Wednesday 28 September 2022

 

भारतीय जनता पार्टी का भारत में विस्तार
                                                       *अशोक कुमार सिन्हा
भारत को समृद्धि, एकता, शक्तिशाली, स्वावलम्बी और आदर सहित सम्मान दिला कर सम्पूर्ण विश्व में सर्वोच्च स्थान दिलाने का संकल्प ले कर एक राष्ट्रवादी राजनैतिक संगठन के रूप में इस दल का गठन किया गया था। नये नाम के साथ इसकी स्थापना 8 अप्रैल 1980 को नई दिल्ली के कोटला मैदान में एक विशाल कार्यकर्ता सम्मेलन बुला कर किया गया था, जिसके प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी निर्वाचित हुये थे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दल का भारत के राजनैतिक क्षितिज पर यह पुनर्जन्म था। इसका इतिहास भारतीय जनसंघ (चुनाव चिन्ह-दीपक) से जुड़ा हुआ है। 1947 में भारतीय स्वतन्त्रता के बाद कई ऐतिहासिक घटनायें घटित हुई। महात्मा मोहनदास करमचन्द गान्धी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कालान्तर में कोई साक्ष्य न मिलने पर  प्रतिबन्ध को निराधार पाकर प्रतिबन्ध हटा लिया था। सरदार पटेल की मृत्यु के बाद कांग्रेस और जवाहर लाल नेहरू का भारत पर अधिनायकत्व स्थापित होने लगा था। भारतीय जनमानस को लगने लगा था कि पण्डित नेहरू अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, छद्म समाजवाद, परमिट कोटा राज, राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति लापरवाही, जम्मू एवं कश्मीर विषय पर शेख अब्दुल्ला के साथ खड़े होने की प्रवृत्ति तथा विस्थापितों के प्रति अनदेखी आदि के कारणों से समाज में व्याकुलता बढ़ाने वाले सिद्ध हो रहे हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर भयंकर अत्याचार होने लगे । भारतीय जनमानस ने बंटवारे के समय के भीषण विभीषिका को झेला था। राष्ट्रभक्त जनता के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे । पूर्व में भी भारतीय जनता  खिलाफत आन्दोलन, मोपला काण्ड, जिन्ना और मुस्लिमों को विशेष महत्व देते कांग्रेस को देख चुकी थी। भारत के बहुसंख्यक समाज को लगा कि हमारा हित वर्तमान परिस्थितियों में कहां सुरक्षित है? बंगाल के भद्र राजनीतिज्ञ श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1923 से 1946 तक हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके थे। संविधान निर्माण के समय से ही कश्मीर सम्बन्धी अनुच्छेद 370 के वे घोर विरोधी थे। उनका दृष्टिकोण राष्ट्रीय हित और भारत की आवश्यकता में था। उनका नारा था- एक देश- दो विधान- दो प्रधान नहीं चलेंगे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर से भी मिलकर विचार विमर्श किया और सहयोग मांगा। उस समय डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी कांग्रेस में ही थे परन्तु वे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. सुभाषचन्द्र बोस जैसे राष्ट्रवादी विचारों से ओत प्रोत थे। उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर 1951 में भारतीय जनसंघ नामक नये राजनैतिक दल का गठन किया जिसके वे प्रथम अध्यक्ष बने। बाद में इस दल के अध्यक्ष क्रमश: चन्द्रमोली शर्मा, प्रेमचन्द डोगरा, आचार्य डीपी घोष, पीताम्बर दास, ए. रामाराव, डॉ. रघुबीर, बच्छराव व्यास रहे। 1966 में बलराज मधोक और 1947 में दीनदयाल उपाध्याय अध्यक्ष बने। उसके बाद चार वर्षों तक अटल बिहारी वाजपेयी तथा 1977 तक लालकृष्ण आडवाणी अध्यक्ष रहे। भारतीय जनसंघ ने प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मित्र भाव रखा तथा संगठन मंत्री के रूप में अधिकाशंत: संघ के प्रशिक्षित, निष्ठावान एवं कर्मठ प्रचारक ही जाते रहे।
