड़ बेरोजगार युवाओं को रोजगार व नौकरी देने का लक्ष्य है और राज्य का सकल घरेलू उत्पादन में उल्लेखनीय उपलब्धि मिल रही है। पारम्परिक उद्योगों की तेजी से स्थापना हो रही है और छोटे-छोटे गांवों का नाम विदेशों में भी पहुंच रहा है। उत्तर प्रदेश की संस्कृति का भी प्रसार हो रहा है। जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों को ओ. डी. ओ. पी. देकर प्रधानमंत्री ने भी उत्तर प्रदेश का मान बढ़ाया।


विदेशी मेहमानों को वाराणसी की गुलाकी मीनाकारी कपलिंग्स, गणेश प्रतिमा, बांदा का शजर स्टोन कपलिंग्स, कन्नौज का इत्र, लखनऊ का चिनककारी वस्त्र, मुरादाबादी पीतल बाउल सेट, खुर्जा के कप प्लेट्स, सीतापुर के आसन, बरेली के जरी जरदोजी से बने उपहार, दिये गये जो बहुत पसंद किए गए। अब उ.प्र. के उपहार देश-दुनिया के बड़े निवेशकों के ऑफिस व घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। सरकार के रोड शो इवेंट में अपनी मिट्टी- संस्कृति की सुगंध तभी महका रही है। योगी सरकार लखनऊ के ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में इस प्रयास की विश्वव्यापी चर्चा की गई तथा प्रत्यक्ष स्टाल लगे जहाँ दर्शकों की भारी भीड़ जमा थी | संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में यह उल्लेख हुआ है कि भारत में 13.5 करोड़ जनसंख्या को गरीबी रेखा से ऊपर लाकर विश्व से गरीबी दूर करने का विशेष कार्य किया गया है जो पूरे यूरोप की जनसंख्या से भी अधिक है। यही है अन्त्योदय अब धरातल पर काम दिखने लगा है। यदि देश प्रथम, राष्ट्र प्रथम, संस्कृति प्रथम, व्यक्ति की गरिमा और श्रम का सम्मान प्रथम इस भावना से देश के राजनेता, श्रमिक, नागरिकगण कार्य करेंगे तो अन्त्योदय का सूरज अवश्य चमकेगा। भारत की गरिमा बढ़ेगी और राष्ट्र की विश्व को दिशा देने की क्षमता बढ़ेगी। भारती अति प्राचीनकाल से अपनी श्रमशक्ति, मानव कल्याण और विश्व को एक कुटुम्ब मान कर सर्वहितकारी भावना से कार्य करने के लिए प्रसिद्ध रहा है। पुनः सांस्कृतिक आजादी और पुनर्जागरण का काल आया है। पं. दीनदयाल उपाध्याय के स्वप्न को साकार और सार्थक बनाने का यह अवसर अवश्य देश का मान-सम्मान बढ़ाने वाल सिद्ध होगा।



