होली खेलें रघुबीरा अवध में
~ अशोक कुमार सिन्हा
अवध की होली इस वर्ष विशेष है। राममन्दिर निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया है। राष्ट्र मन्दिर का स्वप्न साकार हो गया। होली तो सम्पूर्ण भारतीय समाज का पर्व है। भारतीय समाज प्रकृति के साथ तालमेल करते हुये अपनी उत्सव धर्मिता को उल्लास पूर्वक प्रगट करता है। बसंत ऋतु, फाल्गुन मास, रबी की फसल कटाई का समय, समस्त प्रकृति मदमस्त हो कर फूलों से महक उठती है। टहनियों पर नये किसलय, नई ब्यार, आम्रमंजरी की सुगंध, ऐसे समय मनुष्य उत्साह, उमंग के वातावरण में वैरभाव भूल कर समाज के साथ समरस हो कर मानवता प्रगट करना चाहता है। राक्षसी प्रवृत्तियों के पराजित होने का प्रतीक है होली।
नारद पुराण के अनुसार दैत्यराज हिरण्य कश्यप अपने को ईश्वर घोषित कर अपनी पूजा करवाने की घोषणा करते है। उसका विष्णुभक्त पुत्र प्रहलाद अस्वीकृत भाव से इसे गलत मानते है। हिरण्य कश्यप प्रहलाद को तरह-तरह से प्रताणित करते है। उसकी बहन होलिका अपनी अग्निरोधी चुनरी ओढ़ कर प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रहलाद को भस्म करना चाहती है परन्तु इश्वरीय वरदान के विरुद्ध जाने के कारण होलिका भस्म हो जाती है। प्रहलाद सकुशल आग से बच कर बाहर आते हैं। नगरवासी आग की बची राख उड़ा कर खुशी मनाते है। होली का उत्सव इसी पौराणिक घटना की प्रतीक है। पंजाब में इसे 'धुलैंडीÓ कहते है। दक्षिण भारत में भगवान शिव के तीसरे नेत्र से कामदेव के भस्म करने, कामदेव की पत्नी रति के अनुनय पर कामदेव को शिव द्वारा पुनर्जीवित करने की प्रसन्नता व देवताओं द्वारा रंगों की वर्षा करने के रूप में मनाया जाता है। दक्षिण भारत में होली की पूर्व संध्या पर अग्नि प्रज्ज्वलित कर उसमें गन्ना, आम्रमंजरी ओर चंदन डालते हैं। ब्रज में तो वसंत पंचमी से ही मन्दिरों में 'डांढाÓ गाड़े जाने के साथ होली प्रारम्भ हो जाती है। बरसाने की लट्ठमार होली अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी है। यह फाल्गुन शुक्ल नवमी को विशेष होती है जब कृष्णसखा 'हुरियारे बरसाने में होली खेलने पहुंचते है और बरसाने की हुरियारिनों की लाठी का स्वागत पाते है। शिवनगरी काशी में रंगभरी एकादशी को खूब रंग खेलते है और शिव के भांग बूटी के प्रसाद का आनन्द लेते हैं। बरेली में 155 से भी अधिक वर्षों से चले आ रहे वमनपुरी की रामलीला का आनन्द लेते है। बच्चे गत्ते, टिन आदि के मुकुट, बालों की दाढ़ी-मूंछ लगा कर राजसी शैली में प्राकृतिक रगों से श्रृंगार कर के रामलीला का मंचन करते है। चौपाइयों का वाचन होता है।
कानपुर में अंग्रेजी दासता के काल में होली के ही अवसर पर दंगा भड़का, लोगों को दंगों में फसे होने पर बचाने के प्रयास में मुसलमान बहुल बाजार में गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या हो गई। शोक में सात दिनों तक कानपुरवासियों ने होली नहीं खेली। अंग्रेजों के प्रयास से शीतलाष्टïमी को होली मनाई गई। यह परम्परा आज भी मनाई जाती है। सात दिन तक कानपुर में समस्त बाजार बन्द रहता है।
अवध की होली पर राम द्वारा होली खेले जाने की रागमय होली गायन प्रसिद्ध है। निर्गुन भी फाग शैली में गाया जाता है।
अवधपुरी सुखधामा,
जहां जन्म लिया सियरामा।
उत्तर बहे सरजू नीरा,
जहं निर्मल होरा शरीरा।।
राम के हांथे कनक पिचकारी,
लक्ष्मण हांथे अबीरा,
अवध में होली खेलें रघुबीरा।।
काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिताभस्म की होली होती है, गीत प्रसिद्ध है- खेले मसाने में होली दिगम्बर-खेलें मसाने में होली।
होली में कृष्ण यहां रास रचाते हैं। होली के दिन कोई छोटा बड़ा नहीं होता, राजा से रंक तक सब फागुनी गीत में मस्त हो कर गले मिलते है। होली निश्चय ही उदास मन को हंसी देने वाला पर्व है। इसका मनोवैज्ञानिक महत्व यह है कि अनेक वर्जनायें इस दिन तोड़ कर 'होली में बाबा देवर लागें की तर्ज पर अन्दर की कुंठा दूर करते हुये मन को शांत-प्रसन्न व उल्लासमय बनाते हैं। रसराज बसंत के स्वागत में भारतीय समाज जहां नव संवत्सर का स्वागत करने को तैयार होता है वहीं नव सृजन, नवाचार करते हुये प्रेम अपनत्व, ममता, समरसता, समानता, बन्धुत्व, मानवता का आह्वान करते हैं। होली को मनाना है, शत्रुता को मिटाना है। रंग, खुशबू, ठन्डाई, गुझिया सभी को आनन्द लें। संसार के सभी प्राणियों में विद्यमान आत्मा का उस परम शाक्ति के प्रेम में रंग जाना ही होली है।
~ प्रमुख- विश्व संवाद केन्द्र अवध
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