Tuesday 16 March 2021

 होली खेलें रघुबीरा अवध में

~ अशोक कुमार सिन्हा
अवध की होली इस वर्ष विशेष है। राममन्दिर निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया है। राष्ट्र मन्दिर का स्वप्न साकार हो गया। होली तो सम्पूर्ण भारतीय समाज का पर्व है। भारतीय समाज प्रकृति के साथ तालमेल करते हुये अपनी उत्सव धर्मिता को उल्लास पूर्वक प्रगट करता है। बसंत ऋतु, फाल्गुन मास, रबी की फसल कटाई का समय, समस्त प्रकृति मदमस्त हो कर फूलों से महक उठती है। टहनियों पर नये किसलय, नई ब्यार, आम्रमंजरी की सुगंध, ऐसे समय मनुष्य उत्साह, उमंग के वातावरण में वैरभाव भूल कर समाज के साथ समरस हो कर मानवता प्रगट करना चाहता है। राक्षसी प्रवृत्तियों के पराजित होने का प्रतीक है होली।
नारद पुराण के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कश्यप अपने को ईश्वर घोषित कर अपनी पूजा करवाने की घोषणा करते है। उसका विष्णुभक्त पुत्र प्रहलाद अस्वीकृत भाव से इसे गलत मानते है। हिरण्य कश्यप प्रहलाद को तरह-तरह से प्रताणित करते है। उसकी बहन होलिका अपनी अग्निरोधी चुनरी ओढ़ कर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रहलाद को भस्म करना चाहती है परन्तु इश्वरीय वरदान के विरुद्ध जाने के कारण होलिका भस्म हो जाती है। प्रहलाद सकुशल आग से बच कर बाहर आते हैं। नगरवासी आग की बची राख उड़ा कर खुशी मनाते है। होली का उत्सव इसी पौराणिक घटना की प्रतीक है। पंजाब में इसे 'धुलैंडीÓ कहते है। दक्षिण भारत में भगवान शिव के तीसरे नेत्र से कामदेव के भस्म करने, कामदेव की पत्नी रति के अनुनय पर कामदेव को शिव द्वारा पुनर्जीवित करने की प्रसन्नता व देवताओं द्वारा रंगों की वर्षा करने के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में होली की पूर्व संध्या पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना, आम्रमंजरी ओर चंदन डालते हैं। ब्रज में तो वसंत पंचमी से ही मन्दिरों में 'डांढाÓ गाड़े जाने के साथ होली प्रारम्भ हो जाती है। बरसाने की लट्ठमार होली अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी है। यह फाल्गुन शुक्ल नवमी को विशेष होती है जब कृष्णसखा 'हुरियारे बरसाने में होली खेलने पहुंचते है और बरसाने की हुरियारिनों की लाठी का स्वागत पाते है। शिवनगरी काशी में रंगभरी एकादशी को खूब रंग खेलते है और शिव के भांग बूटी के प्रसाद का आनन्द लेते हैं। बरेली में 155 से भी अधिक वर्षों से चले आ रहे वमनपुरी की रामलीला का आनन्द लेते है। बच्चे गत्ते, टिन आदि के मुकुट, बालों की दाढ़ी-मूंछ लगा कर राजसी शैली में प्राकृतिक रगों से श्रृंगार कर के रामलीला का मंचन करते है। चौपाइयों का वाचन होता है।
कानपुर में अंग्रेजी दासता के काल में होली के ही अवसर पर दंगा भड़का, लोगों को दंगों में फसे होने पर बचाने के प्रयास में मुसलमान बहुल बाजार में गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या हो गई। शोक में सात दिनों तक कानपुरवासियों ने होली नहीं खेली। अंग्रेजों के प्रयास से शीतलाष्टïमी को होली मनाई गई। यह परम्परा आज भी मनाई जाती है। सात दिन तक कानपुर में समस्त बाजार बन्द रहता है।
अवध की होली पर राम द्वारा होली खेले जाने की रागमय होली गायन प्रसिद्ध है। निर्गुन भी फाग शैली में गाया जाता है।
अवधपुरी सुखधामा,
जहां जन्म लिया सियरामा।
उत्तर बहे सरजू नीरा, 
जहं निर्मल होरा शरीरा।।
राम के हांथे कनक पिचकारी,
लक्ष्मण हांथे अबीरा,
अवध में होली खेलें रघुबीरा।।
      काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिताभस्म की होली होती है, गीत प्रसिद्ध है- खेले मसाने में होली दिगम्बर-खेलें मसाने में होली।
होली में कृष्ण यहां रास रचाते हैं। होली के दिन कोई छोटा बड़ा नहीं होता, राजा से रंक तक सब फागुनी गीत में मस्त हो कर गले मिलते है। होली निश्चय ही उदास मन को हंसी देने वाला पर्व है। इसका मनोवैज्ञानिक महत्व यह है कि अनेक वर्जनायें इस दिन तोड़ कर 'होली में बाबा देवर लागें की तर्ज पर अन्दर की कुंठा दूर करते हुये मन को शांत-प्रसन्न व उल्लासमय बनाते हैं। रसराज बसंत के स्वागत में भारतीय समाज जहां नव संवत्सर का स्वागत करने को तैयार होता है वहीं नव सृजन, नवाचार करते हुये प्रेम अपनत्व, ममता, समरसता, समानता, बन्धुत्व, मानवता का आह्वान करते हैं। होली को मनाना है, शत्रुता को मिटाना है। रंग, खुशबू, ठन्डाई, गुझिया सभी को आनन्द लें। संसार के सभी प्राणियों में विद्यमान आत्मा का उस परम शाक्ति के प्रेम में रंग जाना ही होली है।
~ प्रमुख- विश्व संवाद केन्द्र अवध