भारतीय जनसंघ ने 1953 में जम्मू-कश्मीर पर आन्दोलन चलाया था। पं. दीन दयाल उपाध्याय मुखर्जी के संगठन मंत्री थे वे पर्दे के पीछे से सम्पूर्ण कमान सम्भाले थे। पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की योजनाबद्ध हत्या कश्मीर के जेल में हुई थी। 1952 में हुये राष्ट्रीय चुनाव में भारतीय जनसंघ को मात्र 3 सीटें मिली थी। 1977 में इन्द्रागाँन्धी द्वारा देश पर थोपे गये आपातकाल के समाप्ति के पश्चात भारतीय जनसंघ अन्य दलों के साथ जनता पार्टी में विलय हो गया फलत: कांग्रेस चुनाव हार गई। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद 1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोहरी सदस्यता को आधार बना कर मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई थी और भारतीय जनसंघ के पदचिन्हों को पुनर्संयोजित करते हुये महाराष्ट्र के मुम्बई शहर में समुद्र के किनारे छ: अप्रैल 1980 को लाखों जनता के समक्ष नई राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नाम से बनी। इस दल की मुख्य विचारधारा हिन्दू राष्ट्र, प्रखर राष्ट्रवाद, आर्थिक उदारीकरण, अखण्ड मानवतावाद रखा गया। प्रथम अध्यक्ष 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी बने जो 1980 से 1986 तक पदासीन रहे। बाद के दिनों में क्रमशः: लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी, कुशामऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, जन कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, लालकृष्ण आडवाणी राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अमित शाह और वर्तमान जगत प्रकाश नड्डा इस महान दल के अध्यक्ष बने। बीजेपी ने राष्ट्रवाद के साथ गाँधीवादी समाजवाद को भी अपनाया। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद प्रधानमंत्री इन्द्रागाँधी की हत्या हो गई।
तत्पश्चात राजीव गाँधी को सहानुभूति लहर में कांग्रेस के रूप में 404 लोकसभा सीटों पर विजय मिली और भारतीय जनता पार्टी को मात्र 2 सीटों पर ही विजय हासिल हुई जिसमें पहली सीट मेहसाणा (गुजरात) के एके पटेल और दूसरी सीट आन्ध्रप्रदेश की स्वामकोडा सीट से चन्दू भाई पाटिया जगन रेड्डी को प्राप्त हुई। तब से भारतीय जनता पार्टी निरन्तर विस्तार करती हुई 2014 और फिर 2019 के चुनाव में 303 और पूरे गठबन्धन को 353 सीटें प्राप्त हुई हे। इस प्रकार कांग्रेस के बाद बीजेपी पहली ऐसी पार्टी है जो पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई है। 2014 में 543 लोकसभा सीटों में 282 सीटें बीजेपी को मिली थी जो 2019 में बढ़ कर 303 हुई हैं।
बीजेपी को 2014 में वोट प्रतिशत 31' था जो बढ़ कर 2019 में 37.36' हो गई। एनडीए के साथ इसका संयुक्त वोट प्रतिशत 45' तथा वोटर संख्या 60.37 करोड़ तक पहुंच गई है। 2019 में बीजेपी 437 स्थानों पर चुनाव लड़ी थी। 10 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में बीजेपी अकेले दम पर सभी सीटें जीती। कुल 12 राज्यों में 50' से अधिक मत प्राप्त हुये। इस चुनाव में जातीय वंशवाद एवं परिवारवाद के नारा के संकेत मिले। आज बीजेपी भारतीय संसद और राज्य विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व के मामलों में यह भारत की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है और प्राथमिक सदस्यता के मामले में यह पूरे विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक दल है।
बीजेपी अब 42 वर्ष से भी अधिक पुरानी पार्टी के रूप में अपने संगठन, इतिहास, विचारों, राजनीति और नेताओं व सदस्यों के कारण एक महान राजनैतिक दल के रूप में विश्वविख्यात हो चुकी है। इसके सम वैचारिक संगठनों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा से नये युवाओं का सदैव सहयोग सदस्यता तथा नया उत्साह प्राप्त होता रहता है। इस दल की उपलब्धियाँ अनेकों है जो भारत के गौरव को बढ़ाने वाली है। आज इस दल की लोकप्रियता भारत में चरम पर है। इस दल का जनसमर्थन लगातार बढ़ रहा है। भाजपा ने 1989 में 85, 1991 में 120 तथा 1996 में 161 सीटें मिली जो इस बात का प्रमाण है कि लगातार यह दल तीव्र गति से लोकप्रिय होता गया। 1998 में इस दल ने 182 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जनतांत्रिक गठबन्धन की सरकार बनी थी। 