Monday 22 February 2021

                                                                   रामराज्य का शंखनाद

    अयोध्या में श्री रामलला जन्मस्थान पर भव्य मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया है। नींव खोदी जा रही है। फरवरी से 39 माह की अवधि में पूरा होगा निर्माण। 15 अगस्त 2020 को भूमि पूजन हुआ था। नवम्बर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद सभी विवाद समाप्त हुये थे। मन्दिर निर्माण का कोई अनुमानित बजट नहीं है। मंदिर के पास कई अन्य भवन भी बनेंगे। भगवान राम पर शोध के लिये संस्थान, संतों के प्रवचन के लिये सभागार, रामजन्मभूमि से जुड़े इतिहास की जानकारी देने वाला संग्राहलय भी बनेगा। मन्दिर में 50 हजार से अधिक लोग एक साथ पूजा कर सकते हैं। मुख्य मन्दिर 360 फिट लम्बा 235 फिट चौड़ा और 161 फिट ऊंचा तीन मंजिला बनेगा। कुल क्षेत्रफल 84 हजार 600 वर्गफिट होगा। पहले सिंहद्वार, नृत्यमण्डल, रंग मण्डल, गूढ़ मण्डल और गर्भगृह बनेगा। पहले पिंक स्टोन के 12 फिट आधार के बाद गर्भगृह के फर्श पर भगवान रामलला विराजमान होंगे। ठीक इसके ऊपर वाले तल पर रामदरबार सजेगा, मन्दिर की ऊंचाई बढ़ाने से तीसरा तल बनेगा जो अभी खाली रहेगा।
प्रभु राम का जन्म समय 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व 12 बज कर 30 मिनट, चैत्र शुक्ल नवमी, वैज्ञानिक आधारों की कसौटी पर कसकर, वाल्मीकि रामायण, पुरातात्विक साक्ष्य, खगोलीय विन्यासों, अक्षांस देशान्तर व रेखांश को आधुनिकतम कम्प्यूटरों के साफ्टवेयर को प्रयोग कर निकाला गया है। तत्समय, पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे अर्थात सूर्य मेष में, शुक्र मीन में, मंगल मकर में, शनि तुला में और बृहस्पति कर्क में थे। चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में था तथा चन्द्रमा और एक साथ कर्क में चमक रहे थे। कर्क राशि पूर्व में उदय हो रही थी तथा चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि थी। यह खगोलीय घटना वाल्मीकि रामायण में वर्णित है और जब खगोलविद तथा ज्योतिष के विद्वानों ने परखा तो सही पाया। (बालकाण्ड के सर्ग 18 (8-10)) स्टेलेरियम कम्प्यूटर साफ्टवेयर भी इन सभी 12 व्योमचित्रों को दर्शाता है। इन सभी 24 व्योमचित्र 'रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानीÓ पुस्तक में वर्णित है।
आज अयोध्या सम्पूर्ण विश्व के केन्द्र बिन्दु के रूप में विकसित हो रही है। मन्दिर निर्माण प्रारम्भ हो गया है। सनातन दर्शन की प्रेरणास्रोत पुण्य नगरी अयोध्या भारत को एक रखने वाली राम राज्य का शंखनाद कर रही है। अयोध्या हिन्दू, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन सबके दिलों को जोडऩे का केन्द्र बिन्दु है। राममन्दिर का निर्माण भारत का निर्माण है। भारतीय जनता के हृदय में रामराज्य के प्रति गहरी आस्था है। विगत 5 अगस्त 2020 को श्रीराम मन्दिर भूमि पूजन कार्यक्रम में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ''राम मन्दिर के निर्माण की प्रक्रिया  राष्टï्र को जोडऩे का उपक्रम है। यह महोत्सव है विश्वास को विद्यमान से जोडऩे का, नर को नारायण से जोडऩे का, लोक को आस्था से जोडऩे का, वर्तमान को अतीत से जोडऩे का और स्व को संस्कार से जोडऩे का, वर्तमान को अतीत से जोडऩे का, और स्व को संस्कार से जोडऩे का। ये एतिहासिक पल युगों-युगों  तक, दिन-दिगन्त तक भारत की कीर्ति पताका फहराते रहेंगे। प्रभुराम हजारों वर्षों से भारत के लिये प्रकाश स्तम्भ बने हुये हैं। उन्होंने सामाजिक समरसता को अपने शासन की आधार शिला बनाया। उनका अद्भुत व्यक्तित्व, वीरता, उदारता, सत्यनिष्ठïा, निर्भीकता, धैर्य दृढ़ता, दार्शनिक दृष्टिï युगों-युगों तक प्रेरित करते रहेंगे।ÓÓ