Thursday 8 June 2023

 भारतीय संस्कृति का विष्वव्यापी स्वरूप

अषोक कुमार सिन्हा
सांस्कृति राष्ट्र की नैसर्गिक इकाई को आज राष्ट्र राज्यों में बांट कर संचरण बाधित कर दिया गया है अतः सांस्कृतिक सजीवता विरल हो गई है। आज भारतीयों की स्थिति यह हो गयी है कि वह स्वयं को पहचाननें में कठिनाई का अनुभव कर रहें हैं। भारत जैसे गौरवषाली राश्ट्र की सर्वकल्यायकारी सनातन संस्कृति की महानता उसके विष्वव्यापी ज्ञान और आध्यात्मिकता के कारण है। षाष्वत सत्य के सतत खोज में भारतीय ऋशि विज्ञानियों ने सम्पूर्ण विश्व में जा कर अपने ज्ञान का अलख जगाया। जिस समय विष्व के अधिकांश देष सभ्यता के विकास की प्रथम सीढ़ी पर थे, उस समय भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति के कारण विष्वगुरु माना जाता था। विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थीगण भारत में ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिये तक्षषिला, नालन्दा, विक्रमशिला एवं वाराणसी के महान विद्वानों के पास आया करते थे। ऐसे विद्याथियों की ज्ञान पिपासा शान्त करने की क्षमता केवल भारत में थी। एक ओर फाहियान और ह्वेनसांग भारत के विश्वविद्यालयों में विद्याध्ययन के लिये आते थे तब दूसरी ओर यहाँ के आचार्य, ऋशि और विद्वान सुदूर देषों में संस्कृति और धर्म, आध्यात्म का दीप जला रहे थे। भारतीय संस्कृति और धर्म-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में अगस्त्य मुनि का नाम विश्व के अन्य भागों में भारत का ज्ञान का दीप जलाने वालों में प्रथम स्थान रखता है। इन्होने दक्षिण पूर्व एशिया के अर्द्धसभ्य राष्ट्रों में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करने का कार्य किया। इन्होने दक्षिण भारत से वरुण द्वीप, शंख द्वीप, मलय द्वीप और यव द्वीप सहित अनेक देशों की सांस्कृतिक यात्रा की, जहाँ इनके नाम की षपथ ली जाती है। दीपंकर बुद्ध से जावा, सुमात्रा, सेलिबीज, श्याम और अन्नाम में ज्ञान प्रकाशित हुआ। मौर्य शासक सम्राट अशोक ने पूर्व-पष्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं में धर्म प्रचारक भेजे। इसा की मातृभूमि में बुद्ध की शिक्षाएँ अशोक ने पहुँचायीं थी। स्वयं बुद्ध ने साठ अर्हत विभिन्न दिशाओं में धर्म प्रसार के लिये नियुक्त किये थे। इन्ही धर्म प्रचारकों ने हिमालय के किरात लोगों और स्वर्ण भूमि के आग्नेय लोगों के बीच भारतीय संस्कृति व धर्म का बीजारोपण किया। अशोक के पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने सिंहल द्वीप के अनुराधपुर नगर मे बोधि वृक्ष की शाखा रोपी। जावा और सुमात्रा में नालन्दा शिक्षित धर्मपाल ने अपने शिश्य शीलभद्र व धर्मकीर्ति के साथ संस्कृति व धर्म पताका लहरायी। 65 ई. में कष्यप, मतंग और धर्मरत्न ने तथा बुद्धभद्र ने चीन में ज्ञान का दीपक जलाया। कुमारजीव का नाम संस्कृत और चीनी भाशा के प्रकाण्ड विद्वान के रूप में चीन में जाना जाता है। सार्वभौम मस्तिश्क का सिद्धान्त चीनी दर्शन को भारत की देन है। 372 ई. में बौद्ध धर्म चीन से कोरिया पहुँचा और वहीं से भारतीय संस्कृति का प्रवेष जापान में हुआ। मंगोलिया का सम्बन्ध भारत से ईसा के आठवीं षताब्दि में जुड़े। प्रज्ञा नामक भारतीय विद्वान ने संस्कृति का बौद्ध ग्रन्थों का मंगोल भाषा में अनुवाद किया। नालन्दा प्रशिक्षित पद्मसम्भव ने तिब्बत में 30 वर्श प्रवास किया और नागरिक व धार्मिक कानून बनाये। विक्रमषिला विष्वविद्यालय प्रषिक्षित दीपषंकर श्रीज्ञान ने नेपाल, तिब्बत, भूटान, सिक्किम और भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में, जीवन, आचार-विचार, व्यवहारों और भारतीय संस्कृति से प्रमाणित किया। नेपाल ने अपने को हिन्दू राश्ट्र घोशित किया।
