Monday, 22 September 2025

पंच परिवर्तन एक संकल्प:जान चेतना से राष्ट्र चेतना की ओर 

स्व- आत्मबोध का दीप दिखाता संघ 

लेखक:- अशोक सिन्हा 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में ईश्वरीय कार्यों के रूप में हुई थी और ईश्वरीय इक्षा से ही इस ध्येयनिष्ठ संगठन के शतायु वर्ष की सबल सक्षम अटूट पूर्णता हुई है ।यह एक अल्पविराम है। व्यक्ति निर्माण, अनुशासन , देशभक्ति के माध्यम से भारत माता की सेवा को केंद्र में रख कर संघ का निर्माण हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है । समाज को संगठित करना , हिंदुत्व विचारधारा का प्रसार , भारतीय संस्कृति और मूल्यों को बनाये रखना तथा स्वयंसेवकों का राष्ट्रनिर्माण में योगदान यही संघ विचार का लक्ष्य है । भारत माता की जय इस संघटन का जयघोष है और विश्व को एक परिवार मान कर मानवीय संवेदना से राष्ट्रसेवा का कर्तव्य निभाना , सुपंथ पर चलकर संगठन खड़ा करते हुए सम्पूर्ण हिंदू समाज की आत्मचेतना को जागृत करते हुए आत्मीयभाव से साथ उसका मार्गदर्शन करना ही ईश्वरीय कार्य है ।दीप से दीप जला कर संघ के स्वयंसेवक स्वयं नए कार्यकर्ता तैयार करते हैं।राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी उठाना , स्व बोध से समाज विस्मृति की बेड़ियां तोड़ कर समाज को नई दिशा देना , समरस समाज से विराट शक्ति खड़ी कर शक्तिशाली , परम वैभवशाली हिंदू समाज की विश्वगुरु भारत बनने की दिशा में संघ एक दीप स्तंभ बनने की भूमिका निभा रहा है। 

          हिंदू एक सर्वसमावेशी राष्ट्रीयतासूचक विचार है।संघर्ष नहीं सबका समन्वय हमारे चिंतन के केंद्र में है।विविधता की एकता ही भारत की पहचान है । देशभक्ति और सनातन पूर्वजों की परंपरा से संघ ओतप्रोत है।स्वावलंबी संघटन से व्यक्तिनिर्माण हमारी कार्यपद्धति है । विचार , संस्कार और आचार ठीक रहे यह निरंतर प्रयास है ।देश जब परतंत्र था , समस्याओं से घिरा था तब डा. हेडगेवार जी ने सभी आंदोलनों की कार्यपद्धति को समझा , क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित किया । उनके साथ रहकर चर्चा की और अपना निष्कर्ष निकाला कि केवल नेताओं और संगठनों के भरोसे देश का कल्याण नहीं होगा।उन्हें अनुभव हुआ कि समाज में गुणात्मक सुधार और एकजुटता से ही देश का स्थायी कल्याण होगा।इसी निष्कर्ष से संघ की स्थापना हुई । अपने स्थापना काल से ही संघ समाज का मार्गदर्शन करता रहा ।संघ ने कहा की देवभक्ति और देशभक्ति एक ही कार्य है । यह तर्क नहीं अनुभव है।संघ को समझना सरल नहीं है संघ की तुलना की जाय ऐसी कोई संस्था न होने के कारण उसका उपमान नहीं है। सदियों से समाज को सही दिशा दिखाने के कारण और भारतीय दर्शन, सभ्यता , संस्कृति के आधार पर व्यक्ति निर्माण कर देश व विश्व की मंगलकामना करते हुए मानवहित में रत इस संगठन को यदि सम्पूर्ण विश्व का दीपस्तंभ माना जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।संघ ने अपने स्थापनाकाल से ही समाज को यह संदेश देना प्रारम्भ किया कि संगठित भारतीय समाज से ही यशस्वी भारत बन सकता है। संघ ने समाज को अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही अनुभव कराना प्रारंभ कर दिया था कि हमको दुर्बल नहीं रहना है वरन् संगठित हो कर सबकी चिंता करनी है ।संघ ने चरित्र निर्माण, संगठन , दैनिक शाखा और अनुशासन के आधार पर समाज को विश्वास दिलाने का प्रयास किया की भारत की संस्कृति, परंपरा और अर्थव्यवस्था परम वैभव संपन्न , शक्तिसंपन्न राष्ट्र की रही है। संगठन में ही शक्ति है । हमारा काम सबको जोड़ने का है।देश की विविधता में हमे एकता देखनी है।वैचारिक मतभेद होने पर भी हम सब भारतीय हैं , हिंदू हैं।हम संवाद से एक बनेगें तथा हम भारत को महान बनायेंगे।भारत में जन्मे सभी मत, पंथ, संप्रदाय और उपासना पद्धतियों का एक सामूहिक मूल्यबोध है और उसी का नाम हिंदुत्व है। परंपरा, राष्ट्रीयता, मातृभूमि, पूर्वजों से हम हिंदू हैं।हमारा कोई शत्रु नहीं है और यदि कोई मानता भी है तो हमारा प्रयास उनको भी साथ लेने और जोड़ने की है।हमारी पहचान हिंदू पहचान है जो हमें सबका आदर करना,भला करना , सबको अपना मान कर मेलमिलाप करना सिखाती है। संघ इसीलिए इस हिंदू समाज को संगठित कर भारत को विश्वगुरु के स्थान पर पुनः स्थापित करना चाहता है।

         हमारी संस्कृति सर्वसमावेशी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से ही सम्पूर्ण भारत में यह संदेश गया कि डॉक्टर हेडगेवार ने हिंदू एकता और अनुशासन का जो शंख बजाया है वही सब समस्याओं से मुक्ति दिलायेगा।गुरु जी श्री माधव सदाशिव गोलवरकर के समय में संघ ने यह संदेश देकर कि संघ सर्वस्पर्शी संगठन है,समाज के प्रत्येक स्थान पर पहुँच कर शाखा न केवल शाखा विस्तार किया वरन् जीवन के प्रत्येक क्षेत्र समवैचारिक संगठनों की स्थापना की।सभी स्वयंसेवकों को और सम्पूर्ण समाज को यह संदेश मिला की दशों दिशाओं में जावो, दलबादल से छा जावो, उमड़-घुमड़ कर इस धरती को नंदनवन सा सरसाओ।इससे सम्पूर्ण हिंदू समाज को संघकार्यों की स्वीकार्यता मिली और हिंदू समाज का मनोबल सर्वोच्यता पर पहुँच गया।श्री बालासाहेब देवरस जी के नेतृत्व में समाज में अस्पृश्यता के विषबेल को काटने के लिए सभी हिंदू सहोदर है , एक ही मातृभूमि की सब संताने है , यह भाव जगा।छुआ-छूत यदि पाप नहीं है तो इस दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है , यह मंत्र गूंजने लगा। इससे हिंदू समाज का आत्मचिंतन जगा ।सामाजिक परिवर्तन की लहर उठी।देश में आपातकाल जब लागू हुआ तब संघ ने इसे जनतंत्र और जन स्वतंत्रता पर आघात कहकर प्रबल विरोध किया । यद्यपि संघ पर प्रतिबंध लगा पर संघ भूमिगत रह कर जनजागरण करता रहा । अनेकों कार्यकर्ता जेल में भी बंद रहे परंतु चाहे जयप्रकाश नारायण आंदोलन रहा हो या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में रहकर संघ ने देश और जनतंत्र की रक्षा की।राष्ट्रीय सांस्कृतिक जनजागरण के लिए श्रीरामजन्म भूमि आंदोलन में राष्ट्रीय कार्य मान कर संघ नें विश्व हिंदू परिषद, समाज व साधु-संतों के साथ मिल कर हर प्रकार की लड़ाई लड़ी और श्रीरामजन्मभूमि पर नव्य-भव्य मंदिर निर्माण से हिंदू नवसांस्कृतिक नवजागरण का संदेश संघ ने दिया।हिंदू समाज के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के जिस स्तर पर आज यह समाज खड़ा है इसके पीछे संघ के करोड़ों स्वयंसेवकों का अथक परिश्रम, बलिदान तथा संगठन का मार्गदर्शन समाहित है।संघ के स्वयंसेवकों ने विदेशों में भी जाकर हिंदू समाज को संगठित करने और उनको अस्मिता को सुरक्षित रखने में जो योगदान दिया है वह संघ की प्रेरणा से ही संभव हुआ है।दुनिया के 50 से भी अधिक देशों में भारतीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू स्वयंसेवक संघ के नाम से शाखाओं का संचालन संघ के विदेश विभाग से हो रहा है।संघ की ही प्रेरणा, प्रयास और निर्देशों से जब सुदूर दक्षिणभारत के कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक का ध्वज लहराता हर भारतीय देखता है तो वह इस प्रकाश स्तंभ को देख कर भारतीय होने पर गर्व करता है।संघ की प्रेरणा, मार्गदर्शन और प्रशिक्षण से तप कर निकले दो स्वयंसेवक जब राजनीति के सेवा क्षेत्र में प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए तो उन्होंने राजनीति में जनसेवा के नए मानदंड स्थापित कर दिया ।जिस प्रकार श्रीमदभागवत गीता मानव जीवन के प्रत्येक अवसर के लिए अपना पवित्र संदेश देती है ठीक उसी प्रकार संघ विचार भी समाज को हर समय संदेश देने और मार्गदर्शन देने का कार्य करती रहती है।

            संघ के शतायु वर्ष 2025 में स्वयंस्फूर्ति से राष्ट्र सेवा हेतु तत्पर स्वयंसेवकों के लिए गौरवान्वित करनेवाला अवसर आया है।डॉक्टर जी ने जो राष्ट्रभक्ति का बीज बोया था उसके आकार लेने का स्पंदन हम अनुभव कर रहें हैं।संघ ने सौ वर्षों तक जो अथक परिश्रम से समाज संगठन का स्वरूप खड़ा किया है वह केवल एक अर्ध विराम का गणित है , अभी इसका विराट स्वरूप आना शेष है ।निरंतर यात्रा के इस मोड़ पर पुनः संघ ने आवश्यक समाज परिवर्तन की आवश्यकता का अनुभव किया है ।राष्ट्रीय परिदृश्य में राष्ट्र की समृद्धि के लिए पाँच ऐसे महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन कि आवश्यकता संघ ने आवश्यक समझा जो प्रत्येक भारतीय नागरिकों को अपनाने चाहिए ।ये परिवर्तन पंच परिवर्तन या पंच प्रण के रूप में घोषित किए गए हैं। शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवकों के कार्य के मूलाधार बनेंगे ।ये परिवर्तन सूत्र सरल, भावपूर्ण, व्यावहारिक एवं समाज द्वारा आसानी से ग्रहणयोग्य है ।ये परिवर्तन सूत्र हैं :- 