1996 में पर्याप्त समर्थन न मिलने के कारण सरकार 13 दिन के बाद ही गिर गई थी यद्यपि अटल बिहारी वाजपेयी के उस समय के अन्तिम भाषण की याद आज पूरे राष्ट्र को है। बीजेपी की विशेषता यह है कि यह सुदृढ़, सशक्त, समृद्ध, समर्थ एवं स्वावलम्बी भारत के निर्माण हेतु सक्रिय रहती है। इसके पास कर्मठ, ईमानदार तथा चरित्रवान कार्यकत्र्ताओं व नेताओं की भरमार है। पार्टी की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जो आधुनिक दृष्टिकोण से युक्त एक प्रगतिशील एवं प्रबुद्ध समाज का प्रतिनिधित्व करता है तथा प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं सांस्कृतिक मूल्यों से प्रेरणा लेते हुये महान विश्व शक्ति एवं विश्व गुरु के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो। इसके साथ ही विश्व शान्ति तथा न्याययुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को स्थापित करने के लिये विश्व के राष्ट्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखे। भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धान्तों के प्रति निष्ठा पूर्वक कार्य करते हुए लौकतान्त्रिक व्यवस्था पर आधारित राज्य को यह दल अपना आधार मानती है।
पोखरण परमाणु विस्फोट, राममन्दिर निर्माण में व्यापक सहयोग तथा आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी सहित भूमिपूजन, अनुच्छेद-370 की समाप्ति तथा सफलतापूर्वक कश्मीर को उग्रवादियों से मुक्त कराने के प्रयास, उरी सर्जिकल स्ट्राइक, सेना को विस्तारित कर उसे स्वावलम्बी बनाने का सफल प्रयास, कोरोना काल में देश को बचाने हेतु टीकाकरण का विश्व कीर्तिमान, समाज व्यवस्था के साथ बड़ी संख्या में गरीबों को मुफ्त राशन, विश्व स्तरीय सड़कों का संजाल, सीएए विधान को पास कराकर उससे उपजे आन्दोलनों पर काबू पाना, तलाक व्यवस्था की समाप्ति आदि ऐसे कार्य हैं जो भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं। इसके अतिरिक्त भी भारतीय जनमानस को ऐसे सभी कई कार्य योजनाएं, दंगा रहित प्रदेश, अपराधियों पर अंकुश, स्वास्थ्य योजना आदि कार्य हैं जो जनमानस में दल के लिए विश्वास उत्पन्न करते हैं।
आज कुठ बातें यदि इस दल के समर्थन में साथ में हैं तो कुछ बाधाएं ऐसी हैं कि पार्टी के विस्तार में बाधा भी मानी जाती हैं। जैसे पार्टी मुख्य रूप से हिन्दी प्रदेशों यानी उत्तर भारत में अधिक लोकप्रिय है परन्तु केरल, तमिलनाडु, पं0 बंगाल, पंजाब, काश्मीर, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे स्थानों पर यह अपना प्रभाव नहीं बढ़ा पा रही है। यद्यपि इन स्थानों पर विचारधारा और सिद्धान्त भी भाजपा के लिए अनुकूल नही है। कही परिवारवाद, वंशवाद प्रभुत्व में है तो कहीं जनसंख्या अनुपात उचित नहीं है। कहीं-कहीं वामपंथ बाधक है तो कहीं क्षेत्रवाद और भाषा बाधक बन रही है। क्षेत्रीय दल अपने निहित स्वार्थों के कारण पहले से प्रदेशों में सत्तारूढ़ है।बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ऐसे ही प्रदेशों में राजनैतिक संपर्क कर के विपक्षी एकता कस्वर साध रहें है. ऐसी परिस्थिति में भाजपा अपने विस्तार को नया पंख दे कर विस्तार की नई योजना बना रही हैं। वर्तमान में ऐसे प्रदेश जहां ठीक से भाजपा अपना संगठन नहीं खड़ा कर सकी थी, वहां युद्ध स्तर पर संगठन खड़ा कर रही है। संसदीय दल में बड़ा परिवर्तन कर सभी को प्रतिनिधित्व दिया गया है। मंत्रिमण्डल विस्तार में भी सभी को साथ लिया गया है।जे पि नद्दा का कार्यकाल एक वर्ष बढ़ा कर उन्हें दक्षिण भारत में बीजेपी की पैठ बढाने को कहा गया है .अमित शाह स्वयं बिहार के सीमान्त क्षेत्र पूर्णिया का दौरा कर के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को यह सन्देश देने का प्रयास कर रहें है की बीजेपी को सबका साथ और सबका विश्वास चाहिए . मोदी की लोकप्रियता इस समय सर्वोच्य शिखर पर है . वे विश्वव्यापी राजनैतिक व्यक्तित्व के शिखर पर अपने को स्थापित कर चुके हैं.देश की जनता इस उपलब्धि पर गर्व का अनुभव कर रही है.ममता बनर्जी की पार्टी भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फसी दिखाई पड रही हैं. तेजस्वी  जेल जाने के मुहाने पर बैठे हुए हैं. पंजाब और राजस्थान में आप और कांग्रेस सर्कार अपने ही चक्रव्यूह में फसी दिखाई पद रही है .सम्पूर्ण घटनाक्रम को जनता बैचैनी के साथ मूल्यांकन कर रही है.विपक्षी एकता बनाने में कई बाधाएं आ रही है .पी .ऍफ़ आई . पर प्रतिबन्ध लगने के उपरांत मुस्लिम तुष्टीकरण के बयान दे कर अपने पैर में कुल्हाड़ी मार रहें हैं.पुर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी अपनी पैठ बना चुकी है . केरल और तमिलनाडु बीजेपी के लिए अभी भी कठिन लग रही है .आन्ध्र और तेलंगाना में स्थिति पहले की अपेक्षा अच्छी हुई है.यदि कार्यकर्ताओं का मनोबल बढाया गया तो परिणाम आचे मिल सकतें है.