Thursday 4 March 2021

                                       नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव


                                                                                    अशोक कुमार सिन्हा

                                                                          प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र अवध, लखनऊ

नेपाल का प्राचीन नाम देवघर था जो अखण्ड भारत का हिस्सा था। भगवान राम की पत्नी सीता माता का जन्मस्थल जनकपुर, मिथिला नेपाल में है। भगवान बुद्ध का जन्म भी लुम्बिनी नेपाल में है। 1500 ईसापूर्व से ही हिन्दू आर्य लोगों का यहां शासन रहा है। 250 ईसा पूर्व यह मौर्य वंश साम्राज्य का एक हिस्सा रहा। चौथी शताब्दी में गुप्त वशं का यह एक जनपद था। तत्पश्चात मल्ल वंश फिर गोरखाओं ने यहां राज किया। सन 1768 में गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 46 छोटे-बड़े राज्यों को संगठित कर स्वतन्त्र नेपाल राज्य की स्थापना की। 1904 में बिहार के सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से सन्धि कर नेपाल को आजाद देश का दर्जा दे कर अपना एक रेजीडेट कमिश्नर बैठा दिया था। अंग्रेजों ने 1940 के दशक में नेपाल में लोकतन्त्र समर्थक आन्दोलन की शुरुआत हुई। 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ। दुनिया का यह एक मात्र हिन्दू राष्ट्र था लेकिन वर्तमान में वामपंथी वर्चस्व के कारण अब यह एक धर्म निरपेक्ष देश है। नेपाल और भारत के राजवंशियों का गहरा आपसी रिश्ता है।

