*अशोक सिन्हा
सुशिक्षित एवं समझदार भारतीयों
के बीच आज जीवन के ऊँचे स्तर तथा वैज्ञानिक रहन सहन की मांग बढ़ती जा रही है
|किन्तु इन लोगों में भी ऊँची कोटि के
अपनी प्राचीन सांस्कृतिक जीवन मूल्यों के बोध की सर्जनात्मक मांग और उसके
लिए ब्यवस्थित प्रयत्न की प्रवृत्ति नहीं पायी जाती| शिक्षित लोगों में नैतिकता और
अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासतों का आग्रह घट रहा है | व्यक्ति अधिक से अधिक
अवसरवादी ,भौतिकवादी व् धर्मनिरपेक्ष बनता जा रहा है | आज समय आ गया है कि भारत के
विद्द्वान फिर से भारतीय संस्कृति और ज्ञान को पुनर्प्रतिष्ठापित करें | देश की
स्वतंत्रतता के 200 वर्ष पहले अंग्रेजी शासनकाल के दौरान जिस तरह भारतीय संस्कृति
को असभ्य,बर्बर, आदिम और मृतप्राय बताने
का सफल कुचक्र चला और जिससे आज भी बामपंथी चिन्तक प्रभावित हैं उसे दूर करने का वातावरण अब धीरे धीरे बनने लगा
है | सन 1817 में ईस्ट इंडिया कम्पनी और ब्रिटिश सरकार द्वारा एक यह शाजिस रची गयी
की भारत के बारे में ब्रिटिश संसद को यह आभास कराया जाय कि कंपनी भारत में अच्छा
शासन दे रही है परन्तु कंपनी के लाभांश का अधिकांश भाग असभ्य,बर्बर,और आदिम
भारतीय समाज को शासित करने में व्यय हो जा
रहा है | इस शाजिस के तहत कुल छ खण्डों में एक किताब लिखवाई गयी जिसका नाम था “द हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया “जिसके लेखक जेम्स
मिल थे |ये सज्जन कभी भारत नहीं आये न ही इनको किसी भी भारतीय भाषा का ज्ञान
था|इन्हों ने न तो किसी भारतीय विद्वान से या देसी विदेशी भारतीय जानकार से बात की
न ही अनेकों प्रयास के बाद भी इंग्लैंड में इन्हें पादरी तक की नौकरी मिली थी | ये ब्रिटिश संसद
को अपनी पुस्तक के माध्यम से भारत के बारे में नकारात्मक तथ्य देते रहे फलतः कंपनी
ने इन्हें 800 पौंड की ऊँची ओहदेदार पद से नवाज़ा |बाद में इन्हें 2000 पौंड तक
वेतन दिया जाने लगा | जेम्स ने अपने बेटे और जाने-माने राजनैतिक दार्शनिक जॉन
स्टुअर्ड मिल को भी कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया |दोनों का काम ब्रिटिश संसद को
भारत की नकारात्मक बातों से प्रभावित कर
कंपनी की सत्ता बनाये रखना था | इस पुस्तक में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना भविष्य
देखा तथा इसे प्रशासनिक गीता के रूप में मान्यता दी गयी | भारत आने वाले हर
ब्रिटिश अधिकारी को इसे तीन महीने तक भली भांति पढ़ कर आत्मसात काना होता था | रही
सही कसर अमरीकी लेखिका कैथरीन मेयो ने “मदर इंडिया “ लिख कर पूरी की जो योरोप
और अमरीका में इतनी लोकप्रिय हुई की 1927 में इसके छपने के एक साल के भीतर
21संस्करण छपे ,कोई 10 लाख से ज्यादा लोगों ने इसे पढ़ा |
गौर करने की बात यह है की
आर्य भट्ट ने खगोल शास्त्र और सौर मंडल ग्रहों
के चालन की पूरी अकाट्य गणना पाचंवी सदी में की थी ,जिसकी इरानी विद्वान्
अलबरूनी ने 500 वर्ष बाद भूरि-भूरि प्रशंसा
करते हुए अपने देश के विद्वानों को बताया | लेकिन जेम्स इसको भी नकारता है|
यह अलग बात है कि लगभग 1000 साल बाद भी आर्य भट्ट को सही ठहराते हुए जब गैलिलियो
और कापरनिकस सूर्य को स्थिर और पृथ्वी के
घूमने की बात कहतें हैं तो योरोप के शासक उन्हें सजा देते हैं|क्यों कि यह बात
ईसाईयों की 1500 साल पुरानी धार्मिक अवधारणा
की चूलें हिला देता है | फिर जंगली और बर्बर कौन हुआ?