आशा है कि आगामी दिनों में पार्टी संघटन को  नया आयाम दे कर 2024 का चुनाव् परिणाम  पूर्ण बहुमत से प्राप्त करेगी।
                       *-लेखक वरिष्ठ लेखक व विश्व संवाद केंद्र, लखनऊ, के सचिव हैं |

 

Friday 29 July 2022

 स्व जागरण में हिन्दी पत्रकारिता का योगदान

अशोक कुमार सिन्हा
'हिन्दी, हिन्दू हिन्दुस्थान' का नारा देश के 'स्व' जागरण एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रसिद्ध राष्ट्रवादी पत्रकार, शिक्षा विद, राजनेता एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पं0 मदन मोहन मालवीय जी ने दिया था। यह नारा इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज तक इसका प्रयोग हो रहा है। देश की हिन्दी पत्रकारिता देश में  'स्व'  जागरण तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन की ध्वजवाहिका रही है और आजादी के पचहत्तर वर्ष पूर्ण होने के की बाद भी इसकी महत्ता बनी रहेगी। देश में आज भी प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा सोशल मीडिया देश के, स्वनागरण में पूरी निष्ठा से रत है यही कारण है कि चाहे पूरे देश में राष्ट्रवाद देशप्रेम और  'स्व' जागरण का कार्य एक साथ सम्भव हो रहा है। बाबू विष्णुराव राव पराड़कर जी ने कहा था कि ''परतन्त्रता विष नदी मांगल्यविध्वंसिनी''। अन्याय, अज्ञान, प्रपीडऩ और प्रवंचना के संहारक हिन्दी के ही पत्र-पत्रिकाएँ अग्रज भूमिका में रही है। स्वतन्त्रता आन्दोलन से ले कर आज तक 'स्व' जागरण के महायज्ञ में हिन्दी पत्रकारिता की डाली गई आहुति सतत स्मरणीय रहेगी और आज भी सार्थक भूमिका निभा रही है। पत्रकारिता जनभावना की अभिव्यक्ति रही है। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय कहा जाता था कि:-
खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।।
भारत की हिन्दी पत्रकारिता ने जनमानस की भाव लहरियों पर अद्भुत प्रभाव डालने का कार्य किया है। स्वतन्त्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश करने के बाद भी आज यह अनन्त यात्रा जारी है। बस रूप परिवर्तित हुआ है। भाव वही बना हुआ है। 'स्व' जागरण हेतु महार्षि अरविन्द, भूपेन्द्र नाथ दत्त, डॉ. एनी बेसेन्ट, बाल गंगाधर तिलक, प. मदन मोहन मालवीय, गणेश शंकर विद्यार्थी और महात्मा गान्धी जैसे महापुरुषों ने राष्ट्र के 'स्व' जागरण हेतु समाचार पत्रों से अपना सम्बन्ध रखा। राष्ट्रीय चेतना के अन्तर्गत मातृभूमि का स्तवन, स्वदेश गौरव-गान, अतीत चिन्तन, राष्ट्रीय जागरण, वीर प्रशस्ति, संघर्ष, 'स्व' से, प्रेम, यवनो के प्रति घृणा, स्वदेशी का प्रचार, समाज सुधार, राष्ट्रभाषा के विषय हिन्दी पत्रकारों के प्रिय विषय होते थे। महर्षि अरविन्द घोष ने कहा था कि राजनैतिक स्वतन्त्रता राष्ट्र की प्राण वायु है और इसकी अवज्ञा कर के सामाजिक सुधार, नैतिक उत्थान और 'स्व' का जागरण असम्भव है। हिन्दी पत्रकारिता ने न केवल जनमानस में 'स्व' की भावना भरी वरन जागरण कर के संघर्ष का वातावरण निर्माण किया। तभी अंग्रेजों ने भारत छोड़ा। उदन्त मार्तण्ड, बंगदूत, समाचार सुधावर्षण, बनारस अखबार, पयामे आजादी एक जुट हो कर जनजागरण और स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा लगाया। संवाद कौमुदी, दैनिक आज, रणभेरी, कविवचन सुधा, भारत मित्र जैसे समाचारपत्रों ने नवजागरण और भारतीयता तथा स्वदेशी का उद्घोष किया। पत्रकारों में बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र राधा चरण गोस्वामी, प्रेमधन, अम्बिकादत्त व्यास, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, लाल-बाल-पाल की तिकड़ी ने जनजागरण में प्राण फूंक दिया था। बच्चा-बच्चा स्वदेशी का गीत गाने लगा। स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे पा कर रहेगें- भारतवासियों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। कालाकांकर से और बाद में प्रयागराज से प्रकाशित 'हिन्दुस्तान' मे संस्कृति और स्वदेश के प्रति जागरूक बनाया। बाबू विष्णुराव पराड़कर के लेखों पर अंग्रेजों को सेंसरशिप लगानी पड़ी। बालमुकुन्द गुप्त, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय, गणेश शंकर विद्यार्थी, जैसे उग्र राष्ट्रवादी पत्रकारों को ने देश के अन्दर 'स्व' का इतना प्रचण्ड लहर पैदा कर दिया कि अंग्रेजो के दांते खट्टे हो गये। लोकमान्य तिलक के सन्देशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिये पूजा से प्रकाशित केसरी का हिन्दी संस्करण को पं. माधवराव सपे्र ने 13 अप्रैल 1907 को नागपुर से निकाला। मराठी केसरी के विभिन्न लेखों का हिन्दी अनुवाद कर के हिन्दी केसरी में प्रकाशित किया जाता था। प्रयागराज से प्रकाशित 'स्वराज' नामक साप्ताहिक के सम्पादक शान्ति नारायण भटनागर को 'स्व' जागरण के अपराध में जेल जाना पड़ा। काशी की नागरी प्रचारिणी पत्रिका (1897) तथा सरस्वती (1900) ने अपने साहित्यिक स्वरूप से स्वदेशी और हिन्दी भाषा के अलख को जगाये रखना।