अयोध्या पांच जैन तीर्थकरों की जन्म स्थली, बुद्ध का 16 वर्ष चतुर्मास स्थल, सिख गुरुओं की निशानी, संत कवियों की पावनस्थली रही है। अयोध्या से खुसरों का नाता रहा है। अयोध्या एकात्मबोध कराने वाली ताकत का नाम है। यह दैविक, भैतिक और आध्यात्मिक तीनों तापों से मुक्ति दिलाती है। श्रीरामलला का भव्य मन्दिर राष्टï्रीय गौरव का प्रतीक बनेगा। यह राष्टï्र का मन्दिर है। सरयू इसकी प्राण रेखा है। देवरहा बाबा ने जन्म स्थान का ताला खोले जाने की प्रेरणा दी थी। राम का होना ही हमारा होना है। प्रभु श्रीराम की राजनीति और सुशासन रामराज्य है। मन्दिर निर्माण में सबका समर्पण व सहयोग रहेगा।
राममन्दिर आधुनिक भारत का प्रतिनिधित्व करेगी, यह राष्टï्रीय गौरव की पुनस्र्थापना करेगी। श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के सूत्रधार अशोक सिंहल जी ने कहा था कि ''जिस दिन श्रीराम भव्य मन्दिर में प्रस्थापित होंगे, उस दिन से भारत का उत्थान शुरू हो जायेगा।ÓÓ राष्टï्रवाद की पुन: प्रतिष्ठïापना और मिथ्था सेकुलरवाद की समाप्ति होगी। वस्तुत: प्रभु श्रीराम का पूरा जीवन चरित्र ही सनातन संस्कृति को पुनरक्षित और पल्लवित करने में बीता। उन्होंने सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए युद्ध तक किया। वस्तुत: राममन्दिर हेतु समर्पण राशि एकत्र करने का अभियान धन संग्रह नहीं जन-संग्रह अभियान है। मन्दिर से सम्पूर्ण भारतीय समाज के जनमानस को सीधे जोड़ कर ही राष्टï्र मन्दिर का निर्माण संकल्प के साथ पूरा होगा। सभी के हृदय में यह भाव जगे कि यह मन्दिर मेरा है। रामजी के आदर्श और जीवन मूल्य मेरे है। रामराज्य की ओर हम सब मिल कर बढ़ेंगे। कितनी ही बाधाऐं आएं, अविचल रह कर मार्ग के सभी ककँड़ दूर करते हुए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को साथ ले कर हम राष्टï्र को विश्व का सर्वश्रेष्ठï राष्टï्र बनायेंगे। यह सहस्त्राब्दी प्रभु श्रीराम की सहस्त्राब्दी होगी। हम सब श्रीराम के आदर्शों के अनुसार चलने की प्रेरणा लेंगे। कुल 5.25 लाख गांव में 13 करोड़ परिवारों से अधिक परिवारों के 65 करोड़ हिन्दुओं से प्रत्यक्ष जनसम्पर्क स्थापित कर जन-जन को जोडऩा है और राष्टï्र निर्माण में राष्टï्र मन्दिर का भव्य रूप बना कर भारत को परम वैभव तक ले जाना है। राममन्दिर ही रामराज्य का शंखनाद है। आइये, हम सभी गिलहरी की भांति अपना योगदान दें।
- अशोक सिन्हा

                   125वीं जन्मतिथि पर विशेष : नेताजी सुभाषचन्द्र बोस

                         स्वतन्त्रता आन्दोलन के दिनों में जिनकी एक पुकार पर हजारों महिलाओं ने अपने कीमती गहने अर्पित कर दिये, जिनके आह्वïान पर हजारों युवक और युवतियां आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गये, उन सुभाषचन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा की राजधानी कटक के एक मध्यवर्गीय परिवार में 23 जनवरी, 1897 को हुआ था।