1- समाज में “स्व” की अनुभूति । 

2- सामाजिक समरसता ।

3- कुटुम्ब प्रबोधन ।

4- नागरिक कर्तव्यों का बोध । 

5- पर्यावरण सुरक्षा ।

                 सामाजिक परिवर्तन की यह पंच धारा भारत के सभी मत, पंथ, संप्रदाय और विचारों को आसानी से स्वीकार्य होंगें ।किसी को भी इसे अपनाने और सहभागी बनने में संकोच नहीं होगा।भारत को संपन्न राष्ट्र बनने में यह प्राणवायु की तरह प्रभावशाली होंगे।यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा का भी परिचय हैं ।इन परिवर्तनों से विश्वगुरु भारत का अभ्युदय प्रारम्भ होगा।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी ने इन पंच परिवर्तन के भावों को स्पष्ट करते हुए पहले ही कह दिया है कि राष्ट्र की उन्नति अपनी प्रकृति पर आधारित होनी चाहिए।सद्भाव व समरसता से ही जाएगी जाती-पाति की कुरीति।कुटुंब है बालकों की प्रथम आचारशाला । भारत में नागरिक अनुशासन का पालन सर्वोपरि है।विकास एवम पर्यावरण में संतुलन अनिवार्य होना चाहिए। समाज को नवचैतन्यता प्रदान करने के लिए इन पाँच परिवर्तन का विमर्श खड़ा करना होगा।समाज प्रबोधन के लिए भारत के हर गांव, घर में गहन संपर्क करना होगा । प्रबुद्ध समाज में संवाद गोष्ठियां करनी होगी। सम्मेलन, रैलियां करके जनजागरण करना होगा। संघ इस निमित्त बस्ती को केंद्र मान कर वर्षभर जनजागरण के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।2अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक विजयदशमी उत्सव के निमित्त बस्तियों में कार्यक्रम आयोजित कर जनसामान्य के मध्य स्वावलंबी भारत , समर्थ भारत , सक्षम भारत की बात हुई है । पुनः 5 से 16 नवंबर के मध्य सामाजिक सद्भाव जागरण हेतु बस्तियों में गोष्ठियां आयोजित होंगी ।20 नवंबर से 21 दिसम्बर तक स्वयंसेवक व्यापक गृह सम्पर्क अभियान चला कर पंच परिवर्तन की बातें घर-घर तक पहुँचा कर उसकी आवश्यकता और महत्ता से जनसामान्य को जागरूक करेंगे । अगले वर्ष 2026 में एक जनवरी से 31 जनवरी तक ग्राम-ग्राम , बस्ती -बस्ती में हिंदू सम्मेलनों का आयोजन होगा।23 से 28 फ़रवरी तक प्रबुद्ध जनों की जनगोष्ठियाँ आयोजित होंगी जिसमें पाँच परिवर्तन के विषयों पर व्यापक चर्चा होगी। आगे एक सितंबर से 20 सितंबर तक इन कार्यक्रमों में युवा वर्ग केंद्रित कार्यक्रम होंगे जिसमें युवकों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।इस प्रकार संघ केवल मार्गदर्शन ही नहीं देगा वरन् राष्ट्रहित में परिवर्तन की लहर सम्पूर्ण समाज को उद्वेलित कर सके यह प्रयास भी किए जायेंगे। यह कार्य वर्तमान समय में राष्ट्र की उन्नति में अवश्य ही कारगर होंगे । देश की जनता का मनोबल बढ़ेगा । समाज में हमे वैश्विक हिंदू खड़ा करना है । आर्थिक क्षेत्र में हमें नौकरी करनेवाला ही नहीं जॉब क्रिएटर बनना होगा यह भाव युवकों में जगाना होगा तभी हम इनवैश्विक चुनौतियों का सामना करनें में सक्षम बन सकेंगे ।हम माँ लक्ष्मी के उपासक हैं।देश विश्व गुरु बने इसके लिए देश की आर्थिक शक्ति के साथ- साथ सामाजिक शक्ति भी सर्वोपरि बने यही संघ का स्वप्न है।पंच परिवर्तन संघ का समाज परिवर्तन के लिए एक संकल्प है। जनचेतना से राष्ट्र चेतना की ओर आगे बढ़ने का संकल्प है । भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए संघ को कई पीढ़ियों को मार्गदर्शन दे कर राष्ट्रचेतना से स्फूर्त बनाना होगा।







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