Thursday 27 August 2020

 

माटी कहे किसान से


अशोक कुमार सिन्हा 

हम मिट्टी से ही बने है। खेत से पेट भरता है। माटी की हम पूजा करते है और माटी से जब तक जुड़े रहते है तब तक हमारी पहचान बनी रहती है। और अन्त में पंचतत्व में विलीन भी हम माटी में ही होते है। किसान का जीवन और उसका पूरा कुनबा इसी मिट्टी और खेत में पलता-बढ़ता है। भारत की पहचान यहां की मिट्टी और गांव ही हैं। मिट्टी की सेहत से ही हम स्वस्थ रह सकते हैं। पिछले कई दशकों से मिट्टी की सेहत में खराबी आई कि हमें व्याधियां घेरने लगी। हम जैसे-जैसे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ाते गये, मिट्टी की जान निकलती गई। यही मिट्टी जो हमारी जान और शान थी, आज बीमारियों की जड़ बन गई। रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने कई घातक बीमारियों को जन्म दिया है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का दुष्प्रभाव पूरे परिस्थितिकी याने वातावरण और पर्यावरण पर पड़ता है। मित्र कीट भी मर जाते हैं अत: कीटों का जैविक नियन्त्रण नही हो पाता। कई उपयोगी पक्षी, जानवर, जीव-जन्तु मर जाते हैं। नदियों का जल भी प्रदूषित हो जाता है अत: जलचर भी मरने लगते हैं। शरीर पर इसका इतना घातक प्रभाव पड़ता है कि मां का दूध भी अब प्रदूषित हो रहा हैं। जरा सोचिये कि नवजात बालक के जीवन पर कितना घातक असर पड़ता होगा।

  भारत के अस्पतालों में कैंसर सहित अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की भरमार हो गई है। हम रासायनिक उर्वरकों का अन्धाधुन्ध प्रयोग बढ़ाते गये और यह नही समझ पाये कि हमारी भावी पीढ़ी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। माना कि किसान की यह निर्भरता और मजबूरी दोनों है। परन्तु इससे स्वायल टेक्सचरही बदल गया यह मिटï्टी के मूल गुणों को समाप्त करता गया और कई प्रकार के विषैले तत्व हमारे शरीर को खोखला करते गये। अब हालत यह हो गई है कि हम छुटकारा तो चाहते हैं परन्तु कोई रास्ता नहीं दिखार्ई पड़ रहा है। जमीन में कई सूक्ष्म आवश्यक तत्वों जैसे मैगनीशियम, जिंक, आयरन की कमी हो गयी है। जमीन के मित्र बैक्टीरिया समाप्त हो गये हैं। पूरा भारत इस संकट से गुजर रहा है। यह क्षरण दिखाई नहीं देता परन्तु उसका प्रभाव जीवन और फसलों पर स्पष्ट दिखाई देता है। हमारा अधिकांश भोजन मिटï्टी से ही उत्पन्न होता है। यदि इसमें विष घुल गया है या गुणवत्ता में क्षरण हो गया है तो हमारा भविष्य क्या होगा?

जैविक खेती उपाय है

हमें धीरे-धीरे रासायनिक उवर्रकों पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। इस पहल से अनेकों लाभ मिलेगा। नये रोजगार के रास्ते निकलेंगे। पर्यावरण शुद्घ होगा। विकास के नये रास्ते खुलेंगे। अन्न का निर्यात बढ़ेगा क्योंकि आज विश्व के अनेकों देश यह कहकर हमारे देश से अन्न आयात नहीं करते क्योंकि हम कई प्रकार के प्रतिबन्धित और घातक रासायनों को प्रयोग खेती में कर रहे हैं। फलों का निर्यात भी प्रभावित होता है। उत्पादन बढ़ेगा तथा खेती जो आज घाटे का व्यवसाय बन गया है, धीरे-धीरे मुनाफे का जरिया बनेगा। पशुधन का उपयोग होने लगेगा तथा छोटे और मझोले किसानों की रूचि खेती में बढ़ेगी छोटे और मझोले किसानों के लिये यह वरदान है क्योंकि वे जैविक खेती करने में सक्षम है। जल-जंगल और जमीन तीनों संरक्षित होंगे। जैविक खेती युवाओं को रोजगार दे सकता है। गांव स्तर पर ही हम अपने उत्पाद का मूल्य जैविक उत्पादन के रूप में बढ़ा सकते हैं। तथा किसानों की आय वृद्घि कर सकते हैं। कम्पोष्ट खाद, केचुआ खाद, तथा अन्य आय नये रोजगार सृजित करेंगे साथ ही गांव व जंगल के स्वास्थ्य पर भी सार्थक असर पड़ेगा।

गांवों का समग्र विकास होगा। रासायनों का आयात घटेगा साथ ही जल श्रोतों की गुणवत्ता में वृद्घि होगी। हम सिक्किम जैसे राज्यों का उदाहरण ले सकते हैं जहां शत प्रतिशत जैविक खेती हो रही है। इसके कारण अस्पतालों में मरीजों की संख्या घटी है। निर्यात बढ़ा है तथा रोजगारों का नवसृजन हुआ है।

जैविक खेती की पहल में राज्यों तथा केन्द्र सरकार का योगदान आवश्यक है। कृषि विभागों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी।

सरकारें अपनी किसानोपयोगी योजनाओं तथा अनुदानों का रूख तेजी से छोटे तथा मध्यम किसानों को सुविधा देने के लिये कर सकती हैं। लोकल के लिये वोकल का नारा भी सार्थक होगा। फलों, पशु उत्पादों जैसे दूध-घी आदि की गुणवत्ता बढ़ेगी तो भोजन का स्वाद बढ़ेगा। कृषि प्रशिक्षणों का रूख इसी ओर मोडऩा होगा। सब्जियों में स्वाद बढ़ेगा तथा भरपूर उत्पादन होगा। आशा है कि सरकार तथा किसान भाई दोनों सचेत तथा प्रयत्नशील होंगे।

 

 

 

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