सुभाष के पिता रायबहादुर जानकीनाथ चाहते थे कि वह अंग्रेजी आचार-विचार और शिक्षा को अपनाएं। विदेश में जाकर पढ़ें तथा आई.सी.एस. बनकर अपने कुल का नाम रोशन करें, पर सुभाष की माता श्रीमती प्रभावती हिन्दुत्व और देश सेे प्रेम करने वाली महिला थीं। वे उसे 1857 के संग्राम तथा विवेकानन्द और जैसे महापुरुषों की कहानियां सुनाती थीं। इससे सुभाष के मन में भी देश के लिए कुछ करने की भावना प्रबल हो उठी।
सुभाष ने कटक और कोलकाता से विभिन्न परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। फिर पिताजी के आग्रह पर वे आई.सी.एस. की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैण्ड चले गये। अपनी योग्यता और परिश्रम से उन्होंने लिखित परीक्षा में पूरे विश्वविद्यालय में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया, पर उनके मन में ब्रिटिश शासन की सेवा करने की इच्छा नहीं थी। वे अध्यापक या पत्रकार बनना चाहते थे। बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानी देशबन्धु चितरञ्जन दास से उनका पत्र-व्यवहार होता रहता था। उनके आग्रह पर वे भारत आकर कांग्रेस में शामिल हो गये।
कांग्रेस में उन दिनों गांधी जी और नेहरू की तूती बोल रही थी। उनके निर्देश पर सुभाष बाबू ने अनेक आन्दोलनों में भाग लिया और 12 बार जेल-यात्रा की। 1938 में गुजरात के हरिपुरा नामक पर हुए राष्टï्रीय अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये, पर इसके बाद उनके गांधी जी से कुछ मतभेद उभर आये। गांधी जी चाहते थे कि प्रेम और अहिंसा से आजादी का आन्दोलन चलाया जाये, पर सुभाष बाबू उग्र साधनों को अपनाना चाहते थे। कांग्रेस के अधिकांश लोग बाबू का समर्थन करते थे। युवक वर्ग तो उनका दीवाना ही था।
सुभाष बाबू ने अगले साल मध्यप्रदेश के त्रिपुरी में हुए अधिवेशन में फिर से अध्यक्ष बनना चाहा, पर गांधी जी ने पट्टभि सीतारमैया को खड़ा कर दिया। सुभाष बाबू भारी बहुमत से चुनाव जीत गये। इससे गांधी जी के दिल को बहुत चोट लगी। आगे चलकर सुभाष बाबू ने भी कार्यक्रम हाथ में लेना चाहा, गांधी जी और नेहरू के गुट ने उसमें सहयोग नहीं दिया। इससे खिन्न होकर सुभाष बाबू ने अध्यक्ष पद के साथ कांग्रेस भी छोड़ दी।
 अब उन्होंने 'फारवर्ड ब्लाकÓ की स्थापना की। कुछ ही समय में कांग्रेस की चमक इसके आगे फीकी पड़ गयी। इस पर अंग्रेज शासन ने सुभाष बाबू को पहले जेल में और फिर नजरबन्द कर दिया, पर सुभाष बाबू वहां से निकल भागे। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध के बादल मण्डरा रहे थे। सुभाष बाबू ने अंग्रेजों के विरोधी देशों के सहयोग से भारत की स्वतन्त्रता का प्रयास किया। उन्होंने के विरोधी देशों के सहयोग से भारत की स्वतन्त्रता का प्रयास किया। उन्होंने आजाद हिन्द फौज के सेनापति पद से जय हिन्द, चलो दिल्ली तथा तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा का नारा दिया, पर दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास सफल नहीं हो पाया।
भारत की स्वतन्त्रता पर नेताजी का प्रभाव
हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंस के बाद सारे संदर्भ ही बदल गये। आत्मसमर्पण के उपरान्त जापान चार-पाँच वर्षों तक अमेरिका के पाँवों तले कराहता रहा। यही कारण था कि नेताजी और आजाद हिन्द सेना का रोमहर्षक इतिहास टोकियो के अभिलेखागार में वर्षों तक पड़ा धूल खाता रहा।
