


कही कृष्ण की जन्माष्टमी और रामनवमी के गीत को उत्कृष्ट अदा के साथ प्रस्तुत करते मिलते है तो दूसरी ओर हिन्दू कवि, षायर तथा भांट खुदा के शान के कसीदे गढ़ते है। मरसिया पढ़ते हुये उर्स में भाग लेना व सलाम करना हिन्दूओं की भी आदत मानी जाती है। कुल मिलाकर सामाजिक समरसता का सहजभाव तथा शान्तिपूर्ण नफासतदार जीवन पद्धति लखनऊ की पहचान है। मुगलकाल में लखनऊ का विकास सलीके के साथ हुआ। आसपास की उपजाऊ भूमि तथा मुगलकालीन सामंती व्ववस्था के कारण लखनऊ आर्थिक रूप से सम्पन्न हुआ। परिणाम स्वरूप संगीत, ललितकला स्वादिट भोजन की विविधता तथा उल्लासमय रंगीन अवघ की शाम की खुषबू पूरी दुनिया में फैली। जमीन उपजाऊ तथा गोमती नदी से अभिसिंचित होती रही।

नबावो के शहर की उर्दू मिश्रित बोली में नफासत, तहजीब और अजीब सी मिठास घुली रहती है। देष विदेष के लोग इस की बोली पर फिदा हैं। पैसा और कद्रदान हो तो नृत्य संगीत का विकास होता है। लखनऊ के संगीत धराने दुनिया में मषहूर है। कथक की शुरूआत मन्दिरों में प्रचलित कथावाचन से हुई परन्तु कालान्तर में इरानी सभ्यता ने इसे प्रभावित किया । बाद में स्व0 कालका बिंदादी, स्व0 शम्भू महराज, विरजू महराज आदि ने इसमें श्रृंगार लास्य भाव और हास्ंय भरे अभिनय से रंग भरा । यहाॅ सभी त्योहारो का पूरा रस व आनन्द मिलता है। चैक की होली का चकल्लस और सलीकेदार हुडदंग तथा सराफे वालों के सहयोग से कविसम्मेलन का अलग आन्नद है। ईद बकरीद पर पुराने लखनऊ क्षेत्र भी रौनक अलग ही छटा विखेरती है। यहाॅ का मुहर्रम और मीलों लम्बे लाखों की सख्या वाले अलम के जुलुस काफी प्रसिद्ध है। एक प्रकार से यह जिन्दादिल लोगों का शहर है। यहाॅ की पंतगबाजी, मुर्गे और तीतरो की लड़ाई देखने का मजा और कबूतरबाजी जिन्दगी को और अघिक रोचक और गतिषील बनाती है। शमामा, मुष्क ,हिना मोतियारूह केवड़ा, गुलाब खस, चन्दन, बेला आदि का इत्र बनाना व प्रयोग करना यहाॅ की विषेषता है। यहाॅ चिकन, जरदोजी, गोटा, इंत्र, तेल, तम्बाकू और कुन्दन का बेमिषाल काम होता है।

लखनऊ के इस्टदेव श्री हनुमान है। श्री हनुमान परमवीर होने के बाद भी विनम्रशील ज्ञानवान परमज्ञानी तथा प्रभु राम के परम भक्त है। लखनऊवासी श्री हनुमान चरित्र के अनुयायी है अत विनम्रता तथा षील यहाॅ के वासियो का मूल चरित्र है। यही कारण है कि यहाॅ ‘पहले आप‘ की परम्परा जीवित है। ‘राम काज कीजे बिना मोहि कहाॅ विश्राम‘ वाली गति सबकी है।
लखनऊ षिक्षा का केन्द्र है। यहाॅ कई विष्वविधालय तथा केन्द्रीय अनुसंघान संस्थान है। सलीकेदार जिन्दगी के पीछे षिक्षा का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इरानी संस्कृति के कारण यहाॅ व्यवहारकुषलता तथा सदव्यवहारी लोगों का प्रभुत्व रहा । इक्का तांगा का प्रचलन तथा प्रदूषण मुक्त वातावरण पहले बहुत पंसद किया जाता था। वर्तमान सामजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक बदलाओं ने लखनऊ को काफी बदल दिया है। तेजी से लखनऊ के विस्तार होने तथा नवनिर्माणों के कारण रईसों की जगह ठेकेदारों व भु-माफियाओं ने ले लिया है। बौद्धकालीन स्मृित चिन्हों और विषाल पत्थरों के निर्माण ने यहाॅ के मध्ययुगीन पहचान को बहुत पीछे छोड़ दिया है। अब लखनऊ सिगांपुर की तरह रात में चैड़ी सड़को, भवनों, गुम्बदों तथा चमचमाते माल के कारण दृष्यमान होने लगा है। नई पीढ़ी ने अपने नये तहजीब व रीतिरिवाज विकसित किये है। फिर भी लखनवी तहजीब की आत्मा यहां दिख ही जाती है।
(लेखक- लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान के निदेशक हैं.)
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