भारत और नेपाल के मध्य लम्बे समय से द्विपक्षीय सम्बन्ध हैं। 1950 में भारत नेपाल के मध्य व्यापार एवं वाणिज्यिक संधि तथा शान्ति और मित्रता की 2 संधिया हुई। दोनो देशों के नागरिक विशेषाधिकार के अन्तर्गत निर्बाध एक देश से दूसरे देश में आते है तथा दोनो देशों के मध्य रोटी और बेटी के सम्बन्ध है। 2008 में नेपाल में राजतन्त्र समाप्त होने के बाद राजनैतिक रिक्तता का लाभ उठा कर चीन भारत के प्रभाव को क्षींण करने का प्रयास कर रहा है। चीन तिब्बत हड़पने के बाद से ही सुरक्षा कारणों से नेपाल पर सदैव ध्यान देता रहा। चीन नेपाल से लगभग 1414 कि. मीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। चीन ने 1988 में नेपाल के साथ कई समझौते किये जिसमें भारत के सुरक्षा हितों की उपेक्षा हुई। चीन ने सड़कें, हवाईअड्डे, रेलमार्गों और अस्पतालों का निर्माण नेपाल में तेज किया। चीन नेपाल राजमार्ग द्वारा ल्हासा को नेपाल से जोड़ने का कार्य हुआ। किंगहाई तिब्बत रेलमार्ग से नेपाल को जोड़ने का कार्य चीन ने ही प्रारम्भ किया। जब से नेपाल में माओवादी शासन आया है तब से भारत की नेपाल में सक्रिय भूमिका को संतुलित करने के लिये चीन को खुला आमंत्रण दिया गया है।

यदि भारत-नेपाल और नेपाल-चीन दोनो के सम्बन्धों की समीक्षा की जाय तो नेपाल और भारत के बीच सांस्कृतिक धार्मिक, ऐतिहासिक और नृवंश विज्ञान की अद्भुत समानतायें है जो चीन और नेपाल के मध्य नहीं हैं। प्रसिद्ध काठमान्डू पशुपतिनाथ मंदिर सम्पूर्ण भारतीयों के आस्था केन्द्र है। समस्त नेपाल वंशी काशी विश्वनाथ को उसी श्रद्धा से पूजते हैं।

चीन की शघांई कन्स्ट्रक्शन कम्पनी काठमान्डू के चारो ओर रिंगरोड बनाने सहित अन्य चीनी कम्पनियों का नेपाल में भारी आर्थिक निवेश हो रहा है। भारत की नेपाल के प्रति ढीली नीतियों तथा नेपाल में वामपंथी शासन के कारण चीन नेपाल में काफी अन्दर तक आर्थिक रूप से प्रवेश कर गया है। विशेषज्ञों के अनुसार विगत 20 वर्षों में चीन के मुकाबले भारत का प्रभाव नेपाल पर घटा है।

नेपाल में चीन का एफडीआई तेजी से बढ़ा है तथा चीन नेपाल की मजबूरी का फायदा उठा कर नेपाल की सीमा में घुस कर निर्माण कर रहा है। चीन सार्क में प्रवेश पाने का प्रयास कर रहा है और नेपाल ने क्षेत्रीय समूह में चीन के प्रवेश का खुला समर्थन किया है। नेपाल और तिब्बत का भाषाई, सांस्कृतिक, वैवाहिक और जातीय सम्बन्ध है। नेपाली राजकुमारी भृकुटी का विवाह तिब्बत के सम्राट सोंत्सपन गम्पो से 600-650 ई. सन में हुआ था। नेपाल की राजकुमारी ने दहेज के रूप में बौद्ध अवशेष और यंगका तिब्बत लाई थी तब से बौद्ध तिब्बत का राजसी धर्म हो गया था। अब तिब्बत चीन का हिस्सा है और चीन इस रिश्ते का फायदा भारत के मुकाबले उठाना चाहता है।

