Thursday 17 February 2022

 स्वतन्त्रता आन्दोलन के उत्प्रेरक पत्रकार

* अशोक कुमार सिन्हा
हिन्दी पत्रकारिता भारत में अपने जन्म काल से ही स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्प्रेरक की भूमिका में अग्रणी रही। अन्याय, अज्ञान, प्रताडऩा और राष्ट्र धर्म निभाने वालों का उत्पीड़न यदि उजागर हुये तो यह कार्य समाचार पत्रों ने किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में पत्र-पत्रिकायें व पत्रकार जन भावना की अभिव्यक्ति बने। पत्रकारों ने अपने कलम से भारतीय क्रान्तिवीरों का जहां मार्गदर्शन किया, वहीं जनमानस का मनोबल बढ़ाया। लगभग प्रत्येक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ने अपने आन्दोलन के विविध कार्यों के साथ समाचार पत्र भी निकालें। महर्षि अरविन्द घोष, भूपेन्द्रनाथ दत्त, डॉक्टर एनी बेसेन्ट, महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय आदि सभी ने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिये अखबार प्रकाशित करने का कार्य किया है। उस समय यह माना जाता था कि-
खींचो ना कमानो को,
ना तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तो,
अखबार निकालो।।
उग्र राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत पत्रकारों के लेखन से अंग्रेज बहुत भयभीत और परेशान रहते थे। प्रसिद्ध क्रान्तिवीरों में सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, आचार्य नरेन्द्र देव, योगेश चन्द्र चटर्जी, शचीन्द्रनाथ सान्याल, यशपाल अपने लेखों से इन पत्रों में जन जागरण और जोश भरने का कार्य करते थे। उदन्त मार्तण्ड (कोलकाता), कवि वचन सुधा (काशी), हिन्दुस्तान (लन्दन एवं कालाकांकर प्रतापगढ़) सरस्वती (काशी), प्रताप (कानपुर), कर्मवीर (जबलपुर), आज (बनारस), 'अल्मोड़ा' अखबार, बिहार बन्धु (पटना), हिन्दी केसरी (पूना), मराठी केसरी (पूना), स्वराज (इलाहाबाद), और गुप्त पत्रों में 'रणभेरी', 'शंखनाद', 'चिञ्गारी 'रणडंका', 'चण्डिका' और 'तूफान' नामधारी पत्रों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में अंग्रेज शासकों के दांत खट्टे कर दिये थे। गुप्त पत्रों को निकालने में विष्णुराव पराड़कर, रामचन्द्र वर्मा, विश्वनाथ शर्मा, दुर्गा प्रसाद खत्री, दिनेश दत्त आदि तपस्वियों ने विप्लव पत्र के रूप में इसे निकाला। इन गुप्त पत्रों के प्रकाशक एवं मुद्रक डीएम व  प्रकाशन स्थान कोतवाली लिखे जाते थे। गुप्तचर विभाग इन गुप्त पत्रों के छपने का स्थान ढूंढता रहा परन्तु रोज प्रात: चार बजे स्वतन्त्रता सेनानी लोगों के घरों में चौखट के नीचे से अखबार सरका जाते थे। इन पत्रों में देश को स्वतन्त्र कराने और अंग्रेजी शासन के अत्याचार और लूटमार की खबरें प्रमुखता से मुद्रित की जाती थीं। जन जागरण का अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध इनमें सामग्री भरी रहती थी।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय 8 फरवरी 1857 को स्वतन्त्रता आन्दोलन नेता अजीमुल्ला खाँ ने 'पयामे आजादी' दिल्ली से प्रकाशित किया। इसका मराठी संस्करण झांसी से प्रकाशित होता था। इसमें मंगल पाण्डे, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मी बाई आदि की संघर्ष कथाएं मुद्रित होती थीं। 1900 से 1920 के युग में लोकमान्य तिलक के मराठी दैनिक 'केसरी' ने राजनैतिक जड़ता को तोड़कर भारतीय समाज को पूर्ण स्वराज्य की ओर प्रेरित किया। 1905 में बंगाल विभाजन की घोषणा होने पर महर्षि अरविन्द ने 'वन्दे मातरम' प्रकाशित कर अंग्रेजों को सन्देश दिया कि, भारत भारतीयों के लिये है। इसी समय युगान्तर (बांग्ला), 'संध्या' (बंगला) भी प्रकाशित हुये। 2 जनवरी 1881 से अंग्रेजी में प्रकाशित 'मराठा' और 3 जनवरी 1881 से मराठी भाषा में लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' प्रकाशित कर घोषित कर दिया कि स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे। लोकमान्य तिलक की लेखनी प्रभावी और भाषा अक्रामक होती थी। 1903 में नागपुर से हिन्दी केसरी का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसके सम्पादक माधव राव सप्रे थे। 9 नवम्बर 1913 में कानपुर से 'प्रताप' का प्रकाशन हुआ जिसके कर्ताधर्ता सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे। पत्र के  प्रथम मुख्य पृष्ठ पर ही निम्न पंक्तियाँ सिद्धान्त रूप में छपती थीं।-
