Saturday 23 October 2021

 चौरी-चौरा जनविद्रोह के १०० वर्ष

उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर में गोरखपुर शहर से देवरिया रोड पर 27 कि.मी. की दूरी पर चौरी-चौरा नामक एक छोटा सा कस्बा है। यहां के दो गांव चौरी और चौरा को मिला कर 1885 में रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने चौरी-चौरा नाम दिया था जो रेलवे स्टेशन बना। 1857 की क्रान्ति के बाद अंग्रेजी शासन ने यहां एक तृतीय श्रेणी का थाना स्थापित किया था। 8 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी पहली बार गोरखपुर आये थे। नाथ सम्प्रदाय का यहाँ एक प्रसिद्ध मठ स्थापित था। गांधी जी के आने से स्वतन्त्रता आन्दोलन तेज हुआ। इसके पूर्व 4 सितम्बर 1920 को भारतीय राष्टï्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हो चुका था। 
गांधी के गोरखपुर आगमन से इस क्षेत्र में असहयोग आन्दोलन से लोग तेजी से जुडऩे लगे थे। बड़ी संख्या में भारतवासी आयातित कपड़ों को छोड़ कर खादी के वस्त्र पहनने लगे। क्षेत्र की सरकारी शराब की दुकानों का बहिष्कार कर दिया गया था। गांधी टोपी पहनने की होड़ लग गई तब गोरखपुर देवरिया की कच्ची रोड पर स्थित परगना दक्षिण हवेली के टप्पा केतउली का गांव था चौरी-चौरा। गाधी के गोरखपुर आने के लगभग एक वर्ष बाद आन्दोलन के क्रम में एक फरवरी 1922 को चौरी-चौरा से सटे मुण्डेरवा बाजार में शान्तिपूर्व बहिष्कार आन्दोलन चल रहा था। सभा आयोजित थी। भारत में असहयोग आन्दोलन से उत्पन्न परिस्थिति अंग्रेजी सरकार को भयभीत करने लगी थी। ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति को संभालने के लिए 'प्रिन्स आफ वेल्सÓ को भारत भेजा। आन्दोलन ने गति पकड़ लिया था। केवल गोरखपुर नगर से करीब 15 हजार स्वयंसेवक आन्दोंलन में सूचीबद्ध हो चुके थे। चौरी-चौरा के आस-पास भी आयेदिन मशाल जुलूस, क्रान्ति सभाएं आयोजित हो रही थी।
5 जनवरी, 1922 को विदेशी वस्त्रों के बड़े बाजार चौरी-चौरा (गोरखपुर) में सत्याग्रह करने के लिए चार हजार स्वयंसेवक इकट्ठे हो गये। थाने के सामने से जब शांत जुलूस गुजर रहा था, तो पुलिस बीच के हिस्से पर टूट पड़ी। पहले लाठियों से पिटाई की फिर गोलियां चलाने लगी। स्वयंसेवक शान से डटे रहे। निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसती रही। स्वयंसेवकों का साहस नहीं टूटा। कुछ स्वयंसेवकों ने देखा कि कई स्वयंसेवकों की टोपियां जमीन पर गिर गई है और पुलिस अपने पैरों से उस कुचल रही है। 
पुलिस की गोलियां खत्म हो गई तो उन्होंने बंदूक के कुंदों से मारना और संगीनों से चुभोना शुरू किया। तभी एक ललकार उठी, ''हम इस तरह कब तक डरते रहेंगे।ÓÓ स्वयंसेवक आक्रोश में भर गए। पुलिस के सिपाहियों ने भागकर थाने में शरण ली और किवाड़ बंद कर लिये। कु्रद्ध भीड़ ने मिट्टी का तेल डालकर थाने को फूंक दिया। उसमें बंद 21 सिपाही और एक थानेदार गुलेश्वर सिंह जल मरे। स्वयंसेवकों  में 23 शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गये।