नेपाल में राजशाही का अंत भी चीन की योजनानुसार ही हुआ जिसका लाभ चीन को भरपूर मिला। नेपाल ने भारत की भांति तिब्बत के चीन में विलय को मान्यता दी। चीन के इशारे पर ही नेपाल ने भारत के तीन गावों को अपने नक्शे में दिखाया तथा नक्शा संयुक्त राष्ट्रसंघ में स्वीकृति हेतु भेजा। नेपाली संसद में नक्शा पारित भी चीन के इशारे पर किया गया। वैसे तो चीन का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों जैसे लंका, पाकिस्तान व बंग्लादेश में लगातार बढ़ रहा है। चीन ने 2017 में नेपाल से बेल्ट एण्ड रोड परियोजना की द्वीपक्षीय समझौता किया है। नेपाल के कई स्कूलों में चीनी भाषा मन्दारिन को पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है। इस भाषा के शिक्षकों का वेतन चीन दे रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के अनुसार नेपाल की तरफ से उन प्रयासों को रोका जायेगा जो चीन को उसके नजदीक आने में रुकवाटे पैदा करेंगी।

भारत की आपत्ति पर नेपाल ने उत्तर दिया कि नेपाल किसी भी देश के पास सैन्य गठजोड़ न करने की नीति पर कायम है। नेपाल तटस्थ रहने का नारा तो लगाता है परन्तु उसका अनुराग चीन की ओर बढ़ रहा है ओर इसका कारण आर्थिक लाभ तथा वामपंथी सरकार का होना है।

ओली कभी भारत समर्थक हुआ करते थे परन्तु अब उनका रुख परिवर्तित दिखाई पड़ता है। नेपाली सत्तारूढ़ दल में संघर्ष चीनी इशारे पर नेपाल में एक दलीय शासन व्यवस्था लागू करने के लिए संविधान संशोधन कराना है। वामपंथी दलों का एकीकरण चीन की योजना है। नेपाल में चीन 'साइलेन्ट डिप्लोमेसी' चला रहा है। चीन पहले पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आई.एस.आई. के जरिये यह काम कर रहा था अब उसके कमजोर पड़ने पर चीन खुलकर सामने आ गया है। 'विम्सटेक' सम्मेलन में घोषणा के बाद भी भारत में विम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्याभ्यास में नेपाली सेना दूर रही, दूसरी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर बीबीआईएन (बंग्लादेश, भूटान, इण्डिया, नेपाल) के क्षेत्रीय मुक्त व्यापार परिवहन को बढ़ावा देने पर नेपाल ने असहयोग किया। भगवान राम के जन्मस्थान पर विवादित बयान, कोरोना की आड़ में खुली सीमा को बन्द करने का प्रयास, पशुपतिनाथ मन्दिर के मूल भट्ट को बदलने का फैसला, नेपाल में व्याही जाने वाली भारतीय बेटियों की नागरिकता के अधिकार से वंचित रखने का कानून चीनी रणनीति नेपाल में उसके बढ़ते प्रभाव के कारण हो रहा है।

नेपाली जनता भारत के साथ है अत: नेपाल में वर्तमान सरकार पर दबाव बढ़ रहा है, जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। ओली ने इस्तीफा दे कर वहां की संसद भंग करने की सिफारिश की है जिसे न्यायपालिका ने अमान्य करार दे दिया है। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नेपाल भेज कर स्थिति सुधारने का प्रयास किया।

भारतीय सेना प्रमुख एम.एम. नरवाणे ने नेपाल जा कर परम्परा का निवर्हन किया। भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने भी जा कर बैठक की। अब नेपाल सरकार जनता के दबाव में है। अब ओली कह रहे हैं कि एक-एक आरोपों का जवाब दिया जायेगा। पाकिस्तान के बाद चीन अब नेपाल को पूरी तरह कर्ज में डुबोने की योजना बना चुका है परन्तु भारत भी सतर्क है तथा निवेश, रोजगार, सांस्कृतिक सम्बन्ध बढ़ा कर वह चीन के प्रभाव को कम करने का पूरा प्रयास कर रहा है। निश्चित ही भारत इसमें सफल होगा। नेपाल-भारत अभिन्न है, अभिन्न रहेंगे। मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है।
                                                                                                               -लेखक पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं।