Friday 29 July 2022

 स्व जागरण में हिन्दी पत्रकारिता का योगदान

अशोक कुमार सिन्हा
'हिन्दी, हिन्दू हिन्दुस्थान' का नारा देश के 'स्व' जागरण एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार, शिक्षा विद, राजनेता एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पं0 मदन मोहन मालवीय जी ने दिया था। यह नारा इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज तक इसका प्रयोग हो रहा है। देश की हिन्दी पत्रकारिता देश में  'स्व'  जागरण तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन की ध्वजवाहिका रही है और आजादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने के की बाद भी इसकी महत्ता बनी रहेगी। देश में आज भी प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा सोशल मीडिया देश के, स्वनागरण में पूरी निष्ठा से रत है यही कारण है कि चाहे पूरे देश में राष्ट्रवाद देशप्रेम और  'स्व' जागरण का कार्य एक साथ सम्भव हो रहा है। बाबू विष्णुराव राव पराड़कर जी ने कहा था कि ''परतन्त्रता विष नदी मांगल्यविध्वंसिनी''। अन्याय, अज्ञान, प्रपीडऩ और प्रवंचना के संहारक हिन्दी के ही पत्र-पत्रिकाएँ अग्रज भूमिका में रही है। स्वतन्त्रता आन्दोलन से ले कर आज तक 'स्व' जागरण के महायज्ञ में हिन्दी पत्रकारिता की डाली गई आहुति सतत स्मरणीय रहेगी और आज भी सार्थक भूमिका निभा रही है। पत्रकारिता जनभावना की अभिव्यक्ति रही है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय कहा जाता था कि:-
खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।।
भारत की हिन्दी पत्रकारिता ने जनमानस की भाव लहरियों पर अद्भुत प्रभाव डालने का कार्य किया है। स्वतन्त्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश करने के बाद भी आज यह अनन्त यात्रा जारी है। बस रूप परिवर्तित हुआ है। भाव वही बना हुआ है। 'स्व' जागरण हेतु महार्षि अरविन्द, भूपेन्द्र नाथ दत्त, डॉ. एनी बेसेन्ट, बाल गंगाधर तिलक, प. मदन मोहन मालवीय, गणेश शंकर विद्यार्थी और महात्मा गान्धी जैसे महापुरुषों ने राष्ट्र के 'स्व' जागरण हेतु समाचार पत्रों से अपना सम्बन्ध रखा। राष्ट्रीय चेतना के अन्तर्गत मातृभूमि का स्तवन, स्वदेश गौरव-गान, अतीत चिन्तन, राष्ट्रीय जागरण, वीर प्रशस्ति, संघर्ष, 'स्व' से, प्रेम, यवनो के प्रति घृणा, स्वदेशी का प्रचार, समाज सुधार, राष्ट्रभाषा के विषय हिन्दी पत्रकारों के प्रिय विषय होते थे। महर्षि अरविन्द घोष ने कहा था कि राजनैतिक स्वतन्त्रता राष्ट्र की प्राण वायु है और इसकी अवज्ञा कर के सामाजिक सुधार, नैतिक उत्थान और 'स्व' का जागरण असम्भव है। हिन्दी पत्रकारिता ने न केवल जनमानस में 'स्व' की भावना भरी वरन जागरण कर के संघर्ष का वातावरण निर्माण किया। तभी अंग्रेजों ने भारत छोड़ा। उदन्त मार्तण्ड, बंगदूत, समाचार सुधावर्षण, बनारस अखबार, पयामे आजादी एक जुट हो कर जनजागरण और स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा लगाया। संवाद कौमुदी, दैनिक आज, रणभेरी, कविवचन सुधा, भारत मित्र जैसे समाचारपत्रों ने नवजागरण और भारतीयता तथा स्वदेशी का उद्घोष किया। पत्रकारों में बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र राधा चरण गोस्वामी, प्रेमधन, अम्बिकादत्त व्यास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, लाल-बाल-पाल की तिकड़ी ने जनजागरण में प्राण फूंक दिया था। बच्चा-बच्चा स्वदेशी का गीत गाने लगा। स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे पा कर रहेगें- भारतवासियों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। कालाकांकर से और बाद में प्रयागराज से प्रकाशित 'हिन्दुस्तान' मे संस्कृति और स्वदेश के प्रति जागरूक बनाया। बाबू विष्णुराव पराड़कर के लेखों पर अंग्रेजों को सेंसरशिप लगानी पड़ी। बालमुकुन्द गुप्त, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, गणेश शंकर विद्यार्थी, जैसे उग्र राष्ट्रवादी पत्रकारों को ने देश के अन्दर 'स्व' का इतना प्रचण्ड लहर पैदा कर दिया कि अंग्रेजो के दांते खट्टे हो गये। लोकमान्य तिलक के सन्देशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिये पूजा से प्रकाशित केसरी का हिन्दी संस्करण को पं. माधवराव सपे्र ने 13 अप्रैल 1907 को नागपुर से निकाला। मराठी केसरी के विभिन्न लेखों का हिन्दी अनुवाद कर के हिन्दी केसरी में प्रकाशित किया जाता था। प्रयागराज से प्रकाशित 'स्वराज' नामक साप्ताहिक के सम्पादक शान्ति नारायण भटनागर को 'स्व' जागरण के अपराध में जेल जाना पड़ा। काशी की नागरी प्रचारिणी पत्रिका (1897) तथा सरस्वती (1900) ने अपने साहित्यिक स्वरूप से स्वदेशी और हिन्दी भाषा के अलख को जगाये रखना।