गांधीजी चौरी-चौरा के पूर्व मद्रास में हुई एक हिंसात्मक घटना से पहले ही खिन्न थे। इस कांड से उनके अहिंसावाद पर तीव्र आघात पहुंचा। उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारडोली (गुजरात) में कांग्रेस कार्य समिति की एक बैठक आमंत्रित की जिसमें चौरी-चौरा घटना के आधार पर आंदोलन स्थगित कर रचनात्मक कार्यक्रम पर बल देने का निर्णय लिया। इस प्रकार असहयोग आंदोलन का अंत हो गया। गांधीजी के निर्णय का युवा क्रांतिकारियों ने तीव्र विरोध किया। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह इसी घटना की देन है। युवा वर्ग क्रांति की राह पर चलने लगे। 
घटना की पूरी छानबीन के बाद गोरखपुर के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ने 7 फरवरी को चौरी-चौरा घटना की सूचना डीआईजी सीआईडी यूपी को भेजी। उस समय के समाचार पत्र लीडर में 7 फरवरी की घटना के बाद सरकार द्वारा की गई कार्यवाही के विषय में सूचना प्रसारित की थी। डरी अंग्रेजी हुकूमत के गृह विभाग दिल्ली ने आदेश जारी कर प्रशासनिक अफसरों को हवाई फायरिंग पर तत्काल रोक लगाने को कहा था। अंग्रेजी सरकार इस घटना से डर गई थी। 
चौरी-चौरा विद्रोह का स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। यद्पि चौरा नगर बन चुका है जबकि चौरी अभी गांव है। 
तहसील भी चौरी-चौरा नाम से है। सन् 2012 से विधानसभा सीट भी मिल गई। सब कुछ टुकड़ों में हुआ। मुंडेरवा बाजार नगर पंचायत में सम्मिलित हो चुका चौरा अब गोरखपुर विकास प्राधिकरण का हिस्सा है। गांव को धरोहर के रूप में विकसित किया जा सकता है। आजादी वाले दिन स्टेशन पर तिरंगा फहराया गया था।
100 साल में भी नहीं मिली चौरी-चौरा को उसकी पहचान। 
चौरी-चौरा जन विद्रोह के मुकदमे में 172 लोगों को सेशन कोर्ट से फांसी की सजा सुनाई गई थी। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने राय दिया कि यदि मालवीय जी मुकदमा लड़े तो काफी लोगों की जान बच सकती है। पंडित मदन मोहन मालवीय को वकालत छोड़े काफी समय बीत चुका था परंतु उन्होंने मुकदमा लड़ा और और जैसा कि उन्हें सिल्वर टंग ओरेटर कहा जाता था- उन्होंने अपने तर्कों से 153 आरोपियों को छुड़ा लिया। केवल 19 लोगों को ही फांसी हो सकी। अंग्रेज जज मालवीय जी के तर्क से इतना प्रभावित हुआ था कि सजा सुनाने के बाद अपनी कुर्सी छोड़कर अपना हैट उतारकर तीन बार झुक कर मालवीय जी का अभिवादन किया और आरोपियों से कहा कि यदि मालवीय न होते तो आप न छूटते।
वर्तमान मोदी सरकार ने इस संग्राम को पूरा सम्मान देते हुए शताब्दी वर्ष पर साल भर कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया है। वह इसे गर्व का पर्व मानते  हैं। मुख्यमंत्री योगी जी ने 4 फरवरी 2021 को बड़ा कार्यक्रम मना कर प्रधानमंत्री मोदी से वर्चुअल कार्यक्रम में उद्बोधन कराया। 
इस अवसर पर 25 रुपये का टिकट भी जारी हुआ है। कार्यक्रम का लोगो भी जारी किया गया। घटना में शहीद 17 लोगों के परिजनों सहित 102 परिवारों को सम्मानित किया गया। परिजनों ने कहा कि अब पूरा देश जान सकेगा बलिदानियों को। योगी ने इस अवसर पर कहा कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन को चौरी-चौरा जन संघर्ष ने एक नई दिशा दी। द्य
- अशोक कुमार सिन्हा

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