Saturday 23 October 2021

 मकर संक्रान्ति उत्सव

भारत उत्सवधर्मी राष्टï्र है। मूल प्रकृति को आधार बना कर प्रत्येक दिन कोई न कोई व्रत, त्योहार पूरे वर्ष मनाये जाते हैं। कुछ उत्सव धार्मिक होते है कुछ प्राकृतिक कुछ ऐतिहासिक तथा कुछ राष्टï्रीय अस्मिता को पुष्टï करने वाले। यह हमारे शरीर, मन और जीवन में नई चेतना, उत्साह और उमंग भर देते हैं। ऐसा ही पर्व है मकर संक्रांति। पौष मास के इस दिन भगवान सूर्य नारायण धनु राशि में प्रवेश करते हैं तथा दक्षिणायन समाप्त हो कर उत्तरायण प्रारम्भ होता है। रात्रि का अहंकार धीरे-धीरे छोटी होने लगती है तथा प्रकाशमय दिन बड़ा होने लगता है। सूर्य की उष्मा प्रखर होने लगती है। हम अंधकार से प्रकाश की ओर, ज्ञान की ओर बढऩे लगते है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक केरल तथा आन्ध्र तेलगांना में संक्रान्ति, कहीं-कहीं उत्तरायणी, हरियाणा, हिमांचल व पंजाब में माघी व लोहड़ी, असम में भोगली बिहु, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रान्त, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति के नाम इस उत्सव को पुकारा व मनाया जाता है। नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, लाओस, म्यामार, कम्बोडिया और श्रीलंका में भी विभिन्न नामों से धूमधाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में यह पर्व स्नान-दान का है। प्रयागराज संगम में माघमेला के रूप में खिचड़ी का पर्व स्नान-दान कार्य से अत्यन्त पुण्य का त्योहार सम्पन्न होता है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खरमास के नाम से जाना जाता है। विवाह व शुभ कार्य स्थगित रहते हैं जो खिचड़ी के दिन से प्रारम्भ हो जाते हैं। इस दिन जप तप दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गाय, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र तथा कम्बल का दान करना पुनीत माना जाता है। महाराष्टï्र में इस दिन सभी विवाहित महिलायें अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, जल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल गुड़ नमक हलवे के बांटने की प्रथा है।
 लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं ''तिल गुड़ ध्या- गोड बोलाÓÓ अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा बोलो। इस दिन खिचड़ी और गुड़तिल से बने वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पतंग उड़ाते हैं। सूर्य ऊर्जा का आनन्द लेते हैं। स्नान के बाद सूर्य उपासना करते हैं।
गंगासागर में इस दिन विशाल मेला लगता है मकर संक्रान्ति के दिन ही मां गंगा भगीरथ के पीछे पीछे चल कर कपिलमुनि के आश्रम से हो कर गंगासागर में जा कर मिली थीं। काशी में गंगा किनारे विशाल मेला और स्नान-दान का कार्य सम्पन्न होता है। यह पर्व प्रति वर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है। यह भी मान्यता है कि भगवान सूर्य इस दिन अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति के दिन का चयन किया था। शास्त्रों के अनुसार दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नाकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है।
विश्व का असरकारी सबसे बड़ा संगठन राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ वर्षभर में कुल छ: उत्सव मनाता है उसमें से दूसरा उत्सव मकर संक्रान्ति है। हिन्दू समाज को एकात्म राष्टï्रीयता की भावना परस्पर आत्मीयता के आधार पर जाग्रत कर संघ इस दिवस को सामाजिक समरसता के रूप में मनाता है। सेवा बस्तियों में सम्पूर्ण समाज के साथ खिचड़ी भोज का कार्यक्रम रखा जाता है। समाज को स्नेहबद्ध एकात्म रखने का संदेश यह पर्व देता है। इस वर्ष अयोध्या में बन रहे राममंदिर के लिए समाज से धन एकत्र करने का कार्य भी इसी दिन से प्रारम्भ हो रहा है। नाथ सम्प्रदाय के गोरखनाथ मठ गोरखपुर में मकर संक्रान्ति के अवसर पर एक माह का विशाल और भव्य मेला लगता है जिसमें खिचड़ी चढ़ाया जाता है। नाथ सम्प्रादय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानन्द शिव के साक्षात स्वरूप श्री गोरखनाथ जी सतयुग में पेशावर, त्रेतायुग में गोरखपुर, द्वापर में हरमुख (द्वारका) तथा कलयुग में गोरावमेधी (सौराष्टï्र) में अविर्भूत हुये। गोरखनाथ के अनुयाई जोगी समाज से होते हैं। हठयोग में ये निष्णान्त होते हैं। त्रेतायुग से जलाई गई अखण्ड ज्योति यहां प्रज्जवलित है। खिचड़ी मेले में यहां भारी भीड़ दर्शन करने आती है। यहीं के महन्त योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं।

कैसे मनाएं संक्रांति
स्न इस दिन प्रात:काल उबटन आदि लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें। 
स्न यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। 
स्न तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। 
स्न स्नान के उपरांत दान, ध्यान कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें। 
स्न पुण्यकाल में दांत मांजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए। 
स्न इस दिन पतंगें उड़ाए जाने का विशेष महत्व है।

पुण्य पर्व है संक्रांति
उत्तरायन देवताओं का आसन है। यह पुण्य पर्व है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायन में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवद्र्धक होने के साथ-साथ पापों का विनाशक है। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है।  उत्तरायन का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।

 प्रस्तुति : अशोक सिन्हा

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