नवम्बर 1945 में दिल्ली के लाल किले में आजाद हिन्द फौज पर चलाये गये मुकदमे ने नेताजी के यश में वर्णनातीत वृद्धि की और वे लोकप्रियता के शिखर पर जा पहुँचे। अंग्रेजों के द्वारा किए गये विधिवत दुष्प्रचार तथा तत्कालीन प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा सुभाष के विरोध के बावजूद सारे देश को झकझोर देने वाले उस मुकदमे के बाद माताएँ अपने बेटों को 'सुभाषÓ का नाम देने में गर्व का अनुभव करने लगीं। घर-घर में राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के जोड़ पर नेताजी का चित्र भी दिखाई देने लगा।
आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास प्रत्यक्ष रूप में सफल नहीं हो सका किन्तु उसका दूरगामी परिणाम हुआ। सन् 1946 के नौसेना विद्रोह इसका उदाहरण है। नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। 
दुर्घटना और मृत्यु की खबर
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने रूस से सहायता मांगने का निश्चय किया था। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये। 23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज़ के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21:00 बजे हुई थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने इस घटना की जांच करने के लिये 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये। 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने कहा कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। 18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गये और उनका आगे क्या हुआ यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे पेश किये गये लेकिन इन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चन्द्र बोस के होने का मामला राज्य सरकार तक गया। परन्तु राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप के योग्य न मानते हुए मामले की फाइल ही बन्द कर दी। 

                                  मकर संक्रान्ति उत्सव

भारत उत्सवधर्मी राष्टï्र है। मूल प्रकृति को आधार बना कर प्रत्येक दिन कोई न कोई व्रत, त्योहार पूरे वर्ष मनाये जाते हैं। कुछ उत्सव धार्मिक होते है कुछ प्राकृतिक कुछ ऐतिहासिक तथा कुछ राष्टï्रीय अस्मिता को पुष्टï करने वाले। यह हमारे शरीर, मन और जीवन में नई चेतना, उत्साह और उमंग भर देते हैं। ऐसा ही पर्व है मकर संक्रांति। पौष मास के इस दिन भगवान सूर्य नारायण धनु राशि में प्रवेश करते हैं तथा दक्षिणायन समाप्त हो कर उत्तरायण प्रारम्भ होता है। रात्रि का अहंकार धीरे-धीरे छोटी होने लगती है तथा प्रकाशमय दिन बड़ा होने लगता है। सूर्य की उष्मा प्रखर होने लगती है। हम अंधकार से प्रकाश की ओर, ज्ञान की ओर बढऩे लगते है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक केरल तथा आन्ध्र तेलगांना में संक्रान्ति, कहीं-कहीं उत्तरायणी, हरियाणा, हिमांचल व पंजाब में माघी व लोहड़ी, असम में भोगली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रान्त, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति के नाम इस उत्सव को पुकारा व मनाया जाता है। नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, लाओस, म्यामार, कम्बोडिया और श्रीलंका में भी विभिन्न नामों से धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में यह पर्व स्नान-दान का है। प्रयागराज संगम में माघमेला के रूप में खिचड़ी का पर्व स्नान-दान कार्य से अत्यन्त पुण्य का त्योहार सम्पन्न होता है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खरमास