महात्मा गान्धी के स्वाधीनता आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन को नवजीवन, हरिजन, युगान्तर बन्दे मातरम्, नवशाक्ति संध्या, अभ्युदय, कर्मयोगी, मर्यादा, आज, प्रताप, स्वतन्त्र भारत, अर्जुन, वर्तमान कर्मवीर, हिन्दू पंच, सुधा, विशाल भारत आदि बसों हिन्दी पत्र में राष्ट्रीय चेतना में परिवर्तित कर दिया।
बाबूराव विष्णु पराड़कर ने 1943 में काशी से 'संसार' नामक पत्र का प्रकाशन किया। दैनिक आज के प्रधान सम्पादक रहे तथा 'रणभेरी' नामक गुप्त पत्र निकाल कर काशी सहित पूर्वाचंल में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जन जागरण करते रहे। मराठी मूल के होते हुए इन्होंने हिन्दी भाषा के लिये अतुलनीय कार्य किया। 'स्व' जागरण हेतु इन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। माखनलाल चतुर्वेदी मूलतः: कवि एवं पत्रकार थे। वे कहते थे कि युग के घटनाओं के नियंत्रक, संचालक, आलोचक और लेखक को ही पत्रकार कहते हैं। नवीन युग का निर्माण करना भी पत्रकार की जिम्मेदारी है।
समाज में 'स्व' के जागरण हेतु अर्वाचीन युग बहुत ही सार्थक एवं निष्ठावान रहा। अब धारणा है कि पत्रकारिता मिशन से व्यवसाय हो गया है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता का व्यवसाय से जुडऩा युग धर्म है। कोई स्वरूप समाज में स्थाई नहीं रहता। युग बदलने पर स्वरूप भी, अवश्य बदलेगा। स्वतन्त्रता काल में पत्रकारिता शस्त्र एक शस्त्रशाला दोनो थी पत्रकारिता। स्वतन्त्रता के समय पत्रकारों एवं वकीलों की अहम भूमिका थी। आज की पत्रकारिता भी जनजागरण के कार्य में उसी निष्ठा से रत है। राष्ट्रवाद का इतनी तेजी से प्रचार-प्रसार एवं भारतीय समाज का संगठित होना इस बात का प्रमाण है। राजस्थान में कन्हैयालाल के गर्दन काटने और अमरावती में हृदय विदारक घटना के प्रति समाज को खड़ा करने में पत्रकारिता एवं सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही। जैसे स्वतन्त्रता युग में चौरी-चौरा काण्ड और जलियांवाला बाग की घटना को पूरे विश्व में पत्रकारिता के माध्यम से विस्तारित किया गया। उसी प्रकार आज भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में टी0वी0 और सोशल मीडिया अपनी भूमिका को उसी प्रकार सटीकता के साथ उठा रहा है। राम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, ज्ञानवापी में शिव मन्दिर प्रकरण के साथ-साथ ताजमहल, कुतुब मीनार, लखनऊ के लक्ष्मण टीला पर समाज के 'स्व' को जगाने का कार्य जनसामान्य के साथ हिन्दी मीडिया पूरी निष्ठा के साथ कर रही है।
मीडिया जनता के प्रतिनिधि होने के साथ साथ गूंगी जनता के मुखर वकील की भूमिका आज भी निभा रही है। पत्रकारिता के साथ राष्ट्रीय जागरण का लम्बा इतिहास जुड़ा हुआ है। मीडिया ने 1947 के समय भी यह सिद्ध किया था कि स्वतन्त्रता मात्र एक मनोभाव, विचार या नारा नहीं वरन जीवन जीने की बुनियादी शर्त है। ये इतना बड़ा मूल्य है कि उसके लिये आप प्राणों की बाजी भी लगा सकते हैं। कुछ भी गंवा सकते है। पत्रकारिता ने हमें वह मूल्य दिया है। यही भाव इस समय समाज को राष्ट्रभाव के जागरण में हिन्दी पत्रकारिता सहित सभी भारतीय भाषाओं में हो रहा है। पत्रकार विद्वान नहीं विद्यावान होता है। हमारी परम्परा रही है कि विद्वान में थोड़ा सा प्रभुता बोध होता है जब कि विद्यावान में विनम्रता। जब आप में विनम्रता होती है तो लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएँ कम आती है।