    बगदाद के खलीफा हारुल-रषीद के प्रषासन में भारतीय संस्कृति के प्रवाह से बगदाद का दरबार आप्लावित था। बरभक नामक वहाँ के वजीर भारतीय वैद्यों को बुला कर बगदाद में वैद्य के पदों पर नियुक्त करते थे। अरब विद्यार्थियों को वे भारत पढ़ने के लिये भेजते थे। भारत से गणित व संगीत को अरब लोगों ने ही यूरोप पहुँचाया। पंचतंत्र की कहानियाँ भी उन्ही के द्वारा विदेशों में पहुँची। भारत ही वह महान देष है जिसने विश्व को उपनिषदों और भगवत गीता का ज्ञान दिया। भारत में गुप्त साम्राज्य की प्रस्थापना होने से पहले ही भारत के जलयान पश्चिमी एशिया के अनेक भागों की यात्रा करते रहते थे। मुख्य रूप से पष्चिमी देशों की ओर से बसरा को भारत का प्रवेश द्वार माना जाता था। बहुमूल्य रत्नों, मोतियों, रजत, स्वर्ण के साथ अनेक उपयोगी वस्तुओं का व्यापार भारत की ओर से किया जाता था। ईसा की पहली दो शताब्दियों में पेत्रा नामक स्थान भारतीय वाणिज्यिक व्यापारिक वस्तुओं के विक्रय का प्रमुख केन्द्र था। दजला और फरात नामक दो नदियों के संगम पर बसा हुआ ‘उबला’ नामक नगर भारतीय वस्तुओं के खरीद का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। म्यानमार, स्याम, कम्बोडिया, हिन्द चीन, जावा, मेडागास्कर, अरब, पुर्तगाल, समुद्रमार्ग से भारतीयों ने सभ्यता और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाले नौचालक वर्ग से जुड़े भारतीय ही थे। दक्षिण में, चोल राजाओं की राजधानी कावेरीपट्टनम एक सुप्रसिद्ध बन्दरगाह था और राजेन्द्र चोल ने मलय द्वीप पर विजय प्राप्त कर भारतीय संस्कृति का व्यापाक प्रसार किया। चम्पा द्वीप से भारतीय सीधे चीन पहुँचते थे। चीन में हुवाई षान के नाम से प्रसिद्धि पाने वाले भारतीय भिक्षु हरिचन्द ने ईसा की पाँचवी शताब्दी में चीन हो कर मेक्सिको की यात्रा की थी।
    हरिचन्द अपने षिश्यों के साथ भरतीय ज्ञान, आध्यात्म की ज्योति जगा कर वृद्धावस्था में पुनः चीन आ गये। उन्होने योरोपवासियों से पूर्व ही अमेरिका की खोज कर ली थी। इस यात्रा का वर्णन एडवर्ड पी0 विनिंग नामक विदेषी लेखक ने ‘अज्ञात कोलम्बस’ षीर्शक से किया है। अफगानिस्तान, नेपाल, तिब्बत, खोतान, मंगोलिया, श्रीलंका, म्यान्मार, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, चम्पा जावा, बाली, बोर्नियो, चीन, जापान आदि अनेकानेक देषों में गणपति गणेष की पूजा अर्चना होती रही है। इण्डोनेषिया की मुद्रा या नोटों पर आज भी गणेष का चित्र अंकित रहता है। स्वर्ण भूमि एयरपोर्ट पर समुद्रमथंन की सोने की बड़ी सी मूर्ति बनी है। श्रीलंका में रामायण का 7150 वर्श पुराना सम्बन्ध है। रामसेतु उसका जीवित प्रमाण है।
    हिन्दू जीवन मूल्यों का प्रसार रामायण और रामकथा के माध्यम से लगभग 7 हजार 150 वर्शों से अधिक पुराना है। राम के प्रमाण रूस, इजिप्ट, से ले कर वियतनाम तक विस्तारित हैं। कोरिया जापान का सीधा सम्बन्ध अयोध्या राज्य से है। अयोध्या की राजकुमारी का विवाह कोरिया के षासक किम से हुआ था। आज भी भारत के साथ-साथ राम के जीवनवृत्त से सम्बन्धित षिलापट्ट विदेषों के पुरातत्व सर्वेक्षकों के लिये आष्चर्य का विशय है। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता बी.यस. वाकणकर द्वारा मिश्र से तीसरी षताब्दी में ब्राह्मी लिपि के एक षिलालेख को खोज निकालने से वहाँ वैदिक हिन्दू संस्कृति की विद्यमानता की पुश्टि होती है। यह षिलालेख मिश्र की राजधानी काहिरा के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित है। अबीसीनिया में बड़ी संख्या में कुशाणकालीन स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुई है। इतिहासकार अलबरूनी ने लिखा है कि खुरासान, फारस, इराक, मोसुल और सीरिया तक बौद्ध धर्म का बहुत अधिक प्रचार-प्रसार हो चुका था। सिख मत के प्रणेता गुरुनानक देव जी सन 1518 में अपने दो षिश्यों बाला और मरदाना के साथ सूरत से अरब देष गये। उनकी स्मृति में अदन में आज भी एक मन्दिर विद्यमान है। वे जेद्दा, मक्का भी गये थे, बगदाद, हलीब, तेहरान, इस्फान, तुर्किस्तान, ताषकन्द बुखारा, समरकन्द और अफगानिस्तान की यात्राएँ भी की और इस्लाम के गढ़ में जा कर भारत की सांस्कृतिक दिग्विजय का झण्डा गाड़ा था। भारत का विचार चिन्तन एवं संस्कृतियाँ श्रेश्ठ है लेकिन जब तक हम सामाजिक स्तर पर संगठित नहीं