के नाम से जाना जाता है। विवाह व शुभ कार्य स्थगित रहते हैं जो खिचड़ी के दिन से प्रारम्भ हो जाते हैं। इस दिन जप तप दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गाय, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र तथा कम्बल का दान करना पुनीत माना जाता है। महाराष्टï्र में इस दिन सभी विवाहित महिलायें अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, जल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल गुड़ नमक हलवे के बांटने की प्रथा है।
 लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं ''तिल गुड़ ध्या- गोड बोलाÓÓ अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा बोलो। इस दिन खिचड़ी और गुड़तिल से बने वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पतंग उड़ाते हैं। सूर्य ऊर्जा का आनन्द लेते हैं। स्नान के बाद सूर्य उपासना करते हैं।
गंगासागर में इस दिन विशाल मेला लगता है मकर संक्रान्ति के दिन ही मां गंगा भगीरथ के पीछे पीछे चल कर कपिलमुनि के आश्रम से हो कर गंगासागर में जा कर मिली थीं। काशी में गंगा किनारे विशाल मेला और स्नान-दान का कार्य सम्पन्न होता है। यह पर्व प्रति वर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है। यह भी मान्यता है कि भगवान सूर्य इस दिन अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति के दिन का चयन किया था। शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नाकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है।
विश्व का असरकारी सबसे बड़ा संगठन राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ वर्षभर में कुल छ: उत्सव मनाता है उसमें से दूसरा उत्सव मकर संक्रान्ति है। हिन्दू समाज को एकात्म राष्टï्रीयता की भावना परस्पर आत्मीयता के आधार पर जाग्रत कर संघ इस दिवस को सामाजिक समरसता के रूप में मनाता है। सेवा बस्तियों में सम्पूर्ण समाज के साथ खिचड़ी भोज का कार्यक्रम रखा जाता है। समाज को स्नेहबद्ध एकात्म रखने का संदेश यह पर्व देता है। इस वर्ष अयोध्या में बन रहे राममंदिर के लिए समाज से धन एकत्र करने का कार्य भी इसी दिन से प्रारम्भ हो रहा है। नाथ सम्प्रदाय के गोरखनाथ मठ गोरखपुर में मकर संक्रान्ति के अवसर पर एक माह का विशाल और भव्य मेला लगता है जिसमें खिचड़ी चढ़ाया जाता है। नाथ सम्प्रादय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानन्द शिव के साक्षात स्वरूप श्री गोरखनाथ जी सतयुग में पेशावर, त्रेतायुग में गोरखपुर, द्वापर में हरमुख (द्वारका) तथा कलयुग में गोरावमेधी (सौराष्टï्र) में अविर्भूत हुये। गोरखनाथ के अनुयाई जोगी समाज से होते हैं। हठयोग में ये निष्णान्त होते हैं। त्रेतायुग से जलाई गई अखण्ड ज्योति यहां प्रज्जवलित है। खिचड़ी मेले में यहां भारी भीड़ दर्शन करने आती है। यहीं के महन्त योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं।

कैसे मनाएं संक्रांति
स्न इस दिन प्रात:काल उबटन आदि लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें। 
स्न यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। 
स्न तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। 
स्न स्नान के उपरांत दान, ध्यान कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें। 
स्न पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए। 