आज की पत्रकारिता आधुनिक जीवन का विश्वकोष बन गई है। अकेले उत्तर प्रदेश से 42 समाचारपत्र असहयोग आन्दोलन के समर्थन में निकले थे। जनता के लिये काम करना पत्रकारिता का महत्वपूर्ण कार्य बन गया है। ऐसा नहीं था कि पुराने समय में पत्रकारिता उद्योग नहीं था। स्वदेश, स्वराज औ स्वाजागरण को पत्रकारिता ने अपना लक्ष्य बना लिया था। आज भी पत्रकारिता में राष्ट्रवाद की भावना जनता के सम्मान की रक्षा तथा उसकी समस्याओं को सुलझाने में मीडिया की भूमिका अहम है। सूचना के अधिकार ने इस 'स्व' के जागरण में एक अहम भूमिका निभाई है। हिन्दी भाषी क्षेत्र से प्रकाशित, प्रसारित और सोशल मीडिया के सहयोग से जनसहभागिता स्व का निर्धारण तथा उसके प्रति नवजागरण का कार्य करने के लिये मीडिया धन्यवाद की पात्र है।
(लेखक विश्व संवाद केन्द्र लखनऊ के प्रमुख, पत्रकारिता के अध्यापक तथा पूर्व प्रशासनिक अधिकारी हैं।)

Tuesday 12 April 2022

 

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Friday 8 April 2022

 

Thursday 17 February 2022

 स्वतन्त्रता आन्दोलन के उत्प्रेरक पत्रकार

* अशोक कुमार सिन्हा
हिन्दी पत्रकारिता भारत में अपने जन्म काल से ही स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्प्रेरक की भूमिका में अग्रणी रही। अन्याय, अज्ञान, प्रताडऩा और राष्ट्र धर्म निभाने वालों का उत्पीड़न यदि उजागर हुये तो यह कार्य समाचार पत्रों ने किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में पत्र-पत्रिकायें व पत्रकार जन भावना की अभिव्यक्ति बने। पत्रकारों ने अपने कलम से भारतीय क्रान्तिवीरों का जहां मार्गदर्शन किया, वहीं जनमानस का मनोबल बढ़ाया। लगभग प्रत्येक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ने अपने आन्दोलन के विविध कार्यों के साथ समाचार पत्र भी निकालें। महर्षि अरविन्द घोष, भूपेन्द्रनाथ दत्त, डॉक्टर एनी बेसेन्ट, महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय आदि सभी ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिये अखबार प्रकाशित करने का कार्य किया है। उस समय यह माना जाता था कि-
खींचो ना कमानो को,
ना तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो,
अखबार निकालो।।
उग्र राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत पत्रकारों के लेखन से अंग्रेज बहुत भयभीत और परेशान रहते थे। प्रसिद्ध क्रान्तिवीरों में सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, आचार्य नरेन्द्र देव, योगेश चन्द्र चटर्जी, शचीन्द्रनाथ सान्याल, यशपाल अपने लेखों से इन पत्रों में जन जागरण और जोश भरने का कार्य करते थे। उदन्त मार्तण्ड (कोलकाता), कवि वचन सुधा (काशी), हिन्दुस्तान (लन्दन एवं कालाकांकर प्रतापगढ़) सरस्वती (काशी), प्रताप (कानपुर), कर्मवीर (जबलपुर), आज (बनारस), 'अल्मोड़ा' अखबार, बिहार बन्धु (पटना), हिन्दी केसरी (पूना), मराठी केसरी (पूना), स्वराज (इलाहाबाद), और गुप्त पत्रों में 'रणभेरी', 'शंखनाद', 'चिञ्गारी 'रणडंका', 'चण्डिका' और 'तूफान' नामधारी पत्रों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में अंग्रेज शासकों के दांत खट्टे कर दिये थे। गुप्त पत्रों को निकालने में विष्णुराव पराड़कर, रामचन्द्र वर्मा, विश्वनाथ शर्मा, दुर्गा प्रसाद खत्री, दिनेश दत्त आदि तपस्वियों ने विप्लव पत्र के रूप में इसे निकाला। इन गुप्त पत्रों के प्रकाशक एवं मुद्रक डीएम व  प्रकाशन स्थान कोतवाली लिखे जाते थे। गुप्तचर विभाग इन गुप्त पत्रों के छपने का स्थान ढूंढता रहा परन्तु रोज प्रात: चार बजे स्वतन्त्रता सेनानी लोगों के घरों में चौखट के नीचे से अखबार सरका जाते थे। इन पत्रों में देश को स्वतन्त्र कराने और अंग्रेजी शासन के अत्याचार और लूटमार की खबरें प्रमुखता से मुद्रित की जाती थीं। जन जागरण का अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध इनमें सामग्री भरी रहती थी।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय 8 फरवरी 1857 को स्वतन्त्रता आन्दोलन नेता अजीमुल्ला खाँ ने 'पयामे आजादी' दिल्ली से प्रकाशित किया। इसका मराठी संस्करण झांसी से प्रकाशित होता था। इसमें मंगल पाण्डे, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मी बाई आदि की संघर्ष कथाएं मुद्रित होती थीं। 1900 से 1920 के युग में लोकमान्य तिलक के मराठी दैनिक 'केसरी' ने राजनैतिक जड़ता को तोड़कर भारतीय समाज को पूर्ण स्वराज्य की ओर प्रेरित किया। 