Thursday 27 August 2020

 

जन-जन के राम


अशोक कुमार सिन्हा 

राम सम्पूर्ण विश्ïव के आदर्श हैं। राम जन-मन में बसे हैं। राम राष्ट्रपुरुष मर्यादा पुररुषोत्तम हैं। राम शबरी, अहिल्या, जटायू, केवटराज, पिछड़े, गिरीजन आदिवासी बनवासी, गिलहरी, बानर, भालू, उत्तर-दक्षिण, भारतखण्ड, जम्बूदीप, अमेरिका से आस्ट्रेलिया अफ्रीका, योरोप, रूस सभी के आदर्श हैं। सत्य पर धैर्यपूर्वक अडिग रहना, पूजा से समान व्यवहार तथा दीन दुखियों पर विशेष कृपा करने वाले दीन दयालु हैं। विश्व के कई भाषाओं में रामायण लिखी गई है। इण्डोनेशिया, कम्बोडिया, थाईलैण्ड, ईरान, चीन सब जगह राम प्रसंग, रामकथा प्रचलित है। भारत की समृद्ध, विरासत, संस्कृति, धर्म, कर्तव्य सब राममय है; राम के चरण एवं आचरण दोनों स्पर्श एवं आत्मसात करने के विषय हैं।

वाल्मीकि के राम, तुलसी के राम, कम्ब के राम, वशिष्ठï के राम, जानकी के राम, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड के राष्ट्रपुरुष है राम। उन्होंने मानवता में आदर्श स्थापना हेतु कष्ट, विसंगति, झंझावात और विपत्तियां सही परन्तु इसे वे अवसर में परिवर्तित करते गये। धैर्यशील बनकर जन-जन को जोड़ा, संगठित किया, खड़ा किया और अन्याय-अत्याचार, नारी गरिमा के रक्षार्थ रावण जैसे पराक्रमी आततायी राक्षस को मारा और ध्वंसकर दिया। मोह नहीं पाला, स्वर्णमयी लंका को तत्काल विभीषण को सौंप कर वापस अयोध्या आ गये। वैराग्य को सौभाग्य में परिवर्तित कर दिया परन्तु पिता की आज्ञा, कैकेयी की इच्छा को माना, सीमित संसाधनों से अजेय पराक्रम दिखा कर अखिल ब्रह्माण्ड के नायक बन गये। अवतारी हो कर भी कोई चमत्कार नहीं दिखाया, कर्म करके दिखाया। क्षमाशील भी बने। संयम और अनुशासन के प्रतीक बनकर हर समस्या का मर्यादा में रहते हुये समाधान निकाला, सबको साथ लेकर चले। सभी दोषों, विकारों से मुक्त सम्पूर्ण जगत को अपनाने वाले राम अजातशत्रु थे। राम सामाजिक समरसता के कार्यशील प्रतीक थे जो जन-जन के हृदय में वास करते हैं। राम वह शक्ति सत्ता है जो सम्पूर्ण भारत राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोते हैं तथा एकता एवं सम्प्रभुता की प्रेरणा देते हैं। राम अपरिभाषित हैं। वह बोले नहीं जिये जा सकते हैं। वह अपराजित पौरुष के प्रतीक हैं। वह जीवन के साथ और जीवन के बाद भी साथ रहने वाले जाग्रत परमात्मा हैं। उनकी अनन्तता चिरस्थाई सहज-सबल हैं। वह अमीर-गरीब सबके समर्पण भाव से सहज प्राप्त हो जाते हैं। वह सबके और सबमें उपलब्ध हैं। जटायू को उनकी गोद मिली। राम का अर्थ है सुशासन, मर्यादा, नेतृत्व, शौर्य और लोकतन्त्र। राम उस सीमा तक लोकतन्त्रिक हैं कि एक अवसर पर कहते हैं कि यदि अनुमति हो तो कुछ कहूं और यदि मेरे कहने में कुछ अनुचित देखें तो मुझे टोक दें मैं सुधार कर लूंगा। वह अपने राज्य में रहने वाले प्रत्येक नागरिक की राय के आधार पर फैसला लेने में हिचकते नहीं। गिरिजनों और बनवासियों में आत्मविश्वास उत्पन्न कर सभी वंचित, शोषित वर्गों को आदर देकर उनके सहयोग से एक अजेय शक्ति खड़ा कर समुद्र लांघ जाते हैं। सत्यनिष्ठ, कर्मनिष्ठ और धर्मनिष्ठ आचरण से रावण को भी परास्त कर देते हैं। वह जन-जन के ऐसे प्रेरणा पुरुष हैं जिन्होंने सम्पूर्ण मानवता के लिये आदर्श खड़ा कर दिया। वह कर्तव्यपालन की सीख देकर पुरुषोत्तम हो गये। वह स्वराज्य के त्रिकाल सत्य बन गये। लोकमत का आदर कर राम राज्य का झण्डा गाड़ दिया।

अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में राम जन्मभूमि पूजन एवं कार्यारम्भ के अवसर पर अपार हर्ष का वातावरण बन गया था। अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में बड़े-बड़े डिजिटल होर्डिंग दर्शाये गये। कलियुग में त्रेतायुग साकार दिखाई पडऩे लगा। भारत में तो लगभग हर प्रांत की अपनी भाषा में रामायण न केवल वाचन किया जाता है वरन रामलीला मंचन होता है। पूर्वोत्तर एशिया के कई देश तो उन्हें अपना राष्ट्रनायक मानते हैं और मंचन करते हैं। रामलला के जन्मस्थान पर भव्य मन्दिर बने यह जन-जन की आकांक्षा हैं और थी। मन्दिर राष्ट्र का गौरव है, यह भारत के स्वाभिमान, आत्मसम्मान और आध्यात्मिक विरासत का जयगान है। यह हमारी सांस्कृतिक चेतना को स्पंदित करता है। सबका लक्ष्य प्राणिमात्र का कल्याण हैं। एक समरस, समृद्ध, सक्षम भारत के निर्माण की आकांक्षा की पूर्ति इस राष्ट्रमन्दिर से होने वाली है। संविधान में वर्णित कल्याणकारी राज्य की संकल्पना यदि जमीन पर उतारना है तो हमें राम को आदर्श मानकर रामराज्य की ओर बढऩा होगा। राम किसी के लिये भगवान हैं तो किसी के लिए नबी है। किसी के लिये अवतार हैं तो किसी के लिये मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। किसी के विरासत हैं तो किसी के लिए संस्कृति है। किसी के लोकनायक हैं तो किसी के बच्चों के लिये संस्कार हैं। किसी के लिये ‘‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदति’’ का जयगान हैं। कबीर, रहीम, रसखान सबके राम हैं। यह हमारी सभ्यता, संस्कृति की अविरल धारा के प्रतीक हैं। आज भी जापान, कोरिया, चीन, तिब्बत, रुस, कम्बोडिया, लाओस, थाईलैण्ड, वियतनाम, म्यांमार, श्रीलंका, त्रिनिदाद, गुयाना, मारीशस, सुरीनाम में राम मानवता के महाप्राण हैं। चीन में दूसरी शताब्दी का धर्मकीर्ति द्वारा स्थापित अंगोखाट का दुनिया का विशालतम मन्दिर है। यह विश्वज्ञान की चैतन्यता का प्रतीक है। महात्मा बुद्ध, महावीर, गुरुनानक सबके हैं राम। राम जन-जन के श्वांस में बसे रचे हैं। कई उत्थान पतन हो गये परन्तु राम नाम और रामकथा की प्रगाढ़ता से लोक जनजीवन में जीवन मूल्यों के दृष्टांत के रूप में राम विराजमान है। हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता हमारी मानसिकता में समावेशित हैं। सौम्य राम, धनुर्धारी राम, भक्त राम, लक्ष्मण शक्ति और सीताहरण पर विलाप करते राम, अहिल्या का उद्धार करते राम, हमारे जीवन में रच बस गया है। जन्म से भरण तक उन्हीं के नाम का सहारा है हनुमान के हृदय में बसे राम भारत के लाखों रामपुर, रामनगर, रामगांव और करोड़ों राम कुमार हैं। रामनवमी, दशहरा, दीपावली यह सारे त्योहार उनके लिए मनाये जाते हैं। उनकी पूजा अर्चना असंख्य राम स्तुतियों से होती है। गुरुनानक देव, गुरु तेग बहादुर जी तथा गुरु हरिगोविन्द सिंह जी ने रामजन्मभूमि जाकर पूजा अर्चना की और जय श्रीराम का उदï्घोष किया। राम सम्पूर्ण के पर्याय हैं। श्री राम चरित्र और आचरण सार्वभौमिक एवं सर्वस्पर्शी है। राम ने हर उस गुणधर्म को अत्मसात किया जो मानवीय एवं पिरवासी सम्बन्धों, सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक नैतिक आचरण और संस्कृति की उत्कृष्टता की ओर ले जाय।

श्री राम के चरित्र ने समतामूलक समाज के प्रति समाज को संवेदनशील बनाया। सम्पूर्ण विश्व उनसे धर्म के प्रति एक विशेष आग्रह है जिसके अनुपालन से धार्मिक और साम्प्रदायिक सौहार्द को नई दिशा दी जा सकती है। आज मानवीय मूल्यों के क्षरणकाल में राम की सहर्ष त्याग वाली प्रवृत्ति यही दर्शाती है कि दीर्घकालीन लोकल्याण के लिये सुशासन और सुराज के दलबदल की राजनीति, फिल्म जगत के चरित्रहीन आचरण का चित्रण और स्वार्थ साधना की आंधी में रामचरित्र शुचिता का आधार बन सकता है। राम का जीवन अनवरत रुप से सत्कर्म के प्रयोग की विधि के रूप में देखा जा सकता है। राम हम सभी के सद्गुणों के परिष्कार की पटकथा के रचनाकार हैं। वह भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अस्मिता का वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाले प्रयोगधर्मी मानव हैं।

मानव को देवत्व से जोडऩे का अप्रतिम माध्यम हैं राम। उनके जीवन लीला में स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व के मूल्य प्रवाहमान हैं। वास्तव में राम जन-जन के हैं, हम सबके हैं और हम सबमें हैं।

 

 

 

 

 

 

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