होंगे तब तक संस्कृतियों का संरक्षण एवं उत्थान सम्भव नहीं है। सभी पुरातन संस्कृतियाँ एक दूसरे का सम्मान करें परन्तु रुपान्तरण के दबाव से मुक्त रहें। यही भारतीय परम्परा है। पारिवारिक संस्कार, प्रकृति के प्रति आदर भाव और उनके संरक्षण के माध्यम से हमे पूरे विष्व में सार्थक बने। मानवता के लिये सुखोन्मुखी विचार के कारण विष्व में भारतीय विचार की व्यापकता रही। आज संसार में 3500 वर्श पुरानी ऋग्वेद की प्रति उपलब्ध है। नीति, सिद्धान्त, कर्म आध्यात्म का आज जितना भी साहित्य उपलब्ध है, वह इन वर्शों के बाद का है। संसार भर के भाषा विज्ञानियों ने यह स्वीकार कर लिया है और दुनिया की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत है। ब्रिटिष संग्राहल में ब्रिटेन में एक चौखट जैसा स्तम्भ है जिसमें नाग, स्वास्तिक और मयूर के चिन्ह है। एक अन्य पत्थर पर स्वास्तिक और अश्टदल कमल उत्कीर्ण है। स्वास्तिक और मयूर भारतीय चिन्ह है जो केवल वैदिक मन्दिरों में हो सकते हैं जो प्रमाण है कि ईसा पूर्व ब्रिटेन में वैदिक संस्कृति और मन्दिर हुआ करते थे। रोम और इटली के प्राचीन इतिहास की लगभग प्रत्येक पुस्तक में ‘वेस्टा’ मन्दिरों का जिक्र है जो विश्णु से सम्बन्धित हैं। इसे समझने के लिये ‘क्यूमंट’ की विष्व प्रसिद्ध पुस्तक रोमन सम्राटों की धारणाएँ (स्ष्म्जमतदपजम कमे म्उचमतंअतष्े त्वउंदे 1896) के पृश्ठ 442 महत्वपूर्ण है जिसमें लिखा है कि रोमन सम्राटों की धारणाएँ तथा उनके राजकुलों में होने वाली विधि भारतीय राकुलों जैसी ही थी। वेद कहते हैं ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ पूरा विष्व एक परिवार है। अफ्रीका की जुलू परम्पराएँ भी कहती हैं ‘उबुन्टू’ मानव एक है। दक्षिण अफ्रीका का आर्य समाज आन्दोलन इसी उबुन्टू भावना के साथ खड़ा होकर कार्य कर रहा है। संकल्पमंत्र कहता है कि ‘‘जम्बूद्वीपे भारत खण्डे आर्यावर्तेकदेषे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे बौद्धावताराय।’’ हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म एक वृक्ष की दो षाखाओं की तरह हैं। इसी तरह नाग पूजा की विधि भारतीय धर्म तन्त्र के साझा सूत्र हैं। नाग पूजा पूरे विष्व में होती है। ब्राह्मण और ब्राह्मण देवताओं का नाग से नाता बहुत बड़ा है। जल के साथ नाग का सम्बन्ध भारत की सीमाओं से भी परे जाता है। बाली जैसे द्वीपों सहित बासुकी या नाग वासुकी को जल देवता वरुण का सहयोगी माना जाता है।
आत्मवत सर्व भूतेशु
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीड़नम।।
    हमारे पास स्वाभाविक रूप से यह अनुभव और विचार है कि सभी भगवान उस एक ही दिव्य सत्य के अनेक रूप है जो पूरे जगत में अन्तर्भूत है। संस्कृति उन सब गुणों का समूह है जिन्हें मनुष्य शिक्षा तथा प्रत्यत्नों द्वारा प्राप्त करता है जिसके आधार पर मनुष्य का व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन विकसित होता है। भारतीय संस्कृति ने पूरे विश्व को इसी आधार पर विविधता और व्यापकता तथा समन्वय से प्रभावित किया है। भारतीय संस्कृति ज्ञान प्रधान संस्कृति है:-
ईशावाश्यमिदं सर्व यत किन्चजगत्यां जगत।
तेन त्यक्तेन भुंजीयाः मा गृधः कास्यस्वित घनम्।।
    दुनियाँ में जो भी जीवन है, सब ईश्वर से भरा हुआ है। कोई चीज ईष्वर से खाली नही हैं। यहाँ केवल उसी की सत्ता है। वही सबका मालिक है। यह समझ कर हमें सब उसी को समर्पण करना चाहिये, और जो कुछ उसके पास से मिले उसे प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिये। यहाँ मेरा कुछ भी नही, सब ईश्वर का है। यही विचार/ज्ञान इशोपनिषद देता है। धर्म, कर्म, आत्मा, पुर्नजन्म हिन्दुत्व, आश्रम, मोक्ष मातृपूजा भारतीय जीवन के मूल तत्व है। पूरा विश्व इस ज्ञान से पूर्व में प्रभावित होता रहा है। अनेक कष्टों, कुविचारों के परिणाम देख पुनः विश्व भारत की ओर देख रहा है।
- लेखक विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के सचिव एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं।