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है और मृतक समान है।
1919 में गोरखपुर से 'स्वदेश' का प्रकाशन हुआ जिसके सम्पादक और संस्थापक दशरथ प्रसाद द्विवेदी थे। यह पत्र 1939 तक चला। इसमें राष्ट्रीय विचार से उग्र लेख लिखने पर बेचन शर्मा 'उग्र' व सम्पादक दशरथ शर्मा द्विवेदी को समय-समय पर जेल जाना पड़ता था। जलियाँवाला बाग काण्ड के बाद महात्मा गांधी द्वारा 'यंग इण्डिया' इसी का गुजराती संस्करण 'नवजीवन' और 'हिन्दी नवजीवन' प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ जो बाद में 'हरिजन' नाम से संयुक्त रूप से प्रकाशित होने लगा। इन पत्रों ने असहयोग सत्याग्रह और भारत छोड़ो आन्दोलन को सक्रियता प्रदान की। 1920 में जबलपुर से 'कर्मवीर, सप्ताहिक और 1923 में अर्जुन को 1939 में 'वीर अर्जुन, का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जिसके सम्पादक इन्द्र विद्यावाचस्पति थे। पत्र का आदर्श वाक्य था 'न दैन्य न पलायनम्,। बाबूराव विष्णु पराडकर एवं आचार्य नरेन्द्र देव भूमिगत पत्रकारिता के प्रमुख स्तम्भ थे जिन्होंने 'बवण्डर,, 'रणभेरी,, 'बोल दे धावा,, 'शंखनाद, और ज्वालामुखी को साइम्लोस्टाइल छाप कर जनता को जगाया।
1930 में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द ने 'हंस, प्रकाशित किया जिसके प्रथमांक में स्पष्ट किया गया कि ''मगर स्वाधीनता केवल मन की वृत्ति है। इस वृत्ति का जागना ही स्वाधीन हो जाना है। अब तक इस विचार ने जन्म ही न लिया था। हमारी चेतना इसी मन्द, शिथिल और निर्जीव हो गई थी, उसमें ऐसी महान कल्पना का अविर्भाव ही ना हो सकता था, पर भारत के कर्णधार महात्मा गांधी ने इस विचार की सृष्टि कर दी। अब यह बढ़ेगा फूले-फलेगा'' 1 जनवरी 1943 ईस्वी को बाबूराव विष्णु पराड़कर के सम्पादन में 'संसार' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। क्रान्तिकारी यशपाल ने 'विप्लव' प्रकाशित किया। 1938 के इसके अंक में छपा ''आज हम अपनी गुलामी की इन हथकडिय़ों को तोड़ डालने के लिये अपनी दासता के बन्धनों को आग में जला देने के लिये विप्लव के कुण्ड में कूद पड़े हैं। आज हिचकिचाने का और शंका करने का समय नहीं है।''
5 सितम्बर 1920 से बनारस के बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने ज्ञान मण्डल लिमिटेड की स्थापना कर हिन्दी दैनिक 'आज' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। राष्ट्रप्रेम से अनु प्रमाणित इस पत्र ने सदैव ब्रिटिश शासन की दमनात्मक नीतियों का विरोध किया। अंग्रेजों द्वारा एकाधिकबार इसके प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगाया। 21 अक्टूबर 1930 से 8 मार्च 1931 तक विरोध स्वरूप सम्पादकीय स्तम्भ के स्थान पर केवल यह वाक्य प्रकाशित होता था कि ''देश की दरिद्रता, विदेश जाने वाली लक्ष्मी, सर पर बरसने वाली लाठियां, देशभक्तों से भरने वाला कारागार, इन सबको देख कर प्रत्येक देश भक्त हृदय में जो अहिसांमूलक विचार उत्पन्न हो, वही सम्पादकीय विचार हैं।
आज के संवाददाताओं में महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू तथा इसके सम्पादकों में श्री प्रकाश एवं विष्णु राव पराडकर प्रमुख थे। पराडकर जी ने अपने प्रथम सम्पादकीय में लिखा- ''हमारा उद्देश्य अपने देश के लिये सब प्रकार से स्वातन्त्र्य उपार्जन है। हम हर बात में स्वतन्त्र होना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढ़ायें, अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें, उनको ऐसा बनायें कि भारतीय होने का उन्हें अभिमान हो, संकोच न हो।'' 'आज' ने अपने इस उद्देश्य को पूरा किया।
इस दौर की प्रकार पत्रकारिता ने राजनीति को साहित्य में अलग कर दिया। मतवाला, हंस, चांद, माधुरी जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 31 मई 1924 के 'मतवाला' के सम्पादकीय में अन्तिम पैरा में छपा... यदि आप स्वतन्त्रता के अभिलाषी हैं, अपने देश में स्वराज की प्रतिष्ठा चाहते हैं तो तन मन धन से अपने नेता महात्मा गांधी के आदेशों का पालन करना आरम्भ कीजिये। 1923 में राजस्थान सेवा संघ की ओर से 'तरुण राजस्थान' का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ जो निर्भीकता से सम्पादक शोभालाल गुप्त और रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता का शंखनाद हुआ। दोनों सम्पादकों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और छह-छह  महीने की सजा हुई। सेवा संघ के कार्यालय पर पुलिस का छापा पड़ा जहां संवाददाताओं की सूची अंग्रेजों के हाथ लगी और उन पर कहर ढाया गया।
स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिवीरों में जोश भरने और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने वाले साहित्य साधक गया प्रसाद शुक्ल सनेही को हमें स्मरण करना चाहिये। जिसकी कविता और रचनायें अंग्रेजों को त्रिशूल की भांति चुभती थीं। ये देश प्रेम और मानवतावाद के अनोखे कवि थे। 21 अगस्त 1883 को उन्नाव जनपद में हड़हा गांव में जन्मे इस कवि को सार्वजनिक कवि सम्मेलन के आयोजन का श्रेय तो जाता ही है साथ ही राष्ट्रीय चेतना के उन्नायक के रूप में प्रसिद्ध हुये। त्रिशूल नाम से इनकी कवितायें कानपुर के प्रताप सहित अन्यान्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती थी।
अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 20 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतर सुइया में हुआ था। बाद में पीजीएन कॉलेज कानपुर में अध्यापन करते समय क्रान्तिकारी सुन्दरलाल से प्रभावित हुए। इन्होंने 'प्रताप' का सम्पादन किया जहां उनका सम्पर्क भगत सिंह और चन्द्रशेखर आजाद से मुलाकात हुई। रामवृक्ष बेनीपुरी भगवती चरण वर्मा की पहली रचनायें 'प्रताप' में ही छपी। गणेश जी भारती युवक, हरि, दिवाकर,  वक्रतुण्ड, कलाधर, लम्बोदर, वन्दे मातरम और गजेन्द्र आदि छद्म नाम से राष्ट्रीय भक्ति का अलख जगाया और अपनी सादगी, सेवा भावना व सक्षम लेखनी से अमर हो गये। वे एक निर्भीक देशभक्त सेनानी थे। 25 मार्च 1931 को वे कानपुर में अज्ञात मुस्लिम धर्मान्धो के हाथ शहीद हो गये।
माखन लाल चतुर्वेदी मूलत: कवि और स्वदेश गौरव गान, राष्ट्रीय जागरण, यवनों के प्रति घृणा स्वदेशी के प्रचार और भारत माता के वन्दना में वे महान हो गये।
स्वतन्त्रता की अलख जगाने में अल्मोड़ा से प्रकाशित 'अल्मोड़ा अखबार' की बुद्धि वल्लभ पन्त, कुमाऊं केसरी के बद्री दत्त पाण्डेय अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लिखने पर जुर्माने के भागीदार बने। उस समय की एक कहावत थी कि ''एक गोली के तीन शिकार, मुर्गी, कुली और अल्मोड़ा अखबार''। इस क्षेत्र में अल्मोड़ा अखबार के बन्द होने पर 18 अक्टूबर 1918 में विजय दशमी के दिन  'शक्ति' नाम से बद्रीदत्त पाण्डेय ने दूसरा अखबार निकाला जो स्वतन्त्रता आन्दोलन में उत्प्रेरक का एक स्तम्भ बना। इसी क्रम में 1930 में विजय और 1937 में उत्थान व इडिपिडेन्ट इण्डिया और 1939 में पिताम्बर पाण्डेय ने हल्द्वानी से जागृत जनता का प्रकाशन किया जो अपने आक्रामक तेवरों के कारण 1940 में उसके सम्पादक को सजा व 300 रुपये जुर्माने का दण्ड मिला।
यह सुस्पष्ट है कि हिन्दी के पत्र स्वतन्त्रता आन्दोलन के सक्षम सेनानी सिद्ध हुये हम स्वतन्त्र हुये और आज स्वतन्त्रता 75 वर्षों का अमृत महोत्सव मना रहे हैं अत: इन पत्रकारों को हम श्रद्धांजलि देते हुये इनकी प्रेरणात्मक रचनाओं व शैली को नमन करते हैं।
* प्रसिद्ध लेखक, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं विश्व संवाद केन्द्र अवध लखनऊ के प्रमुख हैं।
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