1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा होने पर महर्षि अरविन्द ने 'वन्दे मातरम' प्रकाशित कर अंग्रेजों को सन्देश दिया कि, भारत भारतीयों के लिये है। इसी समय युगान्तर (बांग्ला), 'संध्या' (बंगला) भी प्रकाशित हुये। 2 जनवरी 1881 से अंग्रेजी में प्रकाशित 'मराठा' और 3 जनवरी 1881 से मराठी भाषा में लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' प्रकाशित कर घोषित कर दिया कि स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे। लोकमान्य तिलक की लेखनी प्रभावी और भाषा अक्रामक होती थी। 1903 में नागपुर से हिन्दी केसरी का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसके सम्पादक माधव राव सप्रे थे। 9 नवम्बर 1913 में कानपुर से 'प्रताप' का प्रकाशन हुआ जिसके कर्ताधर्ता सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे। पत्र के  प्रथम मुख्य पृष्ठ पर ही निम्न पंक्तियाँ सिद्धान्त रूप में छपती थीं।-
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।
1919 में गोरखपुर से 'स्वदेश' का प्रकाशन हुआ जिसके सम्पादक और संस्थापक दशरथ प्रसाद द्विवेदी थे। यह पत्र 1939 तक चला। इसमें राष्ट्रीय विचार से उग्र लेख लिखने पर बेचन शर्मा 'उग्र' व सम्पादक दशरथ शर्मा द्विवेदी को समय-समय पर जेल जाना पड़ता था। जलियाँवाला बाग काण्ड के बाद महात्मा गांधी द्वारा 'यंग इण्डिया' इसी का गुजराती संस्करण 'नवजीवन' और 'हिन्दी नवजीवन' प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ जो बाद में 'हरिजन' नाम से संयुक्त रूप से प्रकाशित होने लगा। इन पत्रों ने असहयोग सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन को सक्रियता प्रदान की। 1920 में जबलपुर से 'कर्मवीर, सप्ताहिक और 1923 में अर्जुन को 1939 में 'वीर अर्जुन, का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसके सम्पादक इन्द्र विद्यावाचस्पति थे। पत्र का आदर्श वाक्य था 'न दैन्य न पलायनम्,। बाबूराव विष्णु पराडकर एवं आचार्य नरेन्द्र देव भूमिगत पत्रकारिता के प्रमुख स्तम्भ थे जिन्होंने 'बवण्डर,, 'रणभेरी,, 'बोल दे धावा,, 'शंखनाद, और ज्वालामुखी को साइम्लोस्टाइल छाप कर जनता को जगाया।
1930 में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने 'हंस, प्रकाशित किया जिसके प्रथमांक में स्पष्ट किया गया कि ''मगर स्वाधीनता केवल मन की वृत्ति है। इस वृत्ति का जागना ही स्वाधीन हो जाना है। अब तक इस विचार ने जन्म ही न लिया था। हमारी चेतना इसी मन्द, शिथिल और निर्जीव हो गई थी, उसमें ऐसी महान कल्पना का अविर्भाव ही ना हो सकता था, पर भारत के कर्णधार महात्मा गांधी ने इस विचार की सृष्टि कर दी। अब यह बढ़ेगा फूले-फलेगा'' 1 जनवरी 1943 ईस्वी को बाबूराव विष्णु पराड़कर के सम्पादन में 'संसार' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। क्रान्तिकारी यशपाल ने 'विप्लव' प्रकाशित किया। 1938 के इसके अंक में छपा ''आज हम अपनी गुलामी की इन हथकडिय़ों को तोड़ डालने के लिये अपनी दासता के बन्धनों को आग में जला देने के लिये विप्लव के कुण्ड में कूद पड़े हैं। आज हिचकिचाने का और शंका करने का समय नहीं है।''
5 सितम्बर 1920 से बनारस के बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने ज्ञान मण्डल लिमिटेड की स्थापना कर हिन्दी दैनिक 'आज' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। राष्ट्रप्रेम से अनु प्रमाणित इस पत्र ने सदैव ब्रिटिश शासन की दमनात्मक नीतियों का विरोध किया। अंग्रेजों द्वारा एकाधिकबार इसके प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगाया। 21 अक्टूबर 1930 से 8 मार्च 1931 तक विरोध स्वरूप सम्पादकीय स्तम्भ के स्थान पर केवल यह वाक्य प्रकाशित होता था कि ''देश की दरिद्रता, विदेश जाने वाली लक्ष्मी, सर पर बरसने वाली लाठियां, देशभक्तों से भरने वाला कारागार, इन सबको देख कर प्रत्येक देश भक्त हृदय में जो अहिसांमूलक विचार उत्पन्न हो, वही सम्पादकीय विचार हैं।
आज के संवाददाताओं में महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू तथा इसके सम्पादकों में श्री प्रकाश एवं विष्णु राव पराडकर प्रमुख थे। पराडकर जी ने अपने प्रथम सम्पादकीय में लिखा- ''हमारा उद्देश्य अपने देश के लिये सब प्रकार से स्वातन्त्र्य उपार्जन है। हम हर बात में स्वतन्त्र होना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढ़ायें, अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें, उनको ऐसा बनायें कि भारतीय होने का उन्हें अभिमान हो, संकोच न हो।'' 'आज' ने अपने इस उद्देश्य को पूरा किया।