महात्मा गान्धी के स्वाधीनता आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन को नवजीवन, हरिजन, युगान्तर बन्दे मातरम्, नवशाक्ति संध्या, अभ्युदय, कर्मयोगी, मर्यादा, आज, प्रताप, स्वतन्त्र भारत, अर्जुन, वर्तमान कर्मवीर, हिन्दू पंच, सुधा, विशाल भारत आदि बसों हिन्दी पत्र में राष्ट्रीय चेतना में परिवर्तित कर दिया।
बाबूराव विष्णु पराड़कर ने 1943 में काशी से 'संसार' नामक पत्र का प्रकाशन किया। दैनिक आज के प्रधान सम्पादक रहे तथा 'रणभेरी' नामक गुप्त पत्र निकाल कर काशी सहित पूर्वाचंल में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जन जागरण करते रहे। मराठी मूल के होते हुए इन्होंने हिन्दी भाषा के लिये अतुलनीय कार्य किया। 'स्व' जागरण हेतु इन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। माखनलाल चतुर्वेदी मूलतः: कवि एवं पत्रकार थे। वे कहते थे कि युग के घटनाओं के नियंत्रक, संचालक, आलोचक और लेखक को ही पत्रकार कहते हैं। नवीन युग का निर्माण करना भी पत्रकार की जिम्मेदारी है।
समाज में 'स्व' के जागरण हेतु अर्वाचीन युग बहुत ही सार्थक एवं निष्ठावान रहा। अब धारणा है कि पत्रकारिता मिशन से व्यवसाय हो गया है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता का व्यवसाय से जुडऩा युग धर्म है। कोई स्वरूप समाज में स्थाई नहीं रहता। युग बदलने पर स्वरूप भी, अवश्य बदलेगा। स्वतन्त्रता काल में पत्रकारिता शस्त्र एक शस्त्रशाला दोनो थी पत्रकारिता। स्वतन्त्रता के समय पत्रकारों एवं वकीलों की अहम भूमिका थी। आज की पत्रकारिता भी जनजागरण के कार्य में उसी निष्ठा से रत है। राष्ट्रवाद का इतनी तेजी से प्रचार-प्रसार एवं भारतीय समाज का संगठित होना इस बात का प्रमाण है। राजस्थान में कन्हैयालाल के गर्दन काटने और अमरावती में हृदय विदारक घटना के प्रति समाज को खड़ा करने में पत्रकारिता एवं सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही। जैसे स्वतन्त्रता युग में चौरी-चौरा काण्ड और जलियांवाला बाग की घटना को पूरे विश्व में पत्रकारिता के माध्यम से विस्तारित किया गया। उसी प्रकार आज भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में टी0वी0 और सोशल मीडिया अपनी भूमिका को उसी प्रकार सटीकता के साथ उठा रहा है। राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, ज्ञानवापी में शिव मन्दिर प्रकरण के साथ-साथ ताजमहल, कुतुब मीनार, लखनऊ के लक्ष्मण टीला पर समाज के 'स्व' को जगाने का कार्य जनसामान्य के साथ हिन्दी मीडिया पूरी निष्ठा के साथ कर रही है।
मीडिया जनता के प्रतिनिधि होने के साथ साथ गूंगी जनता के मुखर वकील की भूमिका आज भी निभा रही है। पत्रकारिता के साथ राष्ट्रीय जागरण का लम्बा इतिहास जुड़ा हुआ है। मीडिया ने 1947 के समय भी यह सिद्ध किया था कि स्वतन्त्रता मात्र एक मनोभाव, विचार या नारा नहीं वरन जीवन जीने की बुनियादी शर्त है। ये इतना बड़ा मूल्य है कि उसके लिये आप प्राणों की बाजी भी लगा सकते हैं। कुछ भी गंवा सकते है। पत्रकारिता ने हमें वह मूल्य दिया है। यही भाव इस समय समाज को राष्ट्रभाव के जागरण में हिन्दी पत्रकारिता सहित सभी भारतीय भाषाओं में हो रहा है। पत्रकार विद्वान नहीं विद्यावान होता है। हमारी परम्परा रही है कि विद्वान में थोड़ा सा प्रभुता बोध होता है जब कि विद्यावान में विनम्रता। जब आप में विनम्रता होती है तो लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएँ कम आती है।
आज की पत्रकारिता आधुनिक जीवन का विश्वकोष बन गई है। अकेले उत्तर प्रदेश से 42 समाचारपत्र असहयोग आन्दोलन के समर्थन में निकले थे। जनता के लिये काम करना पत्रकारिता का महत्वपूर्ण कार्य बन गया है। ऐसा नहीं था कि पुराने समय में पत्रकारिता उद्योग नहीं था। स्वदेश, स्वराज औ स्वाजागरण को पत्रकारिता ने अपना लक्ष्य बना लिया था। आज भी पत्रकारिता में राष्ट्रवाद की भावना जनता के सम्मान की रक्षा तथा उसकी समस्याओं को सुलझाने में मीडिया की भूमिका अहम है। सूचना के अधिकार ने इस 'स्व' के जागरण में एक अहम भूमिका निभाई है। हिन्दी भाषी क्षेत्र से प्रकाशित, प्रसारित और सोशल मीडिया के सहयोग से जनसहभागिता स्व का निर्धारण तथा उसके प्रति नवजागरण का कार्य करने के लिये मीडिया धन्यवाद की पात्र है।
(लेखक विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के प्रमुख, पत्रकारिता के अध्यापक तथा पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं।)