Friday 26 September 2014

कलश नहीं नीव का पत्थर बनाता है संघ

अशोक कुमार सिन्हा
भारतवर्ष आज तीव्र परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. अनेक प्रकार की समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं. विघटनकारी प्रवत्तियां अस्थिरता निर्माण करके देश की एकता एवं अखंडता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाने पर आमादा हैं. भारतवर्ष की सीमाओं पर प्रतिदिन घटनाएँ घटित हो रही हैं. देश में जातीय विषमताओं के पूर्व में बोये गए बीज अब वृक्ष बनकर जहरीले फल देने लगे हैं. सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक उथल-पुथल नया संकेत दे रही है.
      ऐसी स्थिति में भारतीय समाज को आसेतु-हिमाचल एकसूत्र में पिरोने की साधना में रत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता को बौद्धिक जगत तीव्रता से अनुभव करने लगा है. नौजवान पीढ़ी यह जाने को उत्सुक है कि संघ वास्तव में क्या करता है. वह किस प्रकार स्वयंसेवकों में सम्पूर्ण देश व समाज के प्रति एकात्मकता का भाव निर्माण करता है. वह कौन से तत्व हैं जिनके आधार पर स्वयंसेवक प्रांत-निष्ठा, भाषा-निष्ठा, सम्प्रदाय-निष्ठा आदि से ऊपर उठ जाता है और राष्ट्र-निष्ठा बन जाता है. वह किसी भवन का कलश नहीं नीव का पत्थर बनना चाहता है. ऐसे ही स्वयंसेवकों में से जब कोई प्रधानमंत्री जैसे पद पर पहुंचकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देने लगता है तब लोगो को सुखद आश्चर्य भी होने लगता है “सबका साथ सबका विकास” का नारा भी नया लगाने लगता है. वस्तुतः सबके मूल में है संघ की कार्यपद्धति और रचना. बारह सौ वर्षों की देश की पराधीनता की उपजी सामाजिक-मानसिक विकृतियां तथा गुलामी की विसमताओं का हल ढूँढ़ते-ढूँढ़ते नागपुर के एक युवा क्रांतिकारी डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार जी ने, जो पेशे से एक चिकित्सक थे, परंतु समाज के दर्द को महसूस कर विजया दशमी के दिन सन 1925 में पांच किशोरवय नवयुवकों को साथ लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. उद्देश्य था भारत राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाना. व्यक्ति निर्माण के माध्यम से एकता और अखंडता, समृद्धि और नवनिर्माण, तेजस्विता और स्वावलंबन, समता और बंधुता, स्वतंत्रता और सुरक्षा को पोषक तत्व प्रदान करना हमारी असफलता, दुर्बलता, गरीबी, असमानता का मूल कारण राष्ट्रीय एकता का अभाव है. अतः बिना जाति, पंथ, भाषा के भेदभाव के सभी संगठित हो, सम्मिलित बुद्धि से पग से पग मिलाकर चलें. सबके मनों में समान बोध हो यही संकल्पना रखी गई है.
      अपने देश और उसकी परम्पराओं के प्रति, उसके ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रति, उसकी सुरक्षा तथा समृद्धि के प्रति जिनकी अव्यभिचारी एवं एकान्तिक निष्ठा हो- वे सभी जन राष्ट्रीय कहे जायेंगे. ऐसे सभी व्यक्ति बिना जाति, पंथ, भाषा के भेद के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवक बनते हैं तथा राष्ट्र निर्माण में योगदान करते हैं. संघ ऐसे व्यक्तियों को साम्प्रदायिक मानता है, जो उपयुक्त प्रकार की निष्ठा रखते हुए भी, शेष समाज से अलग, अपने पंथ, बिरादरी, भाषा और तथाकथित जाति के आधार पर सोंचते हों, और अपने निजी लाभ के लिए एवं राजनैतिक सत्ता के उपयोग के निमित्त, ऐसे विशेष अधिकारों और सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हों, जो कि सर्वसामान्य समाज को उपलब्ध न हों. इस उद्देश्य से वे दूसरों के साथ घृणा व द्वेष भी करें, उनका विरोध करें तथा कभी-कभी हिंसात्मक उपायों का भी अवलंबन करें.
      संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने ऐसे राष्ट्रीय व्यक्तियों का, जो स्वयं की प्रेरणा, व स्वेक्षा से राष्ट्र सेवा में लगें, को स्वयं सेवक माना तथा इनके अन्दर राष्ट्रभक्ति, चरित्र निर्माण, संस्कार तथा विकास के लिए दैनिक शाखा, जो प्रायः एक घंटे की होती है- में आने को प्रेरित किया. ऐसी शाखाएं सम्पूर्ण भारत में लगभग 55 हजार स्थानों पर आज भी लगती हैं जिसमें कोई भी भारतवासी भाग ले सकता है. विदेशों में भी तीन हजार के लगभग शाखाएं 33 देशों में लगती हैं. साप्ताहिक मिलन, रात्रि मिलन, मित्र मंडली आदि देशकाल की आवश्यकतानुसार अनेकों हैं. ऐसी शाखाओं की मुख्य पांच विशेषताएं हैं- पहली विशेषता है कि शाखा दैनिक, अनवरत लगती है इन शाखाओं पर जाड़ा, गर्मी और बाढ़ आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. दूसरी विशेषता है कि इस एक घंटे की शाखा में प्रति मिनट निर्धारित कार्यक्रम होते हैं जैसे- खेल, व्यायाम, योगासन, दंड व्यायाम, गीत, सुभाषित वाचन, जन्मदिन के अनुसार भारतीय महापुरुषों की जीवनी का स्मरण, पंचांग तथा संघ प्रार्थना. संघ स्थान पर राष्ट्र के प्राचीनतम भगवा ध्वज को ही गुरू मानकर उसकी प्रार्थना की जाती है. जो भारत माता का प्रतीक है. तीसरी विशेषता है कि इस शाखा में अपने को राष्ट्रीय माने वाला इस देश का प्रत्येक नागरिक चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई हो सभी भाग ले सकते हैं. संघ शाखा के द्वार सभी के लिए खुले हैं. चौथी विशेषता है, सर्वदूर जहां-जहां भारतीय हैं, वहां शाखा हैं. विदेशों में यह भारतीय स्वयं सेवक संघ, या हिन्दू स्वयं सेवक संघ के नाम से जाना जाता है. पांचवी विशेषता है कि सामान्य कार्यक्रम-शाखा का जो कार्यक्रम है वह साल में कभी एक-दो बार करेंगे, किसी त्यौहार की तरह ऐसा नहीं है. शाखा प्रतिदिन लगती है, शाखा एक घंटे की ही लगती है. शेष 23 घंटे स्वयं सेवक अपने निजी कार्य के उपयोग में ला सकते हैं. इसमें सभी आयु-वर्ग के लोग चाहें बाल, किशोर, प्रौढ़ या वृद्ध हों भाग ले सकते हैं. इन शाखाओं पर केवल पुरुष स्वयं सेवक ही भाग ले सकते हैं. महिलाओं की शाखा अलग से राष्ट्र सेविका समिति के नाम से लगती है. यही संघ कार्यकर्ता संघ की कार्य चेतना शक्ति व खेवनहार होते हैं. इनका गहन प्रशिक्षण प्रत्येक जिले में संघ शिक्षा वर्ग के नाम से वर्ष में दो बार आयोजित होता है. चिंतन, चर्चा, निर्णय, योजना, परिश्रम और सफलता यह समूह में होता है, यहीं संस्कारों की नींव पड़ती है. आदर, आत्मीयता, प्रेम, श्रद्धा और विश्वास इसी शाखा में जन्म लेता है. ध्येय के साथ एकरूपता और अन्तःस्फूर्ति का जन्म इसी शाखा पर ही हो जाता है.
      यही स्वयंसेवक जब कभी बाढ़, सूखा, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना आती है तो स्वतःस्फूर्त भावना से समाजसेवा में लग जाता है परंतु राजनैतिक स्वार्थ हर शक्ति को अपनी सवारी में जोतने का लोभी होता है, और जो शक्ति उसके इस उद्धेश्य को पूरा नहीं करती है उसके प्रति बरबस ही संदेह और अविश्वास के वातावरण बना देने की प्रवृत्ति का प्रचलन भी राजनीति में रहा है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी इसी कारण संदेह के घेरे में उलझाने के प्रयत्न हो रहे हैं. बिना उचित कारण व सबूत के संघ पर तीन बार प्रतिबन्ध लगे. इसे साम्प्रदायिक कहा गया परंतु निरंतर 88 वर्षों से यह संगठन राष्ट्र साधना में रत है. इसकी आर्थिक व्यवस्था स्वशाषी तथा स्वावलम्बी है. वर्ष में एक बार समर्पण भाव से स्वयं सेवक भगवा ध्वज को गुरू मानकर गुरू दक्षिणा करता है. यही एकमात्र इसका आर्थिक आधार है. हिन्दू किसी उपासना पद्धति का नाम नहीं है, यह राष्ट्रीयता की पहचान है. इस मान्यता से हिन्दू समाज का संगठन राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है. “राष्ट्र स्वाभिमानी बने, भारतीय संस्कृति, इतिहास, महापुरुष यह गर्व की बात है” ऐसा भाव जागे तभी राष्ट्र आगे बढेगा. भारत जगत कल्याण के लिए बना है, पूरा विश्व सुखी हो, संघ मानव मूल्यों के मौलिक दर्शन में विश्वास करता है. समग्र सोच के साथ आध्यात्म केन्द्रित विकासपूर्ण आदर्शनीति इसकी थाती है. संघ कुछ भी नहीं करेगा, इसका स्वयं सेवक राष्ट्र हित में सब कुछ करेगा. यही कारण है कि संघ के स्वयं सेवक 36 अनुषांगिक संगठनों सहित लगभग जीवन के हर क्षेत्र में राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे हैं. शिक्षा, व्यवसाय, संस्कृति, बनवासी, गिरिवासी, चिकित्सा, स्वास्थ्य, पर्यावरण व सामाज कल्याण जैसे सभी क्षेत्रों में स्वयं सेवक निष्ठापूर्वक कार्य कर रहा है. विश्व में भारतीय विचार की व्यापकता है. अतः हर देश में भारतीय व्यक्ति कार्यरत हैं उसका आधार है हमारा भारतीय जीवन दर्शन. संघ इसी भारतीयता को हिंदुत्व कहता है. आप चाहें जिस भी शब्द का प्रयोग करें परंतु राष्ट्र सबसे आगे और उसका हित सबका हित है यही संघ की प्रासंगिकता है.
(लेखक- पूर्व वरिष्ठ पूर्व प्रसाशनिक अधिकारी रहे हैं, तथा वर्तमान में लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, लखनऊ में निदेशक हैं.)