भारतीय हिन्दू नववर्ष एक
वैज्ञानिक आधार पर पूर्वस्थापित अति प्राचीन अवधारणा है | यह पर्व सम्पूर्ण विश्व
में एक अनूठा दिन है जिस दिन प्रकृति अपनी कलात्मक छवि के साथ खगोलीय पवित्रता से
बंधी रहती है | चैत्र माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का दिन स्मरण कराता है कि इसी दिन श्रृष्टि
का आरम्भ दिवस है| युगाब्द और विक्रम संवत का प्रथम दिवस है|श्रृष्टि के प्रारंभ
से अब तक १ अरब ९५ करोड़ ५८ लाख ८५ हजार ११२ वर्ष बीत चुके हैं| यह गड़ना ज्योतिष
विज्ञान द्वारा निर्मित है| इसी दिन रेवती नक्षत्र विष्कुम्भ योग के दिन के प्रकाश
में भगवान के आदि अवतार मत्स्य रूप का प्रादुर्भाव हुआ| यह पुनीत दिन सतयुग के
प्रारंभ का दिन है | मर्यादा पुरुषोतम श्री राम ने इसी शुभ दिन को राज्याभिषेक
स्वीकार किया| मां दुर्गा नवरात्रि के प्रारम्भ का यह दिन है |सम्राट विक्रमादित्य
द्वारा विक्रमी संवत का प्रारम्भ इसी दिन से किया गया | इसी दिन शालिवाहन शक संवत
भी प्रारंभ हुआ |इसी दिन महर्षि दयानंद ने आर्यसमाज की स्थापना की |इसी दिन
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा (मराठी पडवा) का पर्व मनाया जाता है जिसका अर्थ होता है
विजी पताका |कर्नाटक में इसी दिन उगादि के रूप में मनाया जाता है |गणितज्ञ
भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन महीना और वर्ष की
गणना करते हुए पंचांग की रचना की गयी |
सिख पंथ के महान गुरू अंगददेव जी का जन्मदिवस तथा सिंध प्रान्त के महान समाज रक्षक
संत झुलेलाल का प्रगट दिवस इसी दिन है | विश्व के सबसे बड़े संघटन राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा.केशव बलिराम हेडगेवार के जन्म का दिन यही शुभ दिवस
है | इस शुभ दिवस को दो ऋतुओं का संधिपर्व होता है |प्रकृति नवपल्लव,किसलय धारण कर
नई रचना प्रारंभ करती है | ऐसे नववर्ष को अपनी संस्कृति से अपरिचित ,पाश्चात्य सभ्यता को ही सबकुछ मान बैठे भ्रमित
हिन्दुओं द्वारा 31 दिसंबर की रात को अंग्रेजी नववर्ष मनाना गुलामी का प्रतीक है |
विगत 70 वर्षो से सेकुलारिज़म के चक्कर में तथा
मैकाले शिक्षा के कारण हम अपने अस्मिता को भूल गए | रही सही कसर बामपंथियों द्वारा
कूटरचित इतिहास के ज्ञान ने पूरी की है | भारत की सर्व धर्म सम भाव तथा सर्वे
भवन्तु सुखिनः वाली विश्व कल्याण की विचारधारा को जानबूझ कर पीछे धकेला गया
|हिन्दू नववर्ष मनाना साम्प्रदायिकता की श्रेणी में रखा गया | भारतीय
विश्वविद्यालयों में परोसा जाने वाला ज्ञान भी विदेशों से आयातित ज्ञान पर आधारित
है |खेद की बात यह है की आज हम इस स्थिति
में नहीं हैं कि संस्कृत भेंट के रूप में विश्व को कुछ दे सकें | केंद्र
में सत्ता परिवर्तन के बाद स्थिति बदली है |योग विद्या आज पूरे विश्व में स्वीकार
की गयी है |सही इलाज़ यह है की हम राष्ट्र
की चेतना को प्रबुद्ध और व् उसके चरित्र व् व्यक्तित्व को परिपक्व तथा प्रभविष्णु
बनायें| हमारे पूर्वज एक सप्राण,प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण महापुरुष थे |उन्होंने
सभ्यता एवं संस्कृति के क्षेत्र में अर्थपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की थीं| हमें यह
खोजने का प्रयास करना चाहिए कि पूर्वजों की दृष्टि में वे कौन से जीवन-मूल्य थे जो
व्यक्तिगत एवं जातीय महत्ता के उपादान समझे जाते थे |
भारतीय नववर्ष के सम्बन्ध में
हमारा आत्मगौरव जागे ,हम इसकी महत्ता को समझ इसको पुनर्प्रतिष्ठापित करने में
समर्थ हो सकें इसके लिए समाज खड़ा हो रहा है | आत्मचेतना जागृत करने का प्रयास अब
तेज गति पकड़ रहा है | आज समय आ गया है जब भारत के विद्वान् फ्हिर से भारतीय
संस्कृति और ज्ञान को पुनर्प्रतिष्ठापित करें |पक्षिमी वितंडावाद से प्रभावित भारत
के बामपंथी बुद्धिजीवियों को वास्तविकता से परिचित कराएं | हम सब भारतीयों का
पुनीत कर्तव्य है की हम स्वयं तथा आगे की पीढ़ी को प्रयास कर के संस्कारित करें तथा
भारतीय हिन्दू नववर्ष को निष्ठा तथा पूर्ण कर्मकांड से उत्साहपूर्वक पूरे विश्व
में मनाएं |
*लेखक
उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अवकाशप्राप्त
वरिष्ठ अधिकारी तथा सम्प्रति निदेशक,लखनऊ जनसंचार एवं पत्रकारिता
संस्थान(विश्व संवाद केंद्र ,लखनऊ) हैं |
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