स्न इस दिन पतंगें उड़ाए जाने का विशेष महत्व है।

पुण्य पर्व है संक्रांति
उत्तरायन देवताओं का आसन है। यह पुण्य पर्व है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायन में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवद्र्धक होने के साथ-साथ पापों का विनाशक है। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है।  उत्तरायन का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।

 : अशोक सिन्हा

                                       चौरी-चौरा जनविद्रोह के १०० वर्ष

            उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर में गोरखपुर शहर से देवरिया रोड पर 27 कि.मी. की दूरी पर चौरी-चौरा नामक एक छोटा सा कस्बा है। यहां के दो गांव चौरी और चौरा को मिला कर 1885 में रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने चौरी-चौरा नाम दिया था जो रेलवे स्टेशन बना। 1857 की क्रान्ति के बाद अंग्रेजी शासन ने यहां एक तृतीय श्रेणी का थाना स्थापित किया था। 8 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी पहली बार गोरखपुर आये थे। नाथ सम्प्रदाय का यहाँ एक प्रसिद्ध मठ स्थापित था। गांधी जी के आने से स्वतन्त्रता आन्दोलन तेज हुआ। इसके पूर्व 4 सितम्बर 1920 को भारतीय राष्टï्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हो चुका था। गांधी के गोरखपुर आगमन से इस क्षेत्र में असहयोग आन्दोलन से लोग तेजी से जुडऩे लगे थे। बड़ी संख्या में भारतवासी आयातित कपड़ों को छोड़ कर खादी के वस्त्र पहनने लगे। क्षेत्र की सरकारी शराब की दुकानों का बहिष्कार कर दिया गया था। गांधी टोपी पहनने की होड़ लग गई तब गोरखपुर देवरिया की कच्ची रोड पर स्थित परगना दक्षिण हवेली के टप्पा केतउली का गांव था चौरी-चौरा। गाधी के गोरखपुर आने के लगभग एक वर्ष बाद आन्दोलन के क्रम में एक फरवरी 1922 को चौरी-चौरा से सटे मुण्डेरवा बाजार में शान्तिपूर्व बहिष्कार आन्दोलन चल रहा था। सभा आयोजित थी। भारत में असहयोग आन्दोलन से उत्पन्न परिस्थिति अंग्रेजी सरकार को भयभीत करने लगी थी। ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति को संभालने के लिए 'प्रिन्स आफ वेल्सÓ को भारत भेजा। आन्दोलन ने गति पकड़ लिया था। केवल गोरखपुर नगर से करीब 15 हजार स्वयंसेवक आन्दोंलन में सूचीबद्ध हो चुके थे। चौरी-चौरा के आस-पास भी आयेदिन मशाल जुलूस, क्रान्ति सभाएं आयोजित हो रही थी।
5 जनवरी, 1922 को विदेशी वस्त्रों के बड़े बाजार चौरी-चौरा (गोरखपुर) में सत्याग्रह करने के लिए चार हजार स्वयंसेवक इकट्ठे हो गये। थाने के सामने से जब शांत जुलूस गुजर रहा था, तो पुलिस बीच के हिस्से पर टूट पड़ी। पहले लाठियों से पिटाई की फिर गोलियां चलाने लगी। स्वयंसेवक शान से डटे रहे। निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसती रही। स्वयंसेवकों का साहस नहीं टूटा। कुछ स्वयंसेवकों ने देखा कि कई स्वयंसेवकों की टोपियां जमीन पर गिर गई है और पुलिस अपने पैरों से उस कुचल रही है। 
पुलिस की गोलियां खत्म हो गई तो उन्होंने बंदूक के कुंदों से मारना और संगीनों से चुभोना शुरू किया। तभी एक ललकार उठी, ''हम इस तरह कब तक डरते रहेंगे।ÓÓ स्वयंसेवक आक्रोश में भर गए। पुलिस के सिपाहियों ने भागकर थाने में शरण ली और किवाड़ बंद कर लिये। कु्रद्ध भीड़ ने मिट्टी का तेल डालकर थाने को फूंक दिया। उसमें बंद 21 सिपाही और एक थानेदार गुलेश्वर सिंह जल मरे। स्वयंसेवकों  में 23 शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गये।
गांधीजी चौरी-चौरा के पूर्व मद्रास में हुई एक हिंसात्मक घटना से पहले ही खिन्न थे। इस कांड से उनके अहिंसावाद पर तीव्र आघात पहुंचा। उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारडोली (गुजरात) में कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक आमंत्रित की जिसमें चौरी-चौरा घटना के आधार पर आंदोलन स्थगित कर रचनात्मक कार्यक्रम पर बल देने का निर्णय लिया। इस प्रकार असहयोग आंदोलन का अंत हो गया। गांधीजी के निर्णय का युवा क्रांतिकारियों ने तीव्र विरोध किया। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह इसी घटना की देन है। युवा वर्ग क्रांति की राह पर चलने लगे। 
घटना की पूरी छानबीन के बाद गोरखपुर के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ने 7 फरवरी को चौरी-चौरा घटना की सूचना डीआईजी सीआईडी यूपी को भेजी। उस समय के समाचार पत्र लीडर में 7 फरवरी की घटना के बाद सरकार द्वारा की गई कार्यवाही के विषय में सूचना प्रसारित की थी। डरी अंग्रेजी हुकूमत के गृह विभाग दिल्ली ने आदेश जारी कर प्रशासनिक अफसरों को हवाई फायरिंग पर तत्काल रोक लगाने को कहा था। अंग्रेजी सरकार इस घटना से डर गई थी। 
चौरी-चौरा विद्रोह का स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। यद्पि चौरा नगर बन चुका है जबकि चौरी अभी गांव है। 
तहसील भी चौरी-चौरा नाम से है। सन् 2012 से विधानसभा सीट भी मिल गई। सब कुछ टुकड़ों में हुआ। मुंडेरवा बाजार नगर पंचायत में सम्मिलित हो चुका चौरा अब गोरखपुर विकास प्राधिकरण का हिस्सा है। गांव को धरोहर के रूप में विकसित किया जा सकता है। आजादी वाले दिन स्टेशन पर तिरंगा फहराया गया था।
100 साल में भी नहीं मिली चौरी-चौरा को उसकी पहचान। 
चौरी-चौरा जन विद्रोह के मुकदमे में 172 लोगों को सेशन कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई गई थी। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने राय दिया कि यदि मालवीय जी मुकदमा लड़े तो काफी लोगों की जान बच सकती है। पंडित मदन मोहन मालवीय को वकालत छोड़े काफी समय बीत चुका था परंतु उन्होंने मुकदमा लड़ा और और जैसा कि उन्हें सिल्वर टंग ओरेटर कहा जाता था- उन्होंने अपने तर्कों से 153 आरोपियों को छुड़ा लिया। केवल 19 लोगों को ही फांसी हो सकी। अंग्रेज जज मालवीय जी के तर्क से इतना प्रभावित हुआ था कि सजा सुनाने के बाद अपनी कुर्सी छोड़कर अपना हैट उतारकर तीन बार झुक कर मालवीय जी का अभिवादन किया और आरोपियों से कहा कि यदि मालवीय न होते तो आप न छूटते।
वर्तमान मोदी सरकार ने इस संग्राम को पूरा सम्मान देते हुए शताब्दी वर्ष पर साल भर कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया है। वह इसे गर्व का पर्व मानते  हैं। मुख्यमंत्री योगी जी ने 4 फरवरी 2021 को बड़ा कार्यक्रम मना कर प्रधानमंत्री मोदी से वर्चुअल कार्यक्रम में उद्बोधन कराया। 
इस अवसर पर 25 रुपये का टिकट भी जारी हुआ है। कार्यक्रम का लोगो भी जारी किया गया। घटना में शहीद 17 लोगों के परिजनों सहित 102 परिवारों को सम्मानित किया गया। परिजनों ने कहा कि अब पूरा देश जान सकेगा बलिदानियों को। योगी ने इस अवसर पर कहा कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन को चौरी-चौरा जन संघर्ष ने एक नई दिशा दी। द्य
- अशोक कुमार सिन्हा