Saturday 10 October 2020

 किसान हित में कृषि सुधार के नये कानून 

अशोक सिन्हा
कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन कानून गत माह संसद में बने हैं जो चर्चा, आन्दोलन, भ्रम, जिज्ञासा और आशंका के कारण बने। इन तीन कानूनों के नाम हैं 1- कृषि उत्पादन, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) 2020, 2- मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा 2020, ३. आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 । अब यह तीनों विधेयक संसद में पारित हो कर राष्टï्रपति के हस्ताक्षर से कानून बन चुके हैं। 
पहले कानून कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) के अनुसार किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेचने की अनुमति देता है। इसके अनुसार एक देश-एक बाजार की अवधारण लागू होती है। किसान को उसकी उपज का सर्वाधिक मूल्य जहां मिलेगा, वह अपना उत्पाद गांव से या व्यापारिक प्लेटफार्म पर देश में कहीं भी बेच सकेगा। वह अपनी उपज भण्डारण भी कर सकेगा और उसे जब उचित मूल्य मिलेगा तब बेचेगा। वह अपने निकट के मण्डी में भी पूर्व की भांति मण्डी शुल्क देकर अपनी उपज बेचता रहेगा। 
दूसरा कानून है मूल्य आश्वासन पर किसान (बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा करार। इस कानून के अनुसार फसल की बुवाई के पहले किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबन्ध करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे किसान का जोखिम कम होगा, क्योंकि जोखिम करार करने वाली संस्था उठाएगी और उवर्रक व नवीन उपकरण आदि वही संस्था उपलब्ध कराएगी। किसान को खरीददार खोजने के लिए कहीं आना-जाना नहीं पड़ेगा। किसान समझौता पत्र पर जो मूल्य चाहता है बुवाई के समय ही उसी मूल्य पर करार करने को स्वतन्त्र होगा। कृषि आधारित उद्योगों, थोक या बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि के साथ किसान अनुबन्धित कृषि कर सकते हैं। उन्हें ऋण, बीज, तकनीकी सहायता, बीमा सुविधा आदि उपलब्ध करने वाली संस्था ही देगा। यह किसानों को मालिकाना हक बनाये रखने और उसके अधिकारों को पूर्णत: सुरक्षित रखने का कानून है। इस कानून में जमीन गिरवी रखना, लीज पर देना 
प्रतिबन्धित है। 

तीसरा कानून आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन विषयक है। इसके अनुसार आवश्यक वस्तु की श्रेणी बहुत पहले बनी थी। आज की और भविष्य को देखते हुए किसान हित में इसमें संशोधन करने की आवश्यकता थी जो अब पूरी हो गयी है। गेहूं, चावल, दाल, तिलहन, आलू, प्याज इस अधिनियम से मुक्त होंगे तथा इनकी भण्डार सीमा समाप्त होने से शीतगृहों से किसानों को लाभ होगा। सरकारी बन्धन से मुक्त होने से फल, सब्जी खराब नहीं होंगे। केवल युद्घ और भीषण सूखा के समय यह लागू होंगे। बम्पर फसल होने पर किसानों को हानि नहीं होगी। 
प्रश्न यह उठता है कि किसानों को क्या-क्या लाभ और सुविधा प्राप्त होगी। विशेषकर छोटे किसानों का जीवन कैसे चलेगा। उसकी स्थिति में क्या-क्या सुधार आएंगे। पहले किसान मण्डी के आढ़तियों की दया पर आश्रित था। साधन और पैसा खर्च कर जब किसान मण्डी में माल पहुंचाता था तब बहुत देर प्रतीक्षा बाद आढ़तिया उसके माल का दाम मनमाने ढंग से लगाता था। छोटा किसान मनमाफिक दाम न मिलने पर भी ट्रैक्टर या बैलगाड़ी वापस घर ले जाने की गरज से मनमाने दर पर अपनी उपज आढ़तिया को सौंप देता था। मण्डी व्यवस्था में आढ़तियों की चौकड़ी बन गई थी। भ्रष्टïाचार चरम पर था। चूंकि इस चौकड़ी को राजनैतिक समर्थन भी मिलता था अत: किसान इस नियम से लाचार था कि उसे केवल मण्डी में ही माल बेचना है। छोटे किसान का घर से ही उपज खरीदने की व्यवस्था नहीं हो पाती थी। समर्थन मूल्य मिलना मुश्किल हो रहा था। लघु एवं सीमान्त किसान आढ़तियों के चंगुल में फंसता जा रहा था। यद्यपि मण्डी परिषद की स्थापना 1973 में किसान हित को देखते हुए ही की गयी थी। परन्तु काफी समय से