Tuesday 28 February 2023

 

   
                                                         उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता

                                    *अशोक कुमार सिन्हा

  उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का सम्बन्ध इसाई मिशनरी विरोध और आजादी के आन्दोलन से रहा है |यहाँ पत्रकार एवं पत्रकारिता दोनों अपनी मिशनरी कार्य शैली के कारण अपनी अलग पहचान बनाने में अग्रणी रहें है | हिंदी का पहला अख़बार 1826 में उदन्त मार्तंड’’ कलकत्ता से जरूर निकला परन्तु उसके संपादक व् प्रकाशक उत्तर प्रदेश के कानपुर से गए प.युगुल किशोर सुकुल थे | उत्तर प्रदेश में श्री गोविन्द रघुनाथ थत्ते के संपादकत्व में राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद’’ ने जनवरी 1845 में बनारस अखबार’’ का प्रकाशन प्रारंभ किया था जो प्रदेश का पहला अख़बार माना जाता है | बनारस से ही श्री तारा मोहन मिश्र ने 1850 में ‘सुधाकर’ का प्रकाशन किया जिसकी लिपि देवनागरी थी | 1852 में आगरा से मुंशी सदासुख लाल के संपादकत्व में ‘बुद्धि प्रकाश’ का प्रकाशन हुआ | ऐतिहासिक महत्व के ‘कविवचन सुधा’ का प्रकाशन 1868 में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने वाराणसी से किया जिसने हिंदी पत्रकारिता में एक इतिहास रचा |पहले यह मासिक छपता था जो बाद में पाक्षिक छपने लगा | इसके प्रकाशन से हिंदी पत्रकारिता का नया युग प्रारम्भ हुआ | यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में छपता था | यहीं से भारतेन्दु जी ने हरिश्चंद्र मैगज़ीन ,हरिशंद्र चन्द्रिका और बाला बोधिनी नामक पत्रिकाएं भी प्रकाशित की |