इस दौर की प्रकार पत्रकारिता ने राजनीति को साहित्य में अलग कर दिया। मतवाला, हंस, चांद, माधुरी जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 31 मई 1924 के 'मतवाला' के सम्पादकीय में अन्तिम पैरा में छपा... यदि आप स्वतन्त्रता के अभिलाषी हैं, अपने देश में स्वराज की प्रतिष्ठा चाहते हैं तो तन मन धन से अपने नेता महात्मा गांधी के आदेशों का पालन करना आरम्भ कीजिये। 1923 में राजस्थान सेवा संघ की ओर से 'तरुण राजस्थान' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जो निर्भीकता से सम्पादक शोभालाल गुप्त और रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता का शंखनाद हुआ। दोनों सम्पादकों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और छह-छह  महीने की सजा हुई। सेवा संघ के कार्यालय पर पुलिस का छापा पड़ा जहां संवाददाताओं की सूची अंग्रेजों के हाथ लगी और उन पर कहर ढाया गया।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिवीरों में जोश भरने और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने वाले साहित्य साधक गया प्रसाद शुक्ल सनेही को हमें स्मरण करना चाहिये। जिसकी कविता और रचनायें अंग्रेजों को त्रिशूल की भांति चुभती थीं। ये देश प्रेम और मानवतावाद के अनोखे कवि थे। 21 अगस्त 1883 को उन्नाव जनपद में हड़हा गांव में जन्मे इस कवि को सार्वजनिक कवि सम्मेलन के आयोजन का श्रेय तो जाता ही है साथ ही राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक के रूप में प्रसिद्ध हुये। त्रिशूल नाम से इनकी कवितायें कानपुर के प्रताप सहित अन्यान्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती थी।
अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 20 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतर सुइया में हुआ था। बाद में पीजीएन कॉलेज कानपुर में अध्यापन करते समय क्रान्तिकारी सुन्दरलाल से प्रभावित हुए। इन्होंने 'प्रताप' का सम्पादन किया जहां उनका सम्पर्क भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद से मुलाकात हुई। रामवृक्ष बेनीपुरी भगवती चरण वर्मा की पहली रचनायें 'प्रताप' में ही छपी। गणेश जी भारती युवक, हरि, दिवाकर,  वक्रतुण्ड, कलाधर, लम्बोदर, वन्दे मातरम और गजेन्द्र आदि छद्म नाम से राष्ट्रीय भक्ति का अलख जगाया और अपनी सादगी, सेवा भावना व सक्षम लेखनी से अमर हो गये। वे एक निर्भीक देशभक्त सेनानी थे। 25 मार्च 1931 को वे कानपुर में अज्ञात मुस्लिम धर्मान्धो के हाथ शहीद हो गये।
माखन लाल चतुर्वेदी मूलत: कवि और स्वदेश गौरव गान, राष्ट्रीय जागरण, यवनों के प्रति घृणा स्वदेशी के प्रचार और भारत माता के वन्दना में वे महान हो गये।
स्वतन्त्रता की अलख जगाने में अल्मोड़ा से प्रकाशित 'अल्मोड़ा अखबार' की बुद्धि वल्लभ पन्त, कुमाऊं केसरी के बद्री दत्त पाण्डेय अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लिखने पर जुर्माने के भागीदार बने। उस समय की एक कहावत थी कि ''एक गोली के तीन शिकार, मुर्गी, कुली और अल्मोड़ा अखबार''। इस क्षेत्र में अल्मोड़ा अखबार के बन्द होने पर 18 अक्टूबर 1918 में विजय दशमी के दिन  'शक्ति' नाम से बद्रीदत्त पाण्डेय ने दूसरा अखबार निकाला जो स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्प्रेरक का एक स्तम्भ बना। इसी क्रम में 1930 में विजय और 1937 में उत्थान व इडिपिडेन्ट इण्डिया और 1939 में पिताम्बर पाण्डेय ने हल्द्वानी से जागृत जनता का प्रकाशन किया जो अपने आक्रामक तेवरों के कारण 1940 में उसके सम्पादक को सजा व 300 रुपये जुर्माने का दण्ड मिला।
यह सुस्पष्ट है कि हिन्दी के पत्र स्वतन्त्रता आन्दोलन के सक्षम सेनानी सिद्ध हुये हम स्वतन्त्र हुये और आज स्वतन्त्रता 75 वर्षों का अमृत महोत्सव मना रहे हैं अत: इन पत्रकारों को हम श्रद्धांजलि देते हुये इनकी प्रेरणात्मक रचनाओं व शैली को नमन करते हैं।
* प्रसिद्ध लेखक, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं विश्व संवाद केन्द्र अवध लखनऊ के प्रमुख हैं।
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