इन पर राजनैतिक संरक्षण प्राप्त आढ़तियों ने मण्डी व्यवस्था में अपनी पैठ बना ली थी। आवश्यकता अनुभव की जा रही थी कि नये जमाने में मण्डी अपनी प्रासंगिकता खो रही है। यहां आढ़तियों और अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों का शोषण हो रहा है। अकेले उत्तर प्रदेश में दो करोड़ से अधिक किसान लघु एवं सीमान्त श्रेणी में आते हैं। खेती में समय के साथ बदलाव आवश्यक है। व्यापारिक नजरिया और माहौल बनाना जरूरी है। ऑनलाइन क्रय-विक्रय से किसान को मण्डियों से मुक्ति मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। 
कई विपक्षी दलों का प्रगाढ़ संरक्षण मण्डी आढ़तियों को नि:सन्देह है जिन्होंने नये कानून का विरोध करते हुए किसानों में यह भ्रम फैलाया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त हो जाएगा। किसान भी आशंकित हो गया था कि नये कानूनों के जरिये कहीं एमएसपी की व्यवस्था खत्म होने पर निजी कम्पनियों और कारोबारियों का एकाधिकार किसानों की उपज की कीमतों को प्रभावित न करने लगे। परन्तु सरकार ने संसद में और प्रधानमंत्री ने स्वयं वक्तव्य देकर किसानों को आश्वस्त किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रहेगा। किसान अब अपनी उपज चाहे मण्डी में या जहां कहीं भी अधिक मूल्य मिले वह किसी व्यक्ति या संस्था को बेचने को स्वतंत्र होगा। भारत में कहीं भी खरीद-बिक्री की स्वतन्त्रता रहेगी। किसान बाधा मुक्त रहेगा। नये कानून का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई सम्बन्ध नहीं, मण्डी व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी। किसानों को उपज बेचने का और विकल्प दिया जा रहा है। अब किसान बड़ी खाद्य उत्पादन कम्पनियों के साथ स्वयं या अपना सम्मिलित संगठन बनाकर पार्टनर की तरह जुड़ कर समझौते के आधार पर अधिक मुनाफा कमा सकता है। करार व्यवस्था से किसानों को निर्धारित मूल्य मिलने की गारण्टी रहेगी। किसान किसी भी समय करार से निकलने को स्वतन्त्र रहेगा वह भी बिना दण्ड शुल्क के। कोई किसान की जमीन बिक्री, लीज या गिरवी रखना गैरकानूनी होगा। करार उपज का किया जाएगा न कि जमीन का। उसे तकनीकी, उपकरण और उर्वरक की सुविधा करार करने वाली कम्पनी उपलब्ध कराएगा और वही जोखिम उठाएगी। किसानों को गारन्टीड मुनाफा होगा। किसान इलेक्ट्रानिक व्यापार के जरिये कहीं भी माल बेच सकेंगे। नेट पर राष्टï्रीय और अन्तर्राष्टï्रीय उपज मूल्य प्रतिदिन प्रदर्शित होगा। किसानों को जहां ज्यादा पैसा मिलेगा वहां माल बेचेगा। राज्य सरकार का मण्डी एक्ट केवल मण्डी तक सीमित रहेगा। केन्द्र सरकार ने कानून बनाने के पूर्व किसानों से काफी चर्चा की। चार करोड़ से अधिक सुझाव आये। कार्य योजना बनाते समय चर्चा की गयी। नये कानून बनने से जो प्रतियोगी भावना बनेगी उसका लाभ किसानों को मिलेगा। अब किसानों और उपज ग्राहक के बीच बिचौलिया समाप्त हो जाएगा। कृषि में निवेश बढ़ेगा, प्रतियोगी भावना जागृत होगी, बुवाईेे समय भेड़चाल बन्द होगा। एपीएमसी एक्ट अर्थात कृषि उत्पादन/विपणन कम्पनी एक्ट के अन्तर्गत किसान अपने उत्पादन को दुनिया में कहीं भी बेच सकता है। पहले केवल मण्डी व्यवस्था किसान की मजबूरी थी। अनुबन्ध कृषि व्यवस्था से अधिकतम पांच वर्ष तक किसान का उत्पाद कम्पनियां खरीद सकती हैं। उसके बाद किसान की मर्जी वह मुनाफा देखेगा तो आगे बढ़ेगा। यह उसकी मर्जी पर निर्भर करेगा। बोनस प्रीमियम का प्राविधान रहेगा। किसान पर फसल खराब होने का जोखिम नहीं रहेगा। मार्केटिंग लागत कम होगी। एग्रो बिजनेस करने वाले किसान अधिक मुनाफा कमायेंगे। अनुबन्ध के आधार पर पैसा मिलेगा। विवाद होने पर किसान के लिए न्यायालय अधिकरण होगा। व्यापारी खरीदेगा तो गांवों में स्टोर बनायेगा। कम्पनियां माल खरीदने पर तुरन्त भुगतान करेगी। ई कामर्स में तीन दिनों के अन्दर किसानों के खाते में भुगतान आना अनिवार्य होगा। 
देखा जाय तो किसानों की मांग थी कि कृषि सुधार हेतु पूर्व में बनी स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की जाय। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट को हूबहू लागू कर दिया है। भारत का किसान 365 दिन का कठोर श्रम कर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 18 प्रतिशत से अधिक का योगदान दे पाता है, फसल निर्यात मात्र 2.5 प्रतिशत हो रहा है। अब नये कानून में वृद्घि होगी। देखा जाय तो ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय एक मार्केटिंग बोर्ड बना कर भारतीय किसानों को बोर्ड के माध्यम से उपज बेचना अनिवार्य बना दिया था। मार्केटिंग बोर्ड का ही नया अवतार मण्डी समितियां हैं। इन मण्डी समितियों पर राजनैतिक दलों ने कब्जा कर लिया था। पंजाब में अकाली दल, महाराष्टï्र में शरद पवार की एनसीपी का कब्जा है। जय जवान-जय किसान का नारा केवल किताबों और भाषणों तक सीमित रहा। कांग्रेस ने दो बैलों की जोड़ी तो कम्युनिष्टïों ने अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह बनाया। परन्तु यह धोखा था। किसान समक्ष नहीं बना। किसान का मुद्दा खबरों के साथ फिल्मों से भी गायब हो गया। पहले फिल्मों में मेरे देश की धरती सोना उगले (फिल्म पूरब पश्चिम) गीत होते थे। फिल्मों में साहूकार आढ़तिया खलनायक होते थे। धीरे-धीरे किसान मुद्दा ही नहीं रहा इस देश में। 
मोदी सरकार आगामी एक वर्ष में एक लाख करोड़ रुपया गांवों में वेयर हाउस और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करने जा रही है। कृषि सुधार में नया कानून मील का पत्थर सिद्घ होगा। यह माना जा रहा है कि जैसे 1991 में उद्योग व्यापार जगत को बन्धन मुक्त किया गया था उसी प्रकार कृषि सुधारों के माध्यम से खेती को अप्रासंगिक कानूनों की जकडऩ से बाहर निकाला जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने की अफवाह केवल किसानों को बरगला कर आन्दोलन खड़ा करना और अपनी राजनीति पुनर्जीवित करना भर है। कृषि उपज बेचने की पुरानी व्यवस्था को खत्म नहीं किया जा रहा है बल्कि उसके समानान्तर एक नई व्यवस्था बनायी जा रही है। अब किसान के पास दो विकल्प होंगे। पहले विकल्पहीनता की स्थिति थी और इसी कारण किसान कों अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा था। खेती पर एकांगी नजरिये से किसान का भला नहीं होगा। कृषि मंत्री ने संसद में स्पष्टï कर दिया है कि नये कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह आगे भी मिलता रहेगा। एमएसपी मात्र सरकार का एक प्रशासनिक आदेश है। यह कानून का हिस्सा नहीं है। दुनिया में इस विषय पर कोई कानून नहीं बना है। किसान गुमराह होने से बचें। 
इस बीच प्रधानमंत्री ने आगामी वर्ष के लिए रबी फसलों में गेहूं में 50 रुपए, जौ में 75 रुपए, चना में 225 रुपए, मसूर में 300 रुपए, सरसों में 225 तथा कुसुम में 112 रुपए की समर्थन मूल्य में वृद्घि की घोषणा कर यह सिद्घ कर दिया है कि सरकार किसानों के साथ है। आशा की जाती है कि गन्ना के मूल्य में भी सरकार अवश्य वृद्घि करेगी। प्रधानमंत्री ने कृषि सुधार को 21वीं सदी की जरुरत बताते हुए छोटे और मझोले किसानों के हित रक्षा का वचन दिया है जो स्वागत योग्य है। उन्होंने विपक्षी आन्दोलन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि विपक्ष किसानों को लूटने वालों के साथ खड़ा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि नये कानून से कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव के साथ किसानों की आय में कई गुना वृद्घि होगी। कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन आएंगे। निजी क्षेत्र के कृषि में निवेश होने से तेज विकास होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेगें, आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत होगी। 
-लेखक विश्व संवाद केन्द्र ट्रस्ट के सचिव एवं उप्र गन्ना विकास विभाग के पूर्व वरिष्ठï अधिकारी हैं। 

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