             स्वाधीनता आन्दोलन के समय प्रदेश के पत्रकारिता का मूल स्वर राष्ट्रीयता ,राष्ट्र हित और जनजागरण था| सन 1877 में प्रयाग से प.बाल कृष्ण भट्टने ‘हिंदी प्रदीप’ मासिक पत्र का प्रकाशन हिंदी प्रवर्धनी सभा प्रयाग के सहयोग से प्रारंभ किया |इस क्रांतिकारी प्रयास से पत्र को अंग्रेजी शासन का कोपभाजन बनाना पड़ा क्योंकि इसमें राष्ट्रीयता की प्रखरता इतनी तेज थी जो अंग्रेजों को सहन नहीं हो रही थी | प्रदेश के प्रतापगढ़ में एक छोटी सी रियासत थी कालाकांकर ,जहाँ अंग्रेजियत में पले व्  इंग्लैण्ड से पढ़े  राजा थे रामपाल सिंह | इन्होने कालाकांकर से ही रायल शीट के दो पन्नों का दैनिक अखबार ‘हिन्दोस्थान’ का प्रकाशन कराया जिसके सम्पादक थे प.मदन मोहन मालवीय जिनकी मान्यता थी ‘पत्रकारिता एक महान वैज्ञानिक कला है’| मालवीय जी नें 1907 में प्रयाग से ‘अभुदय’ तथा अंग्रेजी भाषा में ‘The Leader’ नामक पत्र भी निकाला | सन 1871 में प. बुद्धि बल्लभ पन्त ने अल्मोड़ा से ‘अल्मोड़ा समाचार’ निकाला जिसे अंग्रेजों ने बंद करा दिया | महर्षि दयानंद से प्रेरणा ले कर मुंशी बख्तावर सिंह ने 1870 में शाहजहाँपुर से ‘आर्य दर्पण’ साप्ताहिक निकाला | ऐतिहासिक महत्त्व की कालजयी साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ सन 1900 में प्रकाशित होनी प्रारंभ हुई |

             राष्ट्रिय स्वाधीनता संग्राम के समय 1920 में काशी के शिवप्रसाद गुप्त ने दैनिक ‘आज’ की नींव रक्खी जिसके प्रथम संपादक श्री प्रकाश जी थे| दुसरे नंबर पर इसके सम्पादक प.बाबूराव विष्णु पराड़कर बने जो मूलतः महाराष्ट्र के थे  परन्तु ‘आज’ को इन्होने नया आयाम,नई गति,निर्भीक राष्ट्रीय विचारधारा व् हिंदी को सुन्दर स्वरुप  प्रदान की  | इनपर अंग्रेजों ने राजद्रोह का अभियोग भी लगाया | क्रांतिकारी पत्रकारिता के क्रम में पराड़करजी के सहयोग से 1929-30 में श्री सीताराम के संपादकत्व में  गुप्तरूप से ‘रणभेरी’का प्रकाशन किया गया जिसके पीछे पूरी अंग्रेज पुलिस और सी.आई.डी. लगी रही परन्तु उसे पकड़ नहीं सकी |कालांतर में दैनिक आज का अंग्रेजी संस्करण Today भी प्रकाशित हुआ तथा ‘अवकाश’ पत्रिका का भी प्रकाशन हुआ परन्तु यह बाद में बंद हो गया|

                      काशी में सन 1930-1942 के मध्य और आज़ादी के बाद 1975-77 में भूमिगत हो कर साइक्लोस्टाईल या हस्तलिखित भूमिगत पत्रों का प्रकाशन आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने पर किया गया| रणभेरी,शंखनाद ,खबर आदि नामों से प्रकाशित इन पत्रों में संपादक व् प्रकाशक के नाम प्रायः शहर कोतवाल और कलेक्टर मुद्रित रहते थे| ये पत्र विभिन्न स्थानों से और स्थान बदल कर निकाले  जाते थे | स्वतंत्रता आन्दोलन के समय रणभेरी नामक गुप्त पत्र का प्रकाशन  शहर कोतवाली के एक सिपाही के कमरे से साइक्लोस्टाईल मशीन लगा कर किया जा रहा था और रात के अँधेरे में ही ४ बजे भोर में उसे घरों के दरवाजे के नीचे से चुपके-चुपके सरका दिया जाता था ,जब कि शहर की पूरी सी.आई.डी. और पुलिस उसे शहरभर ढूढती रहती थी| इन पत्रों के माध्यम से सरकारी दमन का विरोध खुल कर किया जाता था |इन पत्रों से सम्बंधित मुख्य रूप से आचार्य नरेंद्र देव व् विष्णु राव पराड़कर की गिरफ्तारी की गिरफ्तारी कभी नहीं हो पायी | भूमिगत प्रेस ने देश की स्वतंत्रता आन्दोलन की ज्वाला प्रज्वलित करनें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |

                      इलाहाबाद में जन्मे परन्तु कानपुर को कर्मस्थली बना कर प्रसिद्ध क्रन्तिकारी श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ साप्ताहिक निकाला जो बाद में दैनिक हो गया |विद्यार्थी जी ने इस पत्र के माध्यम से न केवल क्रांतिकारियों की मदद की वरन पत्रकारिता के उच्य मानदंडों व् आदर्शों को भी स्थापित किया |शहीद भगत सिंह ने भी इस अखबार में गुप्त रह कर 6 महीने तक उप सम्पादक का कार्य किया | बनारस से सन 1932 में ही प्रमुख साहित्यिक पत्र ‘जागरण’ निकला जिसके संस्थापक थे प.विनोद शंकर व्यास और सम्पादक थे आचार्य शिव पूजन सहाय| यह पाक्षिक पत्र जय शंकर प्रसाद के मार्गदर्शन में अपने  साहित्यिक स्वरूप में प्रसिद्ध हुआ | गोरखपुर से 1919 में प.दशरथ द्विवेदी नें ‘स्वदेश’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला जिसके देशभक्ति पूर्ण लेखों के कारण संस्थापक संपादक द्विवेदी जी व् लेख लिखने के कारण ‘उग्र’ जी को जेल जाना पड़ा | पूर्वांचल का यह प्रसिद्ध पत्र विदेशों में भी मंगा कर पढ़ा जाता था|

                 प्रदेश की प्रमुख साहित्यिक साप्ताहिक एवं मासिक पत्रिकाओं में हंस ,सरस्वती, माधुरी,अभुदय,सनातन धर्म,संसार,संगम,देशदूत,समाज,मर्यादा,स्वार्थ,चाँद एवं सुधा आदि मील का पत्थर सिद्ध हुईं |श्री शिव मंगल गांधी ने राष्ट्रिय विचारधारा से ओतप्रोत ‘जीवन’साप्ताहिक निकाला |शिवकुमार शास्त्री ने 1915 में ज्ञान शक्ति व् गया प्रसाद शुक्ल सनेही नें ‘कवी’नामक पात्र निकाला |बागी बलिया से बलिया गज़ट,बिहान,संसार नामक पत्र प्रकाशित हुए | मिर्ज़ापुर के बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमधन’ द्वारा सम्पादित ‘आनंद कादिम्बनी’ व् खिचड़ी समाचार भी अपनी निर्भीक पत्रकारिता के लिए याद किया जाता है | स्वतंत्रता पूर्व इन पत्रों का मूल स्वर राष्ट्रीयता,राष्ट्रहित,स्वतंत्रता और जनजागरण था जो स्वतंत्रता बाद क्षेत्रीय समस्याओं पर केन्द्रित हो गया |

                    इलाहाबाद से ‘भारत’ और ‘अमृत पत्रिका’ नामक दो समाचारपत्र निकले थे ,इसके अतिरिक्त यहाँ से ‘सुकवि’ ‘सुमित्रा’ मासिक व् ‘रामराज्य’ साप्ताहिक तथा वर्तमान और ‘विश्वामित्र’ दैनिक पत्र भी प्रकाशित हुए |

                    लखनऊ से विप्लव ,वासंती ,रसवंती ,बालविनोद,युग चेतना ,पांचजन्य,राष्ट्रधर्म और तरुण भारत का प्रकाशन महत्वपूर्ण है |1947 के बाद यहाँ से नवजीवन,स्वतंत्र भारत, The pioneer,National Herald,The Times Of India,The Hindustan Times, The Indian Express,The Economic Times, नव भारत टाइम्स ,राष्ट्रीय सहारा,हिन्दुस्तान, आज ,राष्ट्रीय स्वरुप,स्वतंत्र चेतना ,कौमी आवाज,कुबेर टाइम्स,अमर उजाला ,अमृत प्रभात,डी. एन. ए.,जन संदेश टाइम्स,उर्दू दैनिक आग ,मरकज़ जदीद,आई नेक्स्ट,उर्दू रोजनामा,न्यू हेरम्ब टाइम्स,और अवधनामा जैसे महत्वपूर्ण अखबारों का प्रकाशन हो रहा है |राजधानी होने के कारण लगभग सभी टी.वी.चैनल और समाचार एजेंसियां यहाँ कार्यरत हैं| राज्य सूचना विभाग द्वारा ‘उत्तर प्रदेश सन्देश’नामक सुन्दर पत्रिका का प्रकाशन होता है | प्रदेश के प्रमुख शहरों जैसे कानपुर ,गोरखपुर,फैजाबाद,वाराणसी,आगरा,मेरठ,और सहारनपुर से कई महत्वपूर्ण  समाचारपत्रों का प्रकाशन हो रहा है| फैजाबाद से जनमोर्चा,मेरठ से रामराज्य,और बटुक,आगरा से उजाला व् सैनिक के प्रकाशन का उल्लेख करना आवश्यक है| गोरखपुर से ‘कल्याण’ और मथुरा से ‘युग निर्माण’ नामक धार्मिक पत्रिकाएं और लखनऊ सहित सभी महत्वपूर्ण सहरों से बड़ी संख्या में अच्छी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही है |

                  उत्तर प्रदेश के प्रमुख व् विशिष्ट पत्रकारों में प.युगुल किशोर शुकुल,भारतेंदु हरिश्चंद्र ,प.मदन मोहन मालवीय,महावीर प्रसाद द्विवेदी ,गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबू राव विष्णु पराड़कर,श्री प्रकाश, प.कमलापति त्रिपाठी, डा.सम्पूर्णानन्द,मुकुट बिहारी वर्मा,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’,रघुवीर सहाय, शीला झुनझुनवाला ,अक्षय कुमार जैन,अशोक जी ,लक्ष्मी शंकर व्यास,अच्युदानंद मिश्र, नरेन्द्र मोहन ,डा.विद्या निवास मिश्र ,भगवान् दास अरोड़ा,जय प्रकाश भारती, अतुल माहेश्वरी,अशोक अग्रवाल , के.विक्रम राव ,शार्दुल विक्रम गुप्त,भानु प्रताप शुक्ल,वचनेश त्रिपाठी,वीरेश्वर द्विवेदी,राजनाथ सिंह सूर्य,नन्द किशोर श्रीवास्तव,आनंद मिश्र अभय,ओम,बलदेव भाई शर्मा,नरेंद्र भदौरिया, प्रकाश पांडेय आदि के नाम प्रमुख हैं|  

           उत्तर प्रदेश 2,38,566 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला 21 करोड़ से भी अधिक जनसँख्या वाला प्रदेश है | पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य दैनिक जीवन की मुख्य गतिविधियों ,राजनैतिक घटनाओं,सामजिक जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत करना है साथ ही वह साहित्यिक भाषा और उनकी विधाओं का भी विकास करती है| स्वत्रंयोत्तर भारत में उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता का आयाम और उद्देश्य तेजी से बदला है | तकनिकी का तेजी से विकास हुआ है साथ ही बाज़ारवाद के  प्रभाव ने पत्रकारिता का स्वरुप बदला है | इन सब के वावजूद प्रदेश की पत्रकारिता ने बहुत तेजी से विकास किया है और अपने नए आयाम तलाशे हैं |                               

 

  *लेखक उत्तर प्रदेश के वरिष्ट प्रशासनिक अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हैं,सम्प